माधवसिंहजी का निधन, एक यार का बिछड़ना !
अहमदाबाद के दैनिक ''गुजरात समाचार'' के सहसंपादक के पद से जीवन प्रारंभ कर वे बुलन्दियों तक पहुंचे। यदि कुटिल तेलुगुभाषी नियोगी विप्र नरसिम्हा राव छल न करते, तो अन्तिम शेष तीन दशक उनके सियासी वनवास में न गुजरते।
के. विक्रम राव
लखनऊ: कांग्रेस पार्टी में एक सत्पुरूष थे माधवसिंह फूलसिंह सोलंकी। अत्यंत ज्ञानी, नैतिकताभरे राजनेता, कर्मठ प्रशासक, श्रमजीवी पत्रकार जो चार बार गुजरात के मुख्यमंत्री रहे। उनके निधन (94 की आयु में, 9 जनवरी 2021) से हमारे हजारों पत्रकारों को दुख और विषाद हुआ। वे इन्दिरा गांधी और पीवी नरसिम्हा राव के काबीना में रहे।
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सहसंपादक के पद से जीवन प्रारंभ कर वे बुलन्दियों तक पहुंचे
अहमदाबाद के दैनिक ''गुजरात समाचार'' के सहसंपादक के पद से जीवन प्रारंभ कर वे बुलन्दियों तक पहुंचे। यदि कुटिल तेलुगुभाषी नियोगी विप्र नरसिम्हा राव छल न करते, तो अन्तिम शेष तीन दशक उनके सियासी वनवास में न गुजरते।
माधवसिंहभाई मेरे जेलर थे
माधवसिंहभाई मेरे जेलर थे। उनकी सरकार ने मुझ पर इन्दिरा गांधी की सरकार को बलात उखाड़ फेंकने का आरोप लगाया और आपातकाल में कोर्ट से फांसी की सजा मांगी थी। उनके कट्टर प्रतिद्वंदी भी कभी भी सोलंकीजी के स्वभाव और विद्धता की श्लाधा करने में नहीं अघाते थे। बड़ौदा सेन्ट्रल जेल में जनता मोर्चा के बर्खास्त मुख्यमंत्री बाबूभाई जशभाई पटेल मेरे ही वार्ड में साथ थे। सोलंकी और पटेल जानेमाने प्रतिद्वंदी रहे। किन्तु वे भी सोलंकी की सौम्य सोच और योग्यता के मुरीद थे। अविभाजित कांग्रेस में साथ रहे।
चालीस वर्ष पुराने संविधान में आवश्यक संशोधन करने पड़े थे
किस्सा है 1989 का। हमें अपने इंडियन फेडरेशन आफ वर्किंग जर्नलिस्ट (आईएफडब्ल्यूजे) का विशेष प्रतिनिधि अधिवेशन करना था। चालीस वर्ष पुराने संविधान में आवश्यक संशोधन करने पड़े थे। समस्या थी कि स्थल कहां हो? माधवसिंहभाई को जब समस्या का पता चला तो राजधानी गांधीनगर का प्रस्ताव रखा। तारीखें थी, 27-31 दिसम्बर, 1989, शीतकाल। उद्घाटन समारोह अहमदाबाद के रायखड़ इलाके के जयशंकर सुन्दरी सभागार में रखा गया। मुख्यमंत्री द्वारा उद्घाटन था। विधानसभा के नेता जनतादल विपक्ष स्व. चिमनभाई पटेल मुख्य अतिथि थे। अध्यक्षता मुझे करनी थी। अर्थात मध्य में बैठना था।
माधवसिंहभाई मानों संपादकीय बोल रहें हों
उन्होंने अपना मुद्रित भाषण पढ़ा। माधवसिंहभाई मानों संपादकीय बोल रहें हों। पत्रकारिता की चुनौतियों पर। उनकी समीक्षा थी कि नई विधायें उभर रहीं हैं। नूतन परिदृश्य पर चर्चा हो। टीवी समाचार, युद्ध रिपोर्टिंग, अंतरिक्ष की खबर आदि।
उन्हें दैनिक ''गुजरात समाचार'' का पर्याप्त अनुभव था। धाराप्रवाह बोले। मगर चिमनभाई पटेल ने कांग्रेस द्वारा अखबारी स्वतंत्रता पर सरकार के हमले पर खूब कहा।
पता चलते ही मैं उठकर मुख्यमंत्री को मंच पर ले आया
अगली रात बड़ा आह्लादकारी अनुभव हुआ गांधीनगर सभागार में हम सब प्रतिनिधियों को। अचानक डिनर के बाद माधवसिंहभाई अप्रत्याशित रूप से सभागार में आकर पिछली पंक्ति में बैठ गये। पता चलते ही मैं उठकर मुख्यमंत्री को मंच पर ले आया। उनका कोई कार्यक्रम नहीं था। बोले, ''राष्ट्रभर से पधारे साथियों को सुनना चाहता हूं।'' कई वक्ताओं को सुनकर वे भी माइक पर आये। बहस का मुद्दा था कि मीडिया कर्मियों की आचार संहिता कैसी हो? पत्रकार से राजनेता बने एक प्रौढ पाठक के विचार बहुत उपयोगी थे। एक सूत्र उन्होंने दिया।
समाचार छापने पर वैमनस्य कदापि भारी नहीं पड़ना चाहिये
समाचार छापने पर वैमनस्य कदापि भारी नहीं पड़ना चाहिये। व्यक्ति को अपने वोटर वाले विचार और पत्रकार की कलम के दायरे को मर्यादित रखना चाहिये। इस कथनी को उन्होंने अपनी करनी में दिखा भी दिया। एकदा प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने एक गुप्त पत्र स्वीडन के प्रधानमंत्री के नाम लिखा। विदेश मंत्री माधवसिंह सोलंकी को विश्व आर्थिक फोरम के देवोस (स्विजरलैण्ड) के वार्षिक सम्मेलन में यह पत्र स्वीडिश विदेश मंत्री तक पहुंचाना था। इसमें भारतीय प्रधानमंत्री की स्वीडिश सरकार से आग्रह था कि बोफोर्स की जांच धीमी कर दी जाये। मामला खुल गया। सोलंकी ने खामोशी से विदेश मंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया। कांग्रेस पार्टी और नरसिम्हा राव के पाप खुद पर ले लिया। राजनीति में ऐसा नैतिक भारतीय दूसरा नहीं मिलता है।
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2019 में हुई थी माधवसिंहभाई से आखिरी भेंट
आखिरी बार माधवसिंहभाई से ''आईएफडब्ल्यूजे'' प्रतिनिधि मंडल की भेंट उनके गांधीनगर में (विधायक-सांसद पुत्र भरत सिंह सोलंकी के आवास पर) 8 जनवरी 2019 को हुई थी। हमारी गुजरात यूनियन के राधेश्याम गोस्वामी, आदि मेरे साथ थें। तब फिर मैंने जानने का प्रयास किया कि आखिर नरसिम्हा राव का पत्र का मजमून क्या था? नहीं बताया। मुस्करा कर टाल दिया। पर गोपनीय बात इन ढाई दशकों में छन-छन कर सार्वजनिक हो ही गई थी। राजीव गांधी की प्रतिष्ठा बचाने में माधवसिंहभाई पत्र का विवरण अपने सीने में छिपाये गुजर गये। मामला आस्था और विश्वासघात के बीच वाला था। वे निष्ठावान साथी निकले।