Keshari Nath Tripathi News: जब SC के आदेश ने बढ़ा दी थी केशरी नाथ की मुसीबत, पेशाब रोककर चलानी पड़ी यूपी विधानसभा

Keshari Nath Tripathi: भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता और पश्चिम बंगाल के पूर्व राज्यपाल केशरी नाथ त्रिपाठी का आज प्रयागराज में निधन हो गया।

Report :  Anshuman Tiwari
Update:2023-01-08 10:48 IST

Keshari Nath Tripathi (Pic: Social Media)

Keshari Nath Tripathi: भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता और पश्चिम बंगाल के पूर्व राज्यपाल केशरी नाथ त्रिपाठी का आज प्रयागराज में निधन हो गया। केशरी नाथ त्रिपाठी ने तीन बार उत्तर प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष की कमान संभाली। सांस लेने में तकलीफ के बाद उन्हें प्रयागराज के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया था। एक हफ्ते तक इलाज के बाद उन्हें घर लाया गया था और आज उन्हें लखनऊ पीजीआई में भर्ती कराने की तैयारी थी। इसके पूर्व ही आज सुबह करीब पांच बजे उनका निधन हो गया।

केशरी नाथ त्रिपाठी के लंबे सियासी जीवन में उनसे जुड़े हुए कई किस्से मशहूर हैं। 2017 में उनके पास बिहार के राज्यपाल पद की अतिरिक्त जिम्मेदारी भी थी। इस दौरान उन्होंने नीतीश कुमार की तीसरे नंबर वाली पार्टी को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया था। इसी के साथ हुई उनके साथ जुड़ा हुआ 1998 का एक किस्सा भी मशहूर है जब कल्याण सिंह की सरकार को बर्खास्त कर दिया गया था। उस दौरान सुप्रीम कोर्ट के सख्त आदेश पर केशरी नाथ त्रिपाठी को पेशाब रोककर विधानसभा की कार्यवाही का संचालन करना पड़ा था।

जब जगदंबिका पाल बने यूपी के सीएम

दरअसल उत्तर प्रदेश में 1998 में एक बड़ा सियासी विवाद पैदा हो गया था। उत्तर प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल रोमेश भंडारी ने कल्याण सिंह की सरकार को बर्खास्त कर दिया था। इसके साथ ही उन्होंने आनन-फानन में लोकतांत्रिक कांग्रेस के नेता जगदंबिका पाल को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी थी।

राज्यपाल की ओर से उठाए गए इस कदम के खिलाफ भाजपा ने तीखी आपत्ति जताई थी। जब यह जानकारी पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को मिली तो उन्होंने कल्याण सिंह को इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने की सलाह दी।

सुप्रीम कोर्ट ने दिया था सख्त आदेश

इसके बाद उत्तर प्रदेश के सियासी विवाद का यह मामला सुप्रीम कोर्ट की चौखट पर पहुंच गया। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में कड़ा रुख अपनाते हुए तत्काल बहुमत परीक्षण कराने का आदेश दिया। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने विधानसभा में फ्लोर टेस्ट के दौरान कई सख्त नियम भी तय कर दिए।

सुप्रीम कोर्ट का आदेश था कि बहुमत परीक्षण की कार्यवाही को पूरे किए बिना विधानसभा को स्थगित नहीं किया जा सकता। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने यह भी आदेश दिया था कि विधानसभा की कार्यवाही के संचालन के दौरान केसरीनाथ त्रिपाठी अपनी चेयर नहीं छोड़ सकेंगे। उन्हें लगातार अपनी सीट पर मौजूद रहना होगा।

केशरी नाथ इसलिए हुए परेशान

सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश केशरी नाथ त्रिपाठी के लिए बड़ी मुसीबत बन गया क्योंकि जानकारों के मुताबिक उन दिनों वे पेशाब की बीमारी से जूझ रहे थे। इस बीमारी के कारण उन्हें बार-बार पेशाब करने के लिए जाना पड़ता था। सुप्रीम कोर्ट के आदेश ने उनके सामने बड़ी समस्या पैदा कर दी। सुप्रीम कोर्ट की अवमानना से बचने के लिए केशरीनाथ त्रिपाठी ने एक दिन पहले से ही पानी का लगभग परित्याग ही कर दिया था ताकि उन्हें पेशाब करने के लिए अपनी चेयर से न उठना पड़े।

सीटों को लेकर हुआ था भारी हंगामा

सियासी विवाद को लेकर विधानसभा का माहौल काफी गरम था और विधानसभा की कार्यवाही शुरू होते ही सत्ता पक्ष और विपक्ष की सीटों को लेकर हंगामा शुरू हो गया। इस विवाद को खत्म करने के लिए केशरी नाथ ने नई व्यवस्था बनाई और उनके अगल-बगल दो कुर्सियां लगाई गईं। इन कुर्सियों पर कल्याण सिंह और जगदंबिका पाल के बैठने की व्यवस्था की गई थी। अब इसके बाद नया हंगामा यह शुरू हुआ कि कौन किस ओर बैठेगा। आखिरकार स्पीकर के निर्देश पर कल्याण सिंह को दाहिने और जगदंबिका पाल को बाईं ओर बिठाया गया। जानकारों के मुताबिक भारतीय लोकतंत्र में यह व्यवस्था पहली बार की गई थी जब स्पीकर के बगल में दो कुर्सियां लगाकर दो नेताओं को बिठाया गया।

बहुमत परीक्षण में कल्याण सिंह की जीत

सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर 26 फरवरी 1998 को यूपी विधानसभा में बहुमत परीक्षण का काम पूरा किया गया। शक्ति परीक्षण के दौरान कल्याण सिंह ने विधानसभा में एक बार फिर अपनी ताकत दिखा दी। उन्हें 225 विधायकों का समर्थन हासिल हुआ। दूसरी ओर जगदंबिका पाल 196 विधायकों का ही समर्थन हासिल कर सके। इस पूरी प्रक्रिया की निगरानी के लिए यूपी विधानसभा के भीतर 16 वीडियो कैमरे भी लगाए गए थे।

कल्याण सिंह को विधानसभा में अपना बहुमत साबित करने के लिए 213 विधायकों के समर्थन की जरूरत थी और उन्हें बहुमत के लिए निर्धारित संख्या से 12 ज्यादा विधायकों का समर्थन हासिल हुआ। बहुमत परीक्षण के दौरान उन पांच विधायकों को भी वोटिंग की अनुमति मिल गई थी जिन्हें एनएसए लगाकर जेल भेजा गया था। 

Tags:    

Similar News