लापता BJP के ये दिग्गज: कभी बोलती थी तूती, कहाँ हैं आज
योगी सरकार के तीन वर्ष पूरे हो चुके हैं और केन्द्र में मोदी सरकार-2 का एक वर्ष पूरा होने वाला हैं लेकिन उत्तर प्रदेश में जिन पूर्व अध्यक्षों के कडे परिश्रम और सफल नेतृत्व के सहारे भाजपा को इतनी बड़ी ताकत मिली।
श्रीधर अग्निहोत्री
लखनऊ: योगी सरकार के तीन वर्ष पूरे हो चुके हैं और केन्द्र में मोदी सरकार-2 का एक वर्ष पूरा होने वाला हैं लेकिन उत्तर प्रदेश में जिन पूर्व अध्यक्षों के कडे परिश्रम और सफल नेतृत्व के सहारे भाजपा को इतनी बड़ी ताकत मिली।
उन अध्यक्षों में तीन ऐसे भी प्रदेश अध्यक्ष है जो केन्द्र और प्रदेश में अपनी सरकारें रहते हुए भी खुद को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं। इन नेताओ के योगदान की चर्चा कार्यकर्ता आए दिन करते रहते हैं।
सपा की पूर्ण बहुमत की सरकार में डा वाजपेयी ने दिखाया दमखम
यहां हम बात कर रहे हैं भाजपा के उन तीन पूर्व प्रदेश अध्यक्षों डा. लक्ष्मीकांत वाजपेयी विनय कटियार और ओमप्रकाश सिंह की। जिनके कठिन परिश्रम के कारण ही पार्टी ने उंचाईयों को छुआ।
इनमें डा लक्ष्मीकांत वाजपेयी ने उस दौर में संघर्ष किया जब प्रदेश में समाजवादी पार्टी की पूर्ण बहुमत की सरकार थी और भाजपा सदन से लेकर सड़क तक बेहद कमजोर थी।
सदन में मात्र 38 विधायकों के दम पर डा वाजपेयी ने सपा सरकार को घेरने में कोई कोताही नहीं बरती। यहां तक कि सपा सरकार की नीतियों के कडे़ विरोध के चलते ही विधानसभा के अंदर भाजपा विधायकों और सत्तापक्ष के विधायकों के बीच मारपीट तक की नौबत आई। डा वाजपेयी के नेतृत्व में विधानसभा के सामने पार्टी विधायकों को लेकर 24 घंटे का ऐतहासिक धरना राजनीति के जानकार अबतक भूले नहीं है।
डा वाजपेयी के कार्यकाल में ही भाजपा ने 2012 के नगर निकाय चुनाव में 12 नगर निगमों में 9 पर अपना मेयर बनवाया। यूपी में अध्यक्ष रहते अमित शाह के साथ डा बाजपेयी ने पार्टी को 2014 के लोकसभा चुनाव में 71 और एनडीए को 73 रेकॉर्ड लोकसभा सीटें दिलवाई।
अब हाल यह है कि डा लक्ष्मीकांत वाजपेयी एक सामान्य कार्यकर्ता के तौर पर सुबह से लेकर शाम तक अधिकारियों और मंत्रियों के यहां जनता के कामों के लिए चक्कर लगाते देखे जा सकते हैं।
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पार्टी के बारे में कुछ भी कहने से बचते हैं कटियार
अयोध्या आंदोलन का पर्याय रहे विनय कटियार भी इन दिनों पार्टी में पूरी तरह से उपेक्षित हैं। वह पार्टी के बारे में कुछ भी कहने से बचते हैं पर उनके मन में अकुलाहट का भाव साफ दिखता है।
पिछले साल नवम्बर में उनकी सुरक्षा में भी कटौती की गयी। तीन बार लोकसभा सदस्य रहे विनय कटियार को राज्यसभा का कार्यकाल पूरा होने पर फिर से उच्च सदन नहीं भेजा गया।
उम्मीद थी कि विनय कटियार को 2019 के लोकसभा चुनाव में फैजाबाद से टिकट दिया जाएगा लेकिन पार्टी नेतृत्व ने ऐसा नहीं किया। हाल यह है कि मोदी सरकार का एक साल का कार्यकाल पूरा होने को है पर विनय कटियार को अभी तक कहीं ‘एडजस्ट’ नहीं किया है।
राजनीतिक की मुख्य धारा से अलग-थलग हैं ओमप्रकाश सिंह
पिछड़ों के बडे़ नेता ओमप्रकाश सिंह राजनीतिक की मुख्य धारा से लगभग अलग हो चुके हैं। भाजपा में पिछड़ो, खास तौर पर कुर्मी जाति के सबसे बडे़ नेता ओमप्रकाश सिंह जब 2012 में अपनी परम्परागत विधानसभा सीट चुनार (मिर्जापुर) से चुनाव हार गए तो उम्मीद बधीं कि 2014 के लोकसभा चुनाव में उन्हे मिर्जापुर से उतारा जाएगा।
पर गठबन्धन के चलते यह सीट अपना दल की अनुप्रिया पटेल को दे दी गयी। अनुप्रिया चुनाव जीतकर सांसद बन गयी। फिर 2017 के विधानसभा चुनाव में चुनार सीट पर ओमप्रकाश के बेटे अनुराग सिंह को टिकट दिया, अनुराग सिंह विधायक तो बन गए पर ओमप्रकाश सिंह को अबतक कोई पद नहीं दिया गया है।
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कल्याण और कलराज को राज्यपाल का पद, राजनाथ सिंह को मिला रक्षा मंत्री
इन पूर्व अध्यक्षों में कल्याण सिंह राजस्थान और हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल से सुशोभित हो चुके हैं। कलराज मिश्र मोदी सरकार में सूक्ष्म एवं लघु उद्योग मंत्री के अलावा हिमाचंल प्रदेश के राज्यपाल होने के बाद इस समय राजस्थान के राज्यपाल हैं। राजनाथ सिंह केन्द्रीय गृह मंत्री रहने के बाद इस बार मोदी सरकार-2 में रक्षा मंत्री के पद पर अपनी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभा रहे हैं।
केशरी रह चुके हैं राज्यपाल, डा महेन्द्र केन्द्र में तो केशव-शाही प्रदेश में मंत्री
इसी तरह केशरीनाथ त्रिपाठी बिहार, मिजोरम और पश्चिम बंगाल के राज्यपाल की भूमिका निभाकर अब राजनीति से लगभग सन्यास ले चुके हैं।
वहीं डा महेन्द्र नाथ पाण्डेय दूसरी बार चंदौली लोकसभा से सांसद बनकर मोदी सरकार-2 में कौशल विकास मंत्रालय का कार्याभार संभाले हुए हैं। एक और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सूर्य प्रताप शाही 2002, 2007 और 2012 का विधानसभा चुनाव हारने के बाद जब 2017 में पथरदेवा (देवरिया) से चुनाव जीते तो योगी सरकार में उन्हे कृषि मंत्री बनाया गया।
वहीं डा रमापति राम त्रिपाठी को 2019 में मोदी लहर के दौरान पार्टी नेतृत्व देवरिया से चुनाव जितवाकर संसद ले गया। एक और भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य भी इस सरकार में डिप्टी सीएम के पद पर आसीन हैं। पार्टी ने उन्हे विधानपरिषद से चुनकर डिप्टी सीएम की जिम्मेदारी सौंपने का काम किया है।
अब एक नजर भाजपा के प्रदेश अध्यक्षों पर
पार्टी की स्थापना के बाद से यूपी में वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह 16वें अध्यक्ष हैं। पार्टी की स्थापना के बाद पहले अध्यक्ष माधव प्रसाद त्रिपाठी (1980-1984), कल्याण सिंह (1984-1989) राजेन्द्र कुमार गुप्ता (1989-1991) ने पार्टी का नेतृत्व किया।
इसके बाद कलराज मिश्र (05 अगस्त 1991) के बाद दोबारा फिर (19 सितम्बर 1995) को यह जिम्मेदारी ली। प्रदेश में हुए सत्ता परिर्तन के चलते राजनाथ सिंह (25 मार्च 1997) नेे भाजपा की कमान संभाली।
इसके बाद ओमप्रकाश सिंह ( 22 नवम्बर 1999), कलराज मिश्र (17 अगस्त 2000),विनय कटियार (24 जून 2002) केशरी नाथ त्रिपाठी (18 जुलाई 2004), डा रमापति राम त्रिपाठी (2 सितम्बर 2007),सूर्य प्रताप शाही (12 मई 2010), डा लक्ष्मीकांत वाजपेयी (13 अप्रैल 2012), केशव प्रसाद मौर्य (8 अप्रैल 2016),डा महेन्द्र नाथ पाण्डेय (31 अगस्त 2017) के बाद स्वतंत्रदेव सिंह को पिछले साल 19 जुलाई से प्रदेश की कमान संभाले हुए हैं।
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