कांग्रेस के ढहते किलेः क्या सचमुच कांग्रेस मुक्त होने को बढ़ चला भारत

भाजपा खास तौर से मोदी की सोच विपक्ष को मजबूत न होने दो,क्योकि ऐसा होने पर सरकार अपने सुविधा अनुसार चलाना मुश्किल होगा ।लेकिन लोकतंत्र में मजबूत विपक्ष चेक एंड बैलेंस के लिए ज़रूरी है।जिसमे कांग्रेस एक अहम भूमिका निभा सकती है।

Update: 2020-07-17 10:38 GMT

मदन मोहन शुक्ला

नरेंद्र मोदी सरकार जब 2014 में बनी उस समय मोदी का नारा था "कांग्रेस मुक्त भारत"।भाजपा तो इस मुहिम में उतनी सफ़ल नहीं हो पाई यह काम खुद कांग्रेस आला कमान कर रहा है।अगर अतीत में झांक कर देखें तो किस तरह गोआ,मणिपुर,अरूणाचल प्रदेश से होता हुआ कर्नाटक, गुजरात,मध्यप्रदेश हाथ से निकल गया। अब राजस्थान में घमासान चल रहा है।कैसे एक एक कर प्रदेश हाथ से निकलते चले गए।लोग अब तो कहने लगे हैं कांग्रेस के पास अमित शाह जैसा कूटनीतिज्ञ नही है।इतिहास के पन्नो को अगर पलटे तो इन प्रदेशों में कैसे भाजपा ने लोकतंत्र की धज़ियाँ उड़ाई और एक एक कर प्रदेश पर काबिज़ होते चले गए।इसी तरह महाराष्ट्र में भी वही हुआ लेकिन वहां शरद पंवार ने भाजपा को उनके ही जाल में फंसा कर चारो खाने चित्त कर दिया।

भाजपा खास तौर से मोदी की सोच विपक्ष को मजबूत न होने दो,क्योकि ऐसा होने पर सरकार अपने सुविधा अनुसार चलाना मुश्किल होगा ।लेकिन लोकतंत्र में मजबूत विपक्ष चेक एंड बैलेंस के लिए ज़रूरी है।जिसमे कांग्रेस एक अहम भूमिका निभा सकती है।लेकिन कांग्रेस की खुद के अंदर के मतभेद, नेतायों का अति महत्वकांक्षी होना तथा पार्टी में पनप रहे आक्रोश पर हाई कमान का गैर जिम्मेदाराना रवैया प्रायः देखने को मिल रहा है।

आखिर समस्या कहाँ पर

मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया जब 22 विधायकों के साथ कमल नाथ के खिलाफ भाजपा की शह पर विद्रोह करते है तो हाई कमान ने कभी यह जानने की कोशिश नही की आखिर समस्या कहाँ पर है ।अगर ज्योतिरादित्य सिंधिया ,दिग्विजय सिंह और कमल नाथ को एक साथ बैठा कर राहुल गांधी और सोनिया गांधी ने यह जानने की कोशिश की होती प्रॉब्लम कहाँ पर क्यों और किससे है? उसको मिल जुट कर सुलझाने का प्रयत्न किया होता तो आज मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार न गिरती।।राहुल-सोनिया और ज्योतिरादित्य के बीच संवाद की कमी रही।जो सरकार गिरने का बड़ा कारण बनी।

यहां जब कमल नाथ ने एक पत्रकार को संदेश वाहक के तौर पर क्राइसिस के बीच राहुल के पास भेजा तो राहुल ने कहा मैं मध्यप्रदेश के लोगों से नही मिल रहा।

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राजनीति फुल टाइम जॉब

यह क्या संदेश देता है ? राहुल का राजनीति पार्ट टाइम जॉब है। जब चाहा राजनीति का चोला पहन लिया जब चाहा उतार दिया। पार्टी इस तरह नही चलती। राजनीति फुल टाइम जॉब है राहुल को राहुल बाबा की छवि से बाहर आना होगा और दूसरा सबसे अहम अब पार्टी में जो पुराने कांग्रेसी कुंडली मारे बैठें है उनकी जगह युवा चेहरों को आगे लाना होगा जो जमीनी स्तर के नेता हों।

वोटर की समस्या को सरकार के सामने रखें

आगे होने जा रहे चुनाव चाहें वो बिहार हों या वेस्ट बंगाल ओडिशा या उत्तरप्रदेश रणनीति क्या होगी किससे गठबंधन जोड़ तोड़ हो इसकी कवायद शुरू हो जानी चाहिए। क्योंकि अभी तक जहां जहां भी चुनाव हुए चाहे वो हरियाणा हो या कर्नाटक या गुजरात या महाराष्ट्र यहां कांग्रेस चुनाव में बहुत सक्रिय नही रही जो सीटें मिली वो केवल एन्टी-इनकम्बेंसी की वजह से वोटर ने खुद विपक्ष की भूमिका में आकर कांग्रेस को दिया। इस उम्मीद से की आप एक सशक्त विपक्ष बने और वोटर की समस्या को सरकार के सामने रखें लेकिन आपने अपने वोटर को अंदरूनी कलह की वजह से निराश ही किया।

पी एल पुनिया केवल तमाशा देख रहे

कमोबेश छत्तीसगढ़ जहां भूपेश बघेल 60 विधायकों के साथ मुख्यमंत्री है लेकिन वहां पर सब कुछ अच्छा नही है।उन्ही के एक कैबिनेट मंत्री पी एस सिंहदेव से मुख्यमंत्री की बिल्कुल नही निभ रही पर हाई कमान किसी विस्फोट का इंतजार कर रहा है और वहां के प्रभारी पी एल पुनिया केवल तमाशा देख रहे है और तो और आग में घी का काम कर रहे हैं।राहुल जी शीशे के महल से बाहर आइए पार्टी की ज़मीनी हक़ीक़त से वाकिब होने की कोशिश करिए।जो लोग पार्टी की नीतियों से असंतुष्ट हैं जानिए क्या समस्या है,पार्टी से निकालना ही सोलुशन नहीं है। जोड़िए अगर एक मजबूत विपक्ष के तौर पर बनना चाहते है और मोदी से सीधी टक्कर लेना चाहते है तो आपकी सेना चुस्त और स्ट्रेटेजिक होनी चाहिए।

राहुल गांधी के साथ एक समस्या और भी है वो मोदी सरकार को तो कटघरे में खड़ा करते है जबाब मांगते हैं लेकिन पार्टी के अंदर उपज रहे विद्रोह पर मौन रहते है और बहुत ही aristocratic रवैया रहता है।जो कभी कभी पार्टी के लिए असहज़ स्थिति पैदा कर देता है।

जनता से विश्वासघात कर रहे

राजस्थान के साथ साथ आज पूरा देश कोरोना से लड़ रहा है लेकिन हमारे नेता अपने व्यक्तिगत हित्त के लिए जनता से विश्वासघात कर रहे है।सचिन पायलट- अशोक गहलोत का मतभेद सरकार बनते ही उभर आया था।पूर्वी राजस्थान में सचिन की गुर्ज़र और मीणा पर अच्छी पैठ के कारण 49 में से 42 सीट मिली थी लिहाज़ा उनकी महत्वाकांक्षी प्रवर्ति कारण बनी गहलोत सरकार को अस्थिर करने की जो पार्टी हित्त में कदापि नही है ।यह रुख सचिन का ज़याज़ नही था।क्योंकि राजनीति उनको विरासत में मिली और 42 साल की उम्र में कांग्रेस से वो सब कुछ मिल गया जो लोगों के लिए सपना होता है।और आज भी राजस्थान सरकार में नंबर 2 पर रहे है लेकिन मुख्यमंत्री बनने की चाह ने उनको अर्श से फर्श पर गिरा दिया।

अपने कार्यकर्ताओं पर कितनी पकड़

क्या इस समय सचिन का कदम सरकार को गिराने का तर्कसंगत था,नही कदापि नहीं।दूसरा हाई कमान का ढुल मूल रवैया ,राहुल गांधी के रुख में लचीलेपन का न होना,राहुल के इर्दगिर्द गिर्द जो कॉकस है जो कभी चुनाव में नही जाता तथा जो लोग है उनमें कितनी बौद्धिक क्षमता है या अपने कार्यकर्ताओं पर कितनी पकड़ इसमें संदेह है। वे जब केंद्र या प्रदेश स्तर पर जो शीर्ष पर है मसलन प्रदेश में मुख्यमंत्री उसके प्रभाव में रह कर वहां का प्रभारी हाई कमान को रिपोर्ट करें तथा जो पार्टी में आक्रोश है उसके कारणों को सुलझाने की जगह अनदेखी तथा हाई कमान को अंधेरे में रखना जो कारण विद्रोह का बने।

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आग में घी का काम किया

इसमें अशोक गहलोत का रोल सकारात्मक न होकर नकारात्मक ही रहा जैसे एस ओ जी की तरफ से नोटिस जिसमे देशद्रोह की धारा लगी थी वो भी अपने उपमुख्यमंत्री के खिलाफ,इस पर हाई कमान की मौन सहमति जिसने आग में घी का काम किया फिर बरखास्त की कार्यवाही भी तर्कसंगत नही है।यहां हाई कमान खास तौर से राहुल-सोनिया का रोल कही से भी मामले को निपटाने वाला नही रहा।देखना है आगे ऊंट किस करवट बैठता है।इसका असर यह हुआ कि कांग्रेस में भूचाल आ गया विद्रोह के स्वर मुखर हो गए सचिन पर की गई कार्यवाही पर संजय झा कांग्रेस प्रवक्ता द्वारा की गई टिप्पणी भारी पड़ी उन्हें पार्टी से निलंबित कर दिया गया।

कांग्रेस की नाव को डूबने से बचाना है

इसी तरह महाराष्ट्र में संजय निरुपम पर अनुशासन हीनता और पार्टी विरोधी कार्यवाही के लिए बरखास्त करने की कार्यवाही जारी है। इन्ही की राह पर कांग्रेस में महाराष्ट्र से मिलिंद देवड़ा,प्रिया दत्त,उत्त्तर प्रदेश से जतिन प्रसाद भी सचिन पर की गयी कार्यवाही पर मुखर है आगे देखना है कांग्रेस आला कमान का क्या रुख होता है । समझौता वादी और विरोध के कारणों पर सहानुभूति पूर्वक लचीला रुख होना चाहिए । जो समय की मांग है।अगर कांग्रेस की नाव को डूबने से बचाना है।

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