नोटबंदी पर सरकार ‘जश्न‘ मनाए यह भारत की जनता का उपहास

Update: 2017-11-07 13:19 GMT

लखनऊ : समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा है कि गतवर्ष 8 नवंबर को केंद्रीय भाजपा सरकार ने नोटबंदी के जरिए पांच सौ और हजार रूपए के नोटों को चलन से बाहर करने की अचानक घोषणा के साथ उसके पीछे जो उद्देश्य बताए गए थे, वे सब खोखले थे। वस्तुतः सरकार के इस अदूरदर्शिता पूर्ण निर्णय से आर्थिक जगत में अराजकता का माहौल पैदा हुआ है और बेरोजगारी के साथ निर्माण कार्य बंद होने का दंश जनता को झेलना पड़ा।

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यादव ने कहा कि वे शुरू से ही कहते आ रहे हैं कि रूपया काला सफेद नहीं होता है, लेन-देन काला सफेद होता है। प्रधानमंत्री जी ने कालेधन का हौवा खड़ा किया पर स्वयं रिजर्व बैंक की रिपोर्ट कहती है कि जो नोट उसने जारी किए थे उसमें से 99 प्रतिशत वापस आ गए हैं। आतंकी गतिविधियां रोकने के दावों की हकीकत यह है कि कश्मीर घाटी में पहले से ज्यादा आतंकी घटनाएं घटी है। नक्सली गतिविधियां भी थमी नहीं है। पृथकतावादी जगह-जगह सिर उठा रहे हैं।

पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि अपनी छवि चमकाने के लिए प्रधानमंत्री जी ने रिजर्व बैंक या मंत्रिमण्डलीय सहयोगियों को विश्वास में लिए बिना राजनीतिक फैसला लिया जिससे 64 बार उन्हें नियम बदलने पड़े। कृषि इस देश की अर्थ व्यवस्था की रीढ़ है। रिजर्व बैंक मानता है कि नोटबंदी के नए नियमों के कारण नकदी का प्रवाह बाधित हुआ। फल स्वरूप किसान को औने-पौने अपनी फसल बेचनी पड़ी है। कर्ज में डूबे किसान को आत्महत्या करनी पड़ी रही है। आलू, धान और गन्ना किसानों पर बुरी तरह मार पड़ी।

यादव ने कहा कि नोटबंदी की मार सबसे ज्यादा असंगठित क्षेत्र पर पड़ी क्योंकि यह क्षेत्र नकदी से संचालित होता है। उन्होंने कहा कि असंगठित क्षेत्र की देश की अर्थव्यवस्था में 45 फीसदी हिस्सेदारी हैं जिसमें 93 फीसदी में नकारात्मक प्रभाव पड़ने से हमारी विकास दर में भी गिरावट आ गयी। देश की जनता को अंधेरे में रखकर उसकी भावनाओं से खिलवाड़ करना लोकतंत्र में अपराध से कम नहीं।

अखिलेश यादव ने कहा कि नोटबंदी के कारण निर्माण उद्योग में पूरी तरह गतिरोध की स्थिति पैदा हो गई है। बिल्डिंग उद्योग में लगे करोड़ों मजदूर बेरोजगार हो गए हैं। बड़ी कम्पनियों ने अपने यहां छंटनी कर दी हैं। जो भवन बने है, उनके खरीददार नहीं मिल रहे हैं। देश की विकास दर में भारी गिरावट आई है। आंकड़े बताते हैं यह दर 1 फीसदी से भी कम है।

भाजपा सरकार ने कहा था कि करीब तीन लाख करोड़ का कालाधन रद्द हो जाएगा पर वह सारा धन वापस आ गया। कालाधन सफेद हो गया। नोटबंदी का सबसे बुरा शिकार गरीब आदमी रहा जो इस आपदा से उबर नहीं पा रहा है। खुद सरकार पर भी नए नोट छापने का खर्च बढ़ा है। नोटबंदी के बाद नए नोटों की छपाई लागत 7965 करोड़ हुई जबकि वर्ष 2015-16 में यह लागत 3421 करोड़ रूपए थीं।

यादव ने कहा कि जिस नोटबंदी के दौर में दर्जनों लोगों की जाने चली गई, लोगों के शादी ब्याह और अंतिम संस्कार तक में अड़चनें पैदा हो गई और मध्यवर्गीय तथा अल्प आय वर्ग वाले परिवारों का बजट भी बिगड़ गया उसको लेकर भाजपा सरकार ‘जश्न‘ मनाए यह भारत की जनता का उपहास है।

अखिलेश यादव ने कहा कि इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता है कि इस आपदा के चलते भारत के विकास में गतिरोध की स्थिति पैदा हो गई है। अर्थनीति के फैसलों में मनमानापन अलोकतांत्रिक एवं जनविरोधी कदम था जिसको सही ठहराने के लिए भारत सरकार तरह-तरह के बहाने बना रही है। देश के समक्ष जो बुनियादी समस्याएं हैं, उनके समाधान के बजाय भाजपा सरकार भ्रमित करने के लिए स्वप्न लोक का परिचय कराती रहती है। सरकारों का काम जनता को धोखा देना नहीं हो सकता।

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