राष्ट्रजीवन की गति का मुख्य दिक्सूचक है संविधान

भारत ने 26 जनवरी 1950 को पहला गणतंत्र दिवस मनाया। भारतीय संविधान सभा की आखिरी बैठक (26 नवम्बर 1949) में डा0 अम्बेडकर के प्रस्ताव पर मतदान हुआ और संविधान पारित हो गया।

Update:2020-11-24 16:42 IST
भारतीय संविधान पर हृदयनारायण दीक्षित का लेख (Photo by social media)

हृदयनारायण दीक्षित

लखनऊ: भारत ने 26 जनवरी 1950 को पहला गणतंत्र दिवस मनाया। भारतीय संविधान सभा की आखिरी बैठक (26 नवम्बर 1949) में डा0 अम्बेडकर के प्रस्ताव पर मतदान हुआ और संविधान पारित हो गया। संविधान ही राष्ट्र का धारक और राष्ट्र राज्य व्यवस्था का धर्म बना। भारत ने संविधान को ही सर्वोत्तम सत्ता माना। भारत के प्रत्येक जन को वाक्स्वातंन्न्य और विधि के समक्ष समता सहित सभी मौलिक अधिकार मिले। इसके पहले 1947 तक भारत में ब्रिटिश सत्ता थी।

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26 नवम्बर के दिन से अपना संविधान प्रवर्तन हुआ था

भारत परतंत्र था। 26 नवम्बर के दिन से अपना संविधान प्रवर्तन हुआ था। सो जनगणमन ने समता, समरसता और सम्पन्नता के सपने देखे। अब न कोई राजा था, न कोई शासक। जनगणमन का भाग्य विधाता अब संविधान था। नागरिक संविधान के प्रति श्रद्धालु रहा है। संविधान के कार्यकरण पर चर्चा का अवसर है। आज 26 नवम्बर का दिन सभी संवैधानिक संस्थाओं, राजनैतिक दलों और देशभक्तों के लिए गहन आत्म विश्लेषण का उत्सव हैं।

संविधान राष्ट्रजीवन की गति का मुख्य दिक्सूचक है

संविधान राष्ट्रजीवन की गति का मुख्य दिक्सूचक है। भूमि, जन और शासन से ही राष्ट्र नही बनते। जाति, मजहब, राजनीति और क्षेत्रीय आग्रह समाज तोड़ते हैं, संस्कृति ही इन्हें जोड़ती है। भारतीय संविधान निर्माता सनातन सांस्कृतिक क्षमता से परिचित थे। उन्होंने संविधान की हस्तलिखित प्रति में सांस्कृतिक राष्ट्रभाव वाले 23 चित्र सम्मिलित किए। मुखपृष्ठ पर राम और कृष्ण तथा भाग 1 में सिन्धु सभ्यता की स्मृति वाले मोहनजोदड़ो काल की मोहरों के चित्र हैं। भाग 2 नागरिकता वाले अंश में वैदिक काल के गुरूकुल आश्रम का दिव्य चित्र है।

भाग 3- मौलिक अधिकार वाले पृष्ठ पर श्री राम की लंका विजय व भाग 4 - राज्य के नीति निर्देशक तत्वों वाले पन्ने पर कृष्ण अर्जुन उपदेश वाले चित्र हैं। भाग 5 में महात्मा बुद्ध, भाग 6 में स्वामी महाबीर और भाग 7 में सम्राट अशोक के चित्र हैं। भाग 8 में गुप्त काल, भाग 9 में विक्रमादित्य, भाग 10 में नालंदा विश्वविद्यालय, भाग 11 में उड़ीसा का स्थापत्य, भाग 12 में नटराज, भाग 13 में भगीरथ द्वारा गंगावतरण, भाग 14 में मुगलकालीन स्थापत्य, भाग 15 में शिवाजी और गुरू गोविन्द सिंह, भाग 16 में महारानी लक्ष्मीबाई, भाग 17 व 18 में क्रमशः गांधी जी की दाण्डी यात्रा व नोआखाली दंगों में शान्ति मार्च, भाग 19 में नेताजी सुभाष, भाग 20 में हिमालय, भाग 21 में रेगिस्तानी क्षेत्र व भाग 23 में लहराते हिन्दु महासागर की चित्रावलि है।

संविधान पारण के बाद अध्यक्ष राजेन्द्र प्रसाद ने कहा

संविधान पारण के बाद अध्यक्ष राजेन्द्र प्रसाद ने कहा “अब सदस्यों को संविधान की प्रतियों पर हस्ताक्षर करने हैं एक हस्तलिखित अंग्रेजी की प्रति है, इस पर कलाकारों ने चित्र अंकित किये हैं, दूसरी छपी हुई अंग्रेजी व तीसरी हस्तलिखित हिन्दी की।” (संविधानसभा कार्यवाही खण्ड 12 पृष्ठ 4261) भारतीय सभ्यता, संस्कृति और इतिहास के छात्रों के लिए संविधान की चित्रमय प्रति प्रेरक हैं। संविधान मार्गदर्शी है लेकिन राष्ट्र की समृद्धि संवैधानिक संस्थाओं पर आसीन महानुभावों पर निर्भर है। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने संविधान सभा के आखिरी भाषण (26.11.1949) में कहा, “संविधान किसी बात के लिए उपबंध करे या न करे, देश का कल्याण उन व्यक्तियों पर निर्भर करेगा, जो देश पर शासन करेंगे।”

अपने आखिरी भाषण में डॉ. अम्बेडकर ने भी प्राचीन भारतीय परम्परा की याद दिलाते हुए कहा था “एक समय था जब भारत गण राज्यों से सुसज्जित था। यह बात नहीं है कि भारत पहले संसदीय प्रक्रिया से अपरिचित था।” भारत संसदीय प्रक्रिया से पहले भी सुपरिचित था। यहां वैदिक काल से ही एक परिपूर्ण गणव्यवस्था थी। गणेश गणपति थे। प्राचीनतम ज्ञान अभिलेख ऋग्वेद में “गणांना त्वां गणपतिं” आया है।

मार्क्सवादी चिंतक डा0 रामविलास शर्मा ने लिखा है

मार्क्सवादी चिंतक डा0 रामविलास शर्मा ने लिखा है “गण पुराना शब्द है, यह पुरानी समाज व्यवस्था का द्योतक है। गण और जन ऋग्वेद में पारिभाषिक हो गये हैं।” महाभारत युद्ध के बाद युधिष्ठिर ने भीष्म से आदर्श गणतंत्र के सूत्र पूछा। भीष्म ने (शांतिपर्वः 107.14) बताया कि भेदभाव से ही गण नष्ट होते हैं। उन्हें संघबद्ध रहना चाहिए। गणतंत्र के लिए बाहरी की तुलना में आंतरिक संकट बड़ा होता है - ‘आभ्यन्तरं रक्ष्यमसा बाह्यतो भयम्’ बाह्य उतना बड़ा नहीं।

संविधान राष्ट्र का कारक है। संविधान निर्माताओं ने संसदीय जनतंत्र अपनाया है। उन्होंने अनेक संवैधानिक संस्थाओं का प्राविधान किया है। विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के मध्य शक्ति के पृथक्करण का सिद्धांत लागू है। निर्वाचन आयोग जैसी संवैधानिक संस्थाएँ सारी दुनिया में प्रतिष्ठित हैं। संसद विधायी और संविधायी अधिकारों से लैस है। संवैधानिक संस्थाएँ आदरणीय है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने लोकसभा प्रवेश के पहले दिन संसद भवन की सीढ़ियों पर साष्टांग प्रणाम किया था। यह प्रेरक और ऐतिहासिक है। वे सभी संवैधानिक संस्थाओं का आदर करते हैं।

निर्माताओं ने संसद को सविधान संशोधन का भी अधिकार दिया है

संविधान निर्माताओं ने संसद को सविधान संशोधन का भी अधिकार दिया है। मोदी की सरकार ने संविधान के अनुच्छेद-370 को हटाने की कार्यवाही पूरी कर ली है। इसे हटाना संविधान निर्माताओं का ही स्वप्न था। उन्होंने इसके शीर्षक में 'अस्थायी उपबंध' शब्द छोड़े थे। जम्मू कश्मीर की आम जनता इससे प्रसन्न है, लेकिन अलगाववादी शक्तियाँ अभी भी सक्रिय हैं। यही स्थिति सी0ए0ए0 (नागरिकता संशोधन कानून) की है। कुछ ताकतें खुलम्खुल्ला इसका विरोध कर रही हैं। इसी तरह संसद द्वारा किसानों के हित के लिए पारित कानूनों को लेकर भी कुछ सरकारें संसद द्वारा पारित कानून को भी चुनौती दे रही हैं। कुछ अलगाववादी और देश तोड़ ताकतें बार-बार सिर उठाती है। ऐसी ताकतें संविधान की सर्वोपरिता का सिद्धांत नहीं मानती हैं।

भारतीय गणतंत्र लगातार विकसित हो रहा है

भारतीय गणतंत्र लगातार विकसित हो रहा है। न्यायपालिका संविधान की जिम्मेदार संरक्षक है। हिन्दुत्व की व्याख्या व नवीं अनुसूची के दुरूपयोग को रोकने सहित अनेक मसलों पर न्यायपीठ ने प्रशंसनीय फैसले किये हैं। मौलिक अधिकार सुरक्षित है। कृषि, विकास, गोवंश संवर्द्धन राज्य के नीति निर्देशक संवैधानिक तत्व हैं। महाभारतकार ने गणतंत्र की सभा समिति (संसदीय व्यवस्था) के सदस्य की अनिवार्य योग्यता बतायी थी “न नः स समितिं गच्छेत यश्च नो निर्वपेत्कृषिम”, ''जो खेती नहीं करता वह सभा में प्रवेश न करे।'' ऋग्वैदिक काल में ऋषि भी कृषि करते थे। कामन सिविल कोड नीति निर्देशक तत्व है। हिदुत्व इस देश का प्राण तत्व है, लेकिन साम्प्रदायिक कहा जाता है। अलगाववाद देशतोड़क है तो भी सेकुलर है। अल्पसंख्यकवाद की आंधी है, लेकिन संविधान और कानून में ‘अल्पसंख्यक’ शब्द की परिभाषा नहीं है। गहन आत्मचिन्तन ही एकमेव विकल्प है।

देश के प्रत्येक नागरिक को मौलिक अधिकारों की प्रतिभूति है

संविधान में देश के प्रत्येक नागरिक को मौलिक अधिकारों की प्रतिभूति है। लेकिन इसी के साथ संविधान के अनुच्छेद-51क में मूल कर्तव्यों की भी सूची है। इस सूची में कहा गया है कि ''प्रत्येक नागरिक का मूल कर्तव्य है कि वह संविधान के पालन के साथ उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्रध्वज व राष्ट्रगान का आदर करें। स्वाधीनता के राष्ट्रीय आन्दोलन के आदर्शों को हृदय में संजोये और उनका पालन करें। राष्ट्र की सम्प्रभुता, एकता और अखण्डता की रक्षा करे। किसी भी तरह के भेदभाव से परे भारत के सभी लोगों में समरसता और भाईचारा की भावना का विकास करे। पर्यावरण की रक्षा करे, सार्वजनिक सम्पत्ति की रक्षा करे। हिंसा से दूर रहें।'' मूल कर्तव्यों की यह सूची भारत के लोक जीवन को आनन्दित करने का दस्तावेज है। संविधान दिवस के अवसर पर इसका पाठ और पुनर्पाठ बहुत जरूरी है।

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संविधान की उद्देशिका स्मणीय है। उद्देशिका में 'हम भारत के लोग' शब्द का प्रयोग ध्यान देने योग्य है। भारत की जनता के लिए किसी जाति सम्प्रदाय या वर्ग शब्द का प्रयोग नहीं है। हम सबकी पहचान भारत है। 'हम सब भारत के लोग' हैं। उद्देशिका में सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक न्याय प्राप्त कराने के लिए संकल्प है। इनमें प्रतिष्ठा और अवसर की समता है। उद्देशिका एक तरह से हमारी राजव्यवस्था का स्वप्न है। यह बारम्बार विचारणीय और माननीय है। संविधान भारत का राजधर्म है।

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