Premanand ji Maharaj: 17 साल से संत प्रेमानंद महाराज जी की दोनों किडनी खराब, डॉक्टर्स दे चुके हैं जवाब, लेकिन फिर भी डेली चार से पाँच किलोमीटर चल रहे पैदल

Premanand ji Maharaj Vrindavan: संत प्रेमानंद महाराज जी के बारे में आपने भी सुना होगा कि उनकी दोनों किडनी ख़राब हो चुकी हैं। साथ ही दिलचस्प बात ये है कि उन्होंने इन दोनों का नाम भी रखा है। आइये उनके बारे में विस्तार से जानते हैं।

Update:2023-07-06 09:24 IST
Premanand ji Maharaj vrindavan (Image Credit-Social Media)

Premanand ji Maharaj Vrindavan: अपनी मोटिवशनल और ज्ञान से भरी बातों से सभी को आकर्षित करने वाले संत प्रेमानंद महाराज जी के बारे में आपने भी सुना होगा कि उनकी दोनों किडनी ख़राब हो चुकी हैं। साथ ही दिलचस्प बात ये है कि उन्होंने इन दोनों का नाम भी रखा है। दरअसल उनकी दोनों किडनी 17 सालों से ख़राब हैं। डॉक्टर्स ने भी उन्हें कह दिया था कि वो बस चाँद दिनों के मेहमान हैं लेकिन उनकी भक्ति और कान्हा जी की शक्ति का नतीजा है कि भगवान् का हाँथ हर पल उनपर रहता है। आइये संत प्रेमानंद महाराज जी के बारे में विस्तार से जानते हैं।

प्रेमानंद महाराज जी कैसे बने संत

पिछले 17 सालों से संत प्रेमानंद महाराज जी की दोनों किडनियां ख़राब हो चुकीं हैं वहीँ उन्हें डॉक्टरों ने भी जवाब दे दिया था लेकिन राधे श्याम नाम जपते जपते उन्होंने अपने जीवन को भगवान् के ऊपर ही छोड़ दिया। वहीँ एक बात जो सभी का ध्यान अपनी ओर खींचती है वो ये कि प्रेमानंद जी ने अपनी दोनों किडनियों का नाम भी रखा हुआ है। जिसमे से एक का नाम राधा और एक का नाम श्याम है। वो पीले वस्त्र धारण कर लोगों के सभी सवालों का जवाब एकांत वार्ता में देते हैं।

प्रेमानंद जी का जन्म उत्तर प्रदेश के कानपूर शहर में हुआ था उनका परिवार बेहद गरीब था। उनका वास्तविक नाम अनिरुद्ध कुमार पाण्‍डेय था। उनके पिता का नाम श्री शंभू पाण्‍डेय एवं माताजी का नाम श्रीमती रामा देवी था। उनके घर का माहौल शुरू से ही आध्यात्मिक रहा है। उनके घर पर भी हमेशा से संत और महात्माओं का आना जाना रहता था। इनसे प्रभावित होकर प्रेमानंद जी का मन भी इस ओर लग गया। और वो अध्यात्म के पथ पर अग्रसर हो गए। उन्हें बचपन से ही मंदिर जाना पूजा पाठ करना बेहद पसंद था। इतना ही नहीं पांचवी कक्षा में उन्हें सभी चालीसा कंठस्‍थ हो गयी थीं। वो स्कूल जाने से पहले सभी चालीसा का पाठ करते थे और फिर तिलक लगाकर स्कूल जाते थे।

उनके दादाजी और पिताजी दोनों ही संत थे और इसीलिए प्रेमानंद जी को भी एक संत का जीवन जीने के लिए अपने पूर्वजों से ही प्रेरणा मिली। वो अपनी प्रेरणा भरी बातों से सभी को काफी मोटीवेट भी करते हैं और सत्मार्ग का रास्ता प्रशस्त करते हैं। सोशल मीडिया पर आचार्य जी काफी लोकप्रिय हैं और सभी को कई ज्ञान की बातें बताते भी नज़र आते हैं। जब प्रेमानंद जी कक्षा 9 में थे तब उन्होंने पूरी तरह से तय कर लिया था कि वो ईश्वर के बातये रास्ते पर ही चलेंगे। इसके बाद उन्होंने 13 साल की उम्र में घर छोड़ दिया और संत जीवन को पूरी तरह अपना लिया।

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