बसपा-अकाली गठबन्धन : किसी राह में किसी मोड़ पर कहीं चल न देना तू छोड़कर

BSP-Akali Dal Gathbandhan : विधानसभा चुनाव 2022 में अकाली दल और बहुजन समाज पार्टी एक साथ फिर से चुनाव मैदान में उतरने जा रहे हैं।

Written By :  Shreedhar Agnihotri
Published By :  Shivani
Update: 2021-06-14 08:23 GMT

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BSP-Akali Dal Gathbandhan : पंजाब में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव (Punjab Vidhan Sabha Election 2022) में अकाली दल और बहुजन समाज पार्टी (Akali Dal -BSP) एक साथ फिर से चुनाव मैदान में उतरने जा रहे हैं। 25 साल पहले भी दोनो दलों के बीच गठबन्धन (Alliance) हुआ था। पर बाद में दोनो की राहें जुदा हो गयी थी लेकिन अब राजनीतिक मजबूरी के चलते यह दोनो दल फिर एक ही मोड़ पर आ मिले हैं। सवाल इस बात का है कि आखिर यह गठबन्धन की कड़ी कितनी मजबूत होगी और कितने दिन चलेगी। अकाली दल और भाजपा का साथ तो दशकों चला पर बसपा के अतीत को देखें तो मायाावती साथ छोड़ने के लिए ही राजनीतिक दलों से गठबन्धन करती आई हैं।

बसपा का गठबंधन

इससे पहले 2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा ने समाजवादी पार्टी के साथ उत्तर प्रदेश में भी गठबन्धन किया था पर गठबन्धन का लाभ बसपा को मिला और चुनाव खत्म होने के पांच महीने बाद ही मायावती ने कई आरोप लगाकर यह गठबन्धन तोड़ दिया। पूरे चुनाव प्रचार के दौरान अखिलेश यादव बसपा सुप्रीमो मायावती को प्रधानमंत्री बनाने की बात कहते रहे। दोनों दलों में यह तय हुआ था कि अखिलेश यादव प्रदेश सरकार पर हमला करेंगे और मायावती केन्द्र सरकार पर। सपाइयों को लग रहा था कि अगले विधानसभा चुनाव में मायावती अखिलेश को मुख्यमंत्री बनाने के लिए काम करेंगी, लेकिन चुनाव परिणामों से सपा कार्यकर्ताओं को निराशा ही हाथ लगी।
जबकि इसके पहले 2014 के लोकसभा चुनाव में बसपा का खाता तक नहीं खुला था और 2017 के विधानसभा चुनाव में एड़ी चोटी का जोर लगाने के बाद भी बसपा को मात्र 19 सीटें मिली थी। इन दोनों चुनावों में मिली विफलता के बाद ही मायावती सपा से गठबंधन को तैयार हुई थीं।

यही नहीं , लोकसभा चुनावों से पहले मायावती ने 2018 में छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री अजित जोगी के नेतृत्व वाली जन कांग्रेस से गठबंधन किया था मगर अपेक्षित सफलता न मिलने के बाद उन्होंने गठबंधन तोड़ दिया और सारा ठीकरा जोगी के सिर फोड़ दिया था। इसी तरह मायावती ने हरियाणा में इनेलों से भी गठबंधन किया जो ज्यादा दिनों तक नहीं चला।
यूपी में मायावती का हर दल का साथ रहा। तीन बार वे भाजपा के समर्थन से सरकार में रही। 1996 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से मिलकर चुनाव लड़ा। उस वक्त बसपा को महसूस हुआ था कि कांग्रेस के साथ गठबंधन कर कोई फायदा नहीं हुआ। तो फिर कांगे्रेस के साथ कभी समझौता नहीं किया। भाजपा और कांग्रेस का साथ करने से पहले यूपी में सबसे पहले सपा-बसपा का पहला गठबंधन 1993 में हुआ था। तब इसी गठबंधन की सरकार बनी और उसके मुखिया मुलायम सिंह यादव बने थे। लेकिन उस समय भी यह गठबंधन सरकार अपने दो साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाई थी।
बसपा का इतिहास इसी तरह का रहा है। उसने पहले भी कई दलों से गठबंधन किए, लेकिन जब उसे राजनीतिक लाभ होता दिखाई दिया उसने अपने रास्ते अलग कर लिए। चाहे वह भाजपा के साथ उसका गठबंधन रहा हो अथवा कांग्रेस के साथ या फिर किसी अन्य दल के साथ।
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