मोदी की उम्मीदवारी से लोजपा को झटका, भाजपा ने चिराग की उम्मीदों पर फेरा पानी
लोजपा के संस्थापक रामविलास पासवान के निधन से रिक्त हुई इस सीट पर लोजपा की भी नजर टिकी हुई थी। सियासी जानकारों का कहना है कि लोजपा मुखिया चिराग पासवान इस सीट से अपनी मां रीना पासवान को राज्यसभा भेजने की कोशिश में जुटे हुए थे मगर भाजपा ने उन्हें करारा झटका दिया है।
पटना: बिहार में राज्यसभा की एक सीट पर होने वाले उपचुनाव में भाजपा ने लोजपा को करारा झटका दिया है। लोजपा के संस्थापक रामविलास पासवान के निधन से रिक्त हुई इस सीट पर लोजपा की भी नजर टिकी हुई थी। सियासी जानकारों का कहना है कि लोजपा मुखिया चिराग पासवान इस सीट से अपनी मां रीना पासवान को राज्यसभा भेजने की कोशिश में जुटे हुए थे मगर भाजपा ने उन्हें करारा झटका दिया है।
जदयू की ओर से भी यह सीट लोजपा को न देने का दबाव डाला जा रहा था। भाजपा ने इस सीट से पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी को चुनाव मैदान में उतार कर चिराग की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है।
लोजपा ने अपनाया अलग रास्ता
बिहार में हाल में हुए विधानसभा चुनाव में लोजपा ने अलग रास्ता अपना लिया था। लोजपा ने विधानसभा की तमाम सीटों पर जदयू प्रत्याशियों के खिलाफ अपने प्रत्याशी खड़े कर दिए थे। इसके बाद बिहार भाजपा के नेताओं की ओर से बार-बार यह स्पष्ट किया गया कि लोजपा अब एनडीए का हिस्सा नहीं है।
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दूसरी और लोजपा प्रमुख चिराग मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और जदयू पर तो लगातार हमले बोलते रहे मगर उन्होंने भाजपा के खिलाफ कुछ भी नहीं कहा। चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने खुद को मोदी का हनुमान बताते हुए यहां तक कहा था कि अगर मेरा सीना चीरकर देख लिया जाए तो इसमें मोदी की ही तस्वीर निकलेगी।
लोकसभा चुनाव में हुआ था समझौता
लोजपा को राज्यसभा की एक सीट देने का फैसला गत लोकसभा चुनाव के दौरान सीट शेयरिंग फार्मूले के तहत तय हुआ था। पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा और जदयू ने 17-17 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे जबकि लोजपा को 6 सीट चुनाव लड़ने के लिए दी गई थी। इसके साथ ही राज्यसभा की एक सीट भी लोजपा को दी गई थी। इसी सीट पर जीत कर रामविलास पासवान राज्यसभा पहुंचे थे मगर पिछले दिनों उनका निधन हो गया। उनके निधन के बाद रिक्त हुई सीट पर लोजपा की नजर लगी हुई थी। सियासी जानकारों का कहना है कि इस सीट से चिराग अपनी मां रीना पासवान को राज्यसभा भेजना चाहते थे।
चिराग के हमलों से जदयू नाराज
दूसरी ओर विधानसभा चुनाव के दौरान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर चिराग के लगातार हमलों से जदयू काफी नाराज है और उसने यह सीट लोजपा को न देने का दबाव बना रखा था। आखिरकार भाजपा की ओर से इस सीट पर पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी को उम्मीदवार घोषित कर दिया गया है। लोजपा राष्ट्रीय स्तर पर अभी भी एनडीए में भाजपा की सहयोगी है मगर भाजपा बिहार की मौजूदा सियासी स्थितियों को देखते हुए जदयू को नाराज नहीं करना चाहती थी। इसी कारण भाजपा की ओर से सुशील मोदी को चुनाव मैदान में उतारा गया है।
मोदी के जदयू नेताओं से अच्छे रिश्ते
सियासी जानकारों का कहना है कि सुशील मोदी के नाम पर जदयू को भी कोई आपत्ति नहीं होगी। सुशील मोदी के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और अन्य जदयू नेताओं के साथ अच्छे रिश्ते हैं और जदयू को सुशील मोदी को समर्थन देने में कोई आपत्ति नहीं होगी। इसी कारण भाजपा ने काफी सोच समझकर सियासी चाल चली है और सुशील मोदी को इस बार डिप्टी सीएम का पद न देने के बाद उन्हें राज्यसभा में भेजने का फैसला किया है। भाजपा के इस कदम के बाद यह भी हो गया है कि सुशील मोदी अब केंद्र की राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाएंगे।
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महागठबंधन के कदम पर टिकी नजर
यदि इस सीट पर महागठबंधन की ओर से भी कोई उम्मीदवार खड़ा किया जाता है तो जीतने वाले उम्मीदवार को प्रथम वरीयता के कम से कम 122 वोट हासिल करने होंगे। माना जा रहा है कि भाजपा, जदयू, हम और वीआईपी मिलकर सुशील मोदी को चुनाव जिताने में कामयाब हो जाएंगे। अगर महागठबंधन की ओर से उम्मीदवार उतारा जाता है तो चुनाव के लिए 14 दिसंबर को मतदान होगा। अब हर किसी की नजर महागठबंधन की ओर से उठाए जाने वाले कदम पर टिकी है। यदि महागठबंधन ने भी इस सीट से अपना उम्मीदवार उतार दिया तो इस चुनाव में जबर्दस्त जोड़-तोड़ की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।
अंशुमान तिवारी