पुस्तक समीक्षा: अच्छी दोस्त साबित होगी यह पुस्तक

Update: 2019-06-14 10:28 GMT

इलाहाबाद के एक गांव में जन्मे और भारतीय रेलवे में अधिकारी रहे ओमप्रकाश मिश्र की पुस्तक विचारों का क्षितिज पढऩे का सौभाग्य मिला। ओमप्रकाश जी के विचारों के क्षितिज में रेवती की भांति 32 नक्षत्रों का समूह है जो कि किसी भी व्यक्ति के लिए वर्तमान देखे तो आईना, बीते कल से साक्षात कराने वाला चित्रपट और भविष्य की बुनियाद देने वाला काल का अविराम खंड है। विचारों का यह क्षितिज मनुष्य यानी म से शुरू होता है और अंत में हम यानी म पर ही खत्म होता है जो कि संस्कृत के मम से देखें तो मेरे विचारों का क्षितिज कल्पना को साकार करता है।

कहते हैं ‘म’ बेहद भावुकता का प्रतिनिधि है। म आत्मकेंद्रित या आत्मचिंतन में लीन भी करता है। लोग इसे संकोची प्रवृति से जोड़ते हैं। म के उच्चारण के समय मुंह बंद करना पड़ता है। इसलिए सामाजिकता में कहा जाता है कि ये अपनी बात शेयर नहीं कर पाते, हमेशा खुद में खोए रहते हैं और गहरे चिंतन में डूबे रहते हैं। भावुकता इतनी ज्यादा होती है कि जिसे चाहते हैं उससे भी बयां नहीं कर पाते। म का अनुसंधान ही नाद योग है जिसमें अ उ म् अउ नाद हैं तो म वह बिन्दु है जो सूक्ष्म से सूक्ष्मतम की ओर ले जाता है। यह ओम प्रकाश जी की विशालता है कि वह ज्ञान को खर्च करने से पहले ज्यादा सोच- विचार नहीं करते। हिन्दू शास्त्रों में अक्षर ‘म’ को अंक 4 के बराबर माना जाता है। अंक 4 साहस, बुद्धि, मेहनत का प्रतिनिधित्व करता है। विचारों के क्षितिज में ये सभी बातें दिखती हैं। विचारों का यह क्षितिज पारंपरिक और उच्च नैतिक मूल्यों में विश्वास करने की ओर ले जाता है और अंत में म से पुन: चिंतन की ओर केंद्रित कर देता है।

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तंत्र में पंच मकार आते हैं मद्य, मांस, मत्स्य, मुद्रा और मैथुन। वैसे साधकों के बीच समय-समय पर इनका अर्थ बदलता रहा है, लेकिन योगी गोरखनाथ के अनुसार मत्स्य का अर्थ मछली नहीं है। इड़ा-पिंगला स्वर के प्रवाह से है। जब इड़ा-पिंगला (मीन तुल्य) को संतुलित कर सुषुम्ना स्वर जागृत होता है तो यह मत्स्य भक्षण है। मांस भक्षण का अर्थ मांस खाने से नहीं है बल्कि अपनी इन्द्रियों को अंतर्मुखी करने से है। मदिरा प्रयोग का अर्थ दारू या शराब से नहीं है बल्कि खेचरी मुद्रा से है। खेचरी मुद्रा के अभ्यास से साधक सहस्त्रचक्र से निकल रहे अमृत का पान खेचरी मुद्रा द्वारा करता है। मुद्रा का अर्थ धन से नहीं है बल्कि अभ्यास में प्रयुक्त विभिन्न मुद्रा (आकार/स्थिति) से है। मैथुन से मतलब शक्ति (मूलाधारचक्र में स्थित) और शिव (सहस्त्रारचक्र) के मिलन से है। शिव-शक्ति का समागम (मिलन) मैथुन है। साधक कुंडलिनी साधना में इसी पंच मकार का प्रयोग करते हैं। वस्तुत: यह ओम प्रकाश मिश्र के विषद ज्ञान का प्रतीक है कि उन्होंने इसकी शुरुआत इससे की और समापन भी इसी पर किया।

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पुस्तक के मध्य में अभिव्यक्ति और मर्यादा में वह इसका निचोड़ देते हुए रघुवंश के श्लोक का उल्लेख करते हुए कहते हैं कि वागर्थाविव संप्रक्तौ वागर्थ प्रतिपत्तये...। संदर्भ अलग था लेकिन पूरा श्लोक है वागर्थाविव संप्रक्तौ वागर्थ प्रतिपत्तये, जगत: पितरौ वंदे पार्वती परमेश्वरौ। इसमें शब्द और अर्थ की भांति जुड़े हुए पार्वती और शिव को प्रणाम है और शिव शक्ति का यह समागम ही मैथुन है। पुस्तक के मध्य तक पहुंचते-पहुंचते विचारों का यह क्षितिज आपको सर्वोच्च ऊंचाई पर ले जाता है। मैंने पहले भी कहा था कि सिंघासन बत्तीसी की पुतलियों की तरह इस पुस्तक का हर लेख आपको एक पुतली की तरह एक कथा सुनाता प्रतीत होता है जिसमें जीवन के सत्य के साथ परंपरा की झलक है। मिट्टी की सोंधी महक है। पूरी पुस्तक कहीं पर भी उकताहट नहीं आने देती बल्कि डूबने और गहरे में उतरने को मजबूर करती प्रतीत होती है।

विचारों के क्षितिज का प्रकाशन किताब महल, इलाहाबाद ने किया है। किताब महल ही इस पुस्तक का मुद्रक और मुख्य वितरक है। पुस्तक में पिता-तुम पुल थे शीर्षक के लेख में पुत्र के जीवन में पिता के महत्व को पुल के माध्यम से रेखांकित कर अभिनव प्रयोग किया गया है जो कि पिता-पुत्र के मध्य आ रहे वैचारिक अंतराल को पाटने का काम करता प्रतीत हो रहा है। कुल 145 पृष्ठों की पुस्तक में 32 लेखों का संग्रह है। निसंदेह यह पुस्तक एक अच्छी दोस्त साबित होगी।

- रामकृष्ण वाजपेयी

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