स्पेशल दिवालीः गाँव में दीपावली होती थी यादगार, न भूले हम न भूलोगे तुम

धनतेरस की मंगल शुभकामनाये। दिवाली मनाये - पूरे जोश के साथ परंतु पर्यावरण का ध्यान अवश्य रखे ।पहले दिवाली पर घर की सफ़ाई- पुताई अवश्य होती थी ।

Update: 2020-11-12 07:20 GMT
गांव की दिवाली पर पूर्व डीजीपी बृजलाल का लेख (Photo by social media)

पूर्व डीजीपी बृजलाल

नई दिल्ली: धनतेरस की मंगल शुभकामनाये। दिवाली मनाये - पूरे जोश के साथ परंतु पर्यावरण का ध्यान अवश्य रखे ।पहले दिवाली पर घर की सफ़ाई- पुताई अवश्य होती थी । गाँव में मेरा मिट्टी की दीवाल से बना खपरैल का कच्चा मकान था। गर्मी में मेरी माँ और भाभी तालाब से चिकनी मिट्टी का धुँधा(तीन- चार किलो चिकनी मिट्टी का गोला- नीचे चपटा) तैयार कर लेती थी। सूखने पर उसे कनड़ौरा( कंडा- उपला रखने का कमरा) में रख दिया जाता था।

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दिवाली के महीना भर पहले से सूखी चिकनी मिट्टी को घोला जाता था और पुराने कपड़े को गीली मिट्टी में डाल- डाल कर दीवालों पर पुताई की जाती थी। बरसात में दीवालों में टूट- फूट भर दिया जाता था और घर के अंदर भी चिकनी मिट्टी से पुताई की जाती थी। दीवालों पर गुलाबी-पीले रंग से चित्र और हाथ के पंजे से एक लाइन में थाप कर सुंदर चित्र बनाये जाते थे।

झगरू कुम्हार ही पूरे गाँव में मिट्टी के दीये और मिट्टी के खिलौने देते थे

गाँव के झगरु काका का चाक दिवाली के पहले से चलने लगता था। झगरू कुम्हार ही पूरे गाँव में मिट्टी के दीये और मिट्टी के खिलौने देते थे। दिवाली के दिन आगन को गोबर से लीपा जाता था और आगन में ही दिये जलाकर घर के हर कमरे, खेत , बैल- गाय की घारी, खलिहान में भी दिए रखे जाते थे। चकिया, ओखली, धान कूटने का ढेका, सिल पर भी दिए रखे जाते थे ।बड़े दीये पर कच्चा दीया रख कर रात भर जलाया जाता था, उसका काजल बनाकर परिवार के हर सदस्य के आँख में अवश्य लगाया जाता था।

diwali (Photo by social media)

खाने में दिवाली के दिन सूरन (जिमीकंद ) की सब्ज़ी अवश्य बनायी जाती थी

खाने में दिवाली के दिन सूरन (जिमीकंद ) की सब्ज़ी अवश्य बनायी जाती थी । जिमीकंद प्रत्येक परिवार दीवार की पुश्ती पर अवश्य लगाता था और घर का सूरन ही इस्तेमाल होता था। खाना खाने के पहले घर के बैलों को खाना खिलाया जाता था।आख़िर बैल ही तो हमारे खेत जोतते थे,इसलिए उनका सम्मान पहले भोजन कराकर किया जाता था।

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उस समय मिठाई गाँव के अधिकतर लोगों के पहुँच के बाहर था। हमारी दिवाली झगरु काका के 40-50 दीये और थोड़े सरसों के तेल से पूरा हो जाता था। हाँ मुख्य उद्देश्य था- घर की साफ़ सफ़ाई, वह अवश्य पूरा होता था। पटाखे तो हम लोग जानते ही नहीं थे, क्योंकि यह हमारे पहुँच के बाहर थे। हाँ अभाव में पर्यावरण पूरी तरह सुरक्षित अवश्य रहता था। सभी मित्रों को दीपावली और धनतेरस की बहुत- बहुत शुभकामनाएँ।

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