चाउर वाले बाबा का जादू फीका पड़ा और छत्तीसगढ़ फिसल गया बीजेपी के हाथ से

छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनावों में बीजेपी कि हार ने साबित कर दिया कि 'चाउर वाले बाबा' का जादू फेल हो चुका है। आपको बता दें, सीएम रमन सिंह 'चाउर वाले बाबा' के नाम से मशहूर हैं। आइए जानते हैं कि ऐसा क्या हुआ कि जो व्यक्ति 15 सालों तक प्रदेश का सीएम रहा कैसे एक ही झटके में उसका किला ताश के महल की तरह बिखर गया।

Update: 2018-12-11 13:27 GMT

रायपुर : छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनावों में बीजेपी कि हार ने साबित कर दिया कि 'चाउर वाले बाबा' का जादू फेल हो चुका है। आपको बता दें, सीएम रमन सिंह 'चाउर वाले बाबा' के नाम से मशहूर हैं। आइए जानते हैं कि ऐसा क्या हुआ कि जो व्यक्ति 15 सालों तक प्रदेश का सीएम रहा कैसे एक ही झटके में उसका किला ताश के महल की तरह बिखर गया।

ये भी देखें :राजस्थान में फिर नहीं बदला ट्रेंड, 25 साल से हर चुनाव में बदल जाती है सत्ता

इससे पहले जानिए 'चाउर वाले बाबा' नाम कैसे पड़ा रमन का...

साल 2003 में रमन सिंह सीएम बनें। इसके बाद उन्होंने प्रदेश के बुनियादी ढांचे पर काम किया। जिसे काफी पसंद किया गया। इसके बाद सीएम ने एक योजना आरंभ की, जिसमें गरीबों को 2-3 रुपए किलो चावल बांटा गया। इसके बाद रमन सिंह का एक नया नाम पड़ा- चाउर वाले बाबा।

अब बताते हैं, 'चाउर वाले बाबा' का जादू इस बार क्यों नहीं चला

2003 से सत्ताधारी बीजेपी के खिलाफ इस बार कांग्रेस अपने मतभेद भुला लामबंद हुई और चौपाल से लेकर राजधानी तक रमन विरोधी माहौल बनाया गया। सूबे में भले ही रमन को 'चाउर वाले बाबा' के नाम से पुकारा जाता हो, लेकिन केंद्र सरकार से किसानों की नाराजगी उनपर भारी पड़ी और किसानों का ये गुस्सा ईवीएम में कैद हो गया।

ये भी पढ़ें- 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव नतीजों में BJP की हालत पस्त, कांग्रेस का विजयी कमबैक

आदिवासी समुदाय सरकार की नीतियों से खुश नहीं था। रमन को ये बात पता थी लेकिन उन्हें ये मुगालता हो गया था कि आदिवासी उनके साथ हैं। क्योंकि प्रदेश में आदिवासियों का एक बड़ा तबका हमेशा से बीजेपी को वोट करता आया है। बता दें कि छत्तीसगढ़ की 90 सीटों में से 29 सीटें आदिवासियों के लिए रिजर्व हैं।

बीजेपी पर हमेशा शहरी पार्टी होने का आरोप लगा, लेकिन रमन ने इस ओर ध्यान नहीं दिया और पार्टी संगठन ने भी इस ओर ध्यान नहीं दिया। जबकि कांग्रेस ने ग्रामीण इलाकों में काफी मेहनत की और नतीजा सामने है।

ये भी पढ़ें- क्या इसबार EVM के माथे से मिटेगा कलंक, लगता तो नहीं है

नक्सलवाद से निपटने में नाकाम रमन

राज्य में नक्सलवाद बड़ी समस्या है। 15 सालों से सत्ता पर काबिज रमन ने नक्सलवाद पर कभी भी कड़ी कार्यवाही नहीं की। साल दर साल नक्सली हावी होते गए। उनका डर दिलों में घर करता गया, लेकिन कहते हैं डर के आगे जीत होती है और वही हुआ नक्सल प्रभावित इलाकों में इस बार भारी मतदान हुआ। अब नतीजे आपके सामने हैं।

 

 

Tags:    

Similar News