क्या आप जानते हैं मायावती ने कब-कब, किन-किन पार्टियों से तोड़े हैं गठबंधन?
सपा सुप्रीमों मायावती केवल यूपी में ही गठबन्धन तोडने में आगे नहीं हैं उन्होंने प्रदेश के बाहर दूसरे राज्यों में भी अन्य दलों के साथ गठबन्धन कर फिर अलग होने का काम किया है। चाहे वह हरियाणा हो अथवा छत्तीसगढ।
श्रीधर अग्निहोत्री
लखनऊ: बसपा सुप्रीमो मायावती केवल यूपी में ही गठबन्धन तोडने में आगे नहीं हैं उन्होंने प्रदेश के बाहर दूसरे राज्यों में भी अन्य दलों के साथ गठबन्धन कर फिर अलग होने का काम किया है। चाहे वह हरियाणा हो अथवा छत्तीसगढ। कभी चुनाव के पहले तो कभी चुनाव के बाद सहयोगी दल का साथ छोडने का इतिहास रहा है।
लोकसभा चुनावों से पहले वे 2018 में छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव में वहां पूर्व मुख्यमंत्री अजित जोगी के नेतृत्व वाली जन कांग्रेस से गठबंधन कर चुकी थी अपेक्षित सफलता न मिलने के बाद उन्होंने गठबंध तोड़ लिया और ठीकरा जोगी के सिर फोड़ दिया था।
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इसी तरह मायावती ने हरियाणा में इनेलों से भी गठबंधन हुआ जो ज्यादा नहीं चला। यूपी में मायावती का हर दल का साथ रहा। तीन बार वे भाजपा के समर्थन से सरकार में रही। 1996 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से मिलकर चुनाव लड़ा।
बाद में उन्होंने भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाई। हालांकि क भाजपा और कांग्रेस का साथ करने से पहले यूपी में सबसे पहले सपा-बसपा का पहला गठबंधन 1993 में हुआ था तब इसी गठबंधन की सरकार बनी और उसके मुखिया मुलायम सिंह यादव बने थे।
लेकिन उस समय भी यह गठबंधन सरकार अपना दो साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाई थी और मायावती भाजपा के समर्थन से पहली बार सीएम बनी थी। लोकसभा चुनाव होने और केन्द्र में सरकार गठन के बाद से उत्तर प्रदेश की राजनीति में उठापटक फिर तेज हो गयी है।
भारतीय जनता पार्टी को शिकस्त देने की गरज से पच्चीस साल बाद चुनाव से पहले जो सपा-बसपा गठबंधन हुआ था उसकी गांठे खुलने शुरू हो गयी है। हाल ही में बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने दिल्ली में हार के कारणों को लेकर बुलाई गयी।
लोकसभा चुनाव में अपेक्षित सफलता न मिलने के बाद से गठबंधन के भविष्य को लेकर अटकले शुरू हो गयी थी। लोकसभा चुनाव से पहले इसी साल जनवरी में लखनऊ के फाइव स्टार होटल में दोनेां दलों के बीच गठबंधन की घोषणा हुई थी। रालोद तो इस गठबंधन में बाद में शामिल हुआ। गठबंधन के समय दोनों दलों को चैंकाने वाले परिणामों की उम्मीद थी।
इस गठबंधन को लेकर भाजपा भी अपने भविष्य को लेकर सशंकित थी। लेकिन अंडर करंट ने भाजपा के साथ ही गठबंधन को भी चैंकाया। गठबंधन जहां पन्द्रह सीटों पर सिमटी तो भाजपा गठबंधन को 64 सीटे मिली। चुनाव में गठबंधन होने के बावजूद सपा को मात्र पांच सीटे मिलने के बाद से यादवी कुनबे में खासी बैचेनी थी।
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बैचेनी इस बात को लेकर भी थी कि सपा मे मुखिया अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव और दोनों भाई धर्मेन्द्र यादव,अक्षय यादव भी पराजित हो गये। इस से सपा के गठबंधन बने रहने के सारे दावों की हवा निकलनी शुरू हो गयी थी। जिस तरह से गठबंधन की गांठे खुलने शुरू हुयी है उससे लग रहा है कि अब गठबंधन की सांसे चंद दिनों की है।
हालांकि गठबंधन के इस हश्र को लेकर सियासी हल्कों में कोई हैरानी नहीं है। हो भी क्यों? बसपा अपने इसी चरित्र के लिए जानी जाती है। इस गठबंधन में रालोद की स्थिति शामिल बाजे जैसी थी। इसलिए उसकी स्थिति पर बहुत ज्यादा असर पड़ने वाला नहीं था। रही बात सपा की
उसके लिए कोई नया अनुभव नहीं था। इस गठबंधन से सबसे ज्यादा मुनाफे में जहां बसपा रही तो सपा जहां की तहां रही। उसके लिए सबसे ज्यादा झटका यह रहा कि उसके कुनबे के ही लोग धराशायी हो गए। जबकि मायावती शून्य से दस पर पहुंच गयी।
2014 के लोकसभा चुनाव में बसपा का खाता नहीं खुला था और 2017 के विधानसभा चुनाव में एड़ी चोटी के कुलाबे मिलाने के बाद बसपा को मात्र 19 सीटे मिली थी। इन दोनों चुनावो में मिली विफलता के बाद ही मायवती सपा से गठबंधन को तैयार हुयी थी। गठबंधन करने और तोड़नें में मायावती को महारत हासिल है।
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