कौन है ऊपर ? पार्टी या देश !

अंततः यू. पी. का एक खाकीधारी ही मूल में निकला, जिसने भारत के सत्तरसाला संघीय ढाँचे को दरका दिया। भाजपा और तृणमूल के बीच जंग का शंख निनादित करा दिया। चंदौसी के कॉलेज प्राचार्य का यह आई. पी. एस. पुत्र (राजीव कुमार) सात वर्ष पूर्व ममता बनर्जी की घोरतम घृणा का पात्र था। वे इसे कांग्रेस का भेदिया मानती थीं।

Update:2019-03-04 18:49 IST

के. विक्रम राव

अंततः यू. पी. का एक खाकीधारी ही मूल में निकला, जिसने भारत के सत्तरसाला संघीय ढाँचे को दरका दिया। भाजपा और तृणमूल के बीच जंग का शंख निनादित करा दिया। चंदौसी के कॉलेज प्राचार्य का यह आई. पी. एस. पुत्र (राजीव कुमार) सात वर्ष पूर्व ममता बनर्जी की घोरतम घृणा का पात्र था। वे इसे कांग्रेस का भेदिया मानती थीं। मगर यही राजीव कुमार आज मुख्यमंत्री का घनिष्ठतम प्रियपुरुष है। इतने भरोसेमंद कि इस अफसर को निर्वाचन आयोग द्वारा हटाने के तुरंत बाद ममता बनर्जी ने वापस पदारूढ़ करा दिया था। उनसे लगन इतनी कि कोलकाता में अपने मुख्यमंत्री कार्यालय को छोड़कर ममता बनर्जी इस पुलिस आयुक्त के धर्मतल्ला दफ्तर में धरने पर बैठ गयीं। सी. बी. आई. के पुलिसवालों से इस पुलिसवाले को बचाने हेतु वे रातभर सोफा पर डटी रहीं। महाबली मोदी सरकार को अदालत-ए-आलिया जाना पड़ा, अपना कानून कोलकाता में मनवाने के लिये। ममता की दहाड़ को रूद्ध करने हेतु।

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अब तनिक राष्ट्र की सोचें और देखें कि फुटबाल के लिये मशहूर कलकत्ता में केंद्र और बंगाल सरकार के बीच यह कंदुक-क्रीड़ा कैसी रही? प्रतीक्षारत प्रधानमन्त्री राहुल गांधी की दादी की पार्टी को अधिनायकवादी बताकर स्वयं को आमजन पार्टी करार देकर ममता ने उपयुक्त विशेषण (तृणमूल) से इसे अलंकृत किया था। विद्रूप हुआ कि अब दोनों पार्टियों ने कंधे से कन्धा मिला लिया। परन्तु एकता बस सतही है। राहुल ने ट्वीट सन्देश में ममता के लिये हर उत्सर्ग की तत्परता का ऐलान किया। मगर उनकी बंगाल पार्टी के अध्यक्ष और सांसद अशोक रंजन चौधरी ने मोदी से ममता सरकार को बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन लगाने की जोरदार माँग कर डाली। उधर महागठबंधन के शिल्पी सीताराम येचुरी ने ममता को पदच्युत करने की माँग दुहरायी। उनपर सियासी और वैचारिक खोखलेपन का आरोप लगाते हुए येचुरी ने पूछा कि ममता ने गुजरात दंगे के बाद भाजपा काबीना में अपना मंत्री क्यों रखवाया?

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कैसा संयोग है कि जिस दिन (फ़रवरी 3) ममता बनर्जी धरने पर बैठकर दिल्ली को दहला रहीं थीं, तो उसी बेला पर मार्क्सवादी कम्युनिस्ट प्रदर्शनकारी ब्रिगेड परेड ग्राउंड में नारे गुंजा रहे थे कि “ममता हटाओ, बांग्ला बचाओ।” उधर ममता के पक्ष में लामबंद हो रही थीं द्रमुक सांसद कनिमोजी जो 2-जी (2G) लूट के कारण तिहाड़ जेल में कई रातें बिता चुकी हैं, आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री एन. चन्द्रबाबू नायडू जो अवसर के आधार पर बारी-बारी से राजग और संप्रग से जोड़ीदारी कर चुके हैं, चारा घोटाले के महानायक लालू यादव ने जेल से अपने सगों को ममता के साथ जोड़ दिया। वर्षों से कश्मीर के राजकोष को खाली कर देने वाले फारुख तथा उमर अब्दुल्ला भी ममता के साथ हो लिये।

अब उत्तर प्रदेश क्यों पिछड़ा रहे? अखिलेश यादव भी ममता दी से सटे। उन्हीने यादव सिंह को नोयडा की महालूट में छूट दे दी थी। अरबों का माल था। माटी आज भी वहाँ सोना, हीरा, मोती उगलती है। याद कीजिये उच्च न्यायालय (इलाहाबाद) ने यादव सिंह को भ्रष्टाचार के आरोप में जेल से बेल पर छोड़ने की याचिका निरस्त कर दी थी। तब अखिलेश की समाजवादी पार्टी सरकार ने उच्चतम न्यायालय में अपीलीय याचिका दायर की थी कि लुटेरे यादव सिंह को जमानत पर रिहा कर दिया जाय। तो ममता के समर्थन में महागठबंधन में यही सब महानायकगण शरीक हो गये।

क्या आकर्षण दिखा उन्हें इस शेरनी-ए-बंगाल में ? शारदा चिट फंड कम्पनी से तृणमूल कांग्रेस के पाँच सांसद, दो मंत्री और कई पदाधिकारी जुड़े थे। अध्यक्ष सुदीप्त सेन ने सौ रुपये का डेढ़ सौ कर देने का लुभावना सूत्र गाया था। इसे दुहराया था हर विज्ञापन में लावण्यमयी, रूपवती फिल्म अभिनेत्री शताब्दी राय ने। सत्रह लाख भोले जन फँसे, साठ हजार करोड़ रुपये का गोलमाल हुआ। इसी राशि में 9800 करोड़ मीडिया उद्योग में लगा दिये। तृणमूल सांसद कुणाल घोष ने संपादक बनकर 1700 पत्रकारों को नौकर रख लिया था । आज सभी सड़क पर हैं।

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कोलकाता पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार के संयोजकत्व में विशेष जाँच दल गठित हुआ। इसी पुलिसवाले ने सबूतों को मिटाकर आमजन की पेंशन और बचत राशि पर डाका डालने वालों को बचाने की साजिश रची। राज्य में अपराधियों के बचाव की आला कमान स्वयं मुख्यमंत्री ने संभाली। धोखाधड़ी करने वालों को सजा दिलाने वाले राजधर्म का पालन कराने के बजाय ममता बनर्जी ने इसकी शकल बदल दी थी। मोदी बनाम ममता का आकार दे दिया। एक जनवादी संकट को पूँजीखोरों की पक्षधरता के लिये विकृत कर दिया। कभी सिद्धांतों के नाम पर पी. वी. नरसिम्हा राव काबीना में पद को ठुकराने वाली, अटल बिहारी सरकार को छोड़ देनेवाली, माकपा की भ्रष्टतम सरकार को शिकस्त देकर बंगाल की खाड़ी में धकेल देनेवाली, राजीव गांधी की ताकतवर सरकार को झुका देनेवाली, रणचंडी के तेवरवाली ममता बनर्जी आज माटी की मूरत निकली। म्याऊं बोल गईं। अपने पार्टी के पापियों से गंगा (हुगली) मैली करा दी।

 

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