ऐसे होते हैं दंगाई: जानें क्यों प्रदर्शन को देते हैं आग, करते हैं हिंसा

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में नागरिक संशोधन कानून (CAA) को लेकर एक बार फिर से हिंसा भड़क चुकी है। उत्तर पूर्वी दिल्ली में CAA को लेकर पिछले दो दिनों से हर तरफ पत्थरबाजी और आगजनी का माहौल देखने को मिल रहा है।

Update:2020-02-26 15:09 IST

नई दिल्ली: राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में नागरिक संशोधन कानून (CAA) को लेकर एक बार फिर से हिंसा भड़क चुकी है। उत्तर पूर्वी दिल्ली में CAA को लेकर पिछले दो दिनों से हर तरफ पत्थरबाजी और आगजनी का माहौल देखने को मिल रहा है। उत्तर पूर्वी दिल्ली नफरत की आग में झुलस रही है। दिल्ली हिंसा में अब तक 20 लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि कई 190 से ज्यादा लोग घायल हैं।

कई इलाकों में लागू हुई धारा 144

सीलमपुर, भजनपुरा, मौजपुर, जाफराबाद जैसे इलाकों में उपद्रवियों ने जमकर हिंसा की। स्थिति के मद्देनजर हिंसाग्रस्त इलाकों में कर्फ्यू लगा दिया गया है। साथ ही कई इलाकों में धारा 144 लागू की गई है। कई इलाकों में अर्धसैन्य पुलिस के साथ मिलकर मार्च निकाल रहे हैं।

क्या दंगे भड़काना इतना आसान है?

इस हिंसा पर राजनीति शुरु हो गई है। साथ ही दिल्ली के लोगों का भी ये मानना है कि इस तरह हो रहे हिंसक प्रदर्शन के लिए सियासत जिम्मेदार है। कुछ लोग ऐसा भी कह रहे हैं कि ये दंगे जानबूझकर कराए जा रहे हैं और ऐसे हालात जानबूझकर पैदा किए गए हैं, ताकि दंगे भड़क उठे। लेकिन अब सवाल ये उठता है कि क्या सच में दंगे करवाना और दंगे भड़काना इतना आसान होता है?

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दंगों का इतिहास है पुराना?

वैसे तो हमारे देश में दंगों का इतिहास काफी पुराना रहा है। यहां पर छोटी-छोटी बातों पर कई बार दंगे भड़के हैं। ऐसे कई राज्य और इलाके हैं जहां से अक्सर दंगों की खबरें आती रहती हैं। दिल्ली में भी पिछले साल नागरिकता संशोधन बिल पास होने के बाद दंगे की स्थितियां पैदा हो गई थीं।

2017 में दंगों की संख्या में आई बढ़ोत्तरी

हालांकि नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) के रिकॉर्ड्स के मुताबिक, साल 2017 में सांप्रदायिक दंगों की संख्या में बढ़ोत्तरी देखी गई थी, लेकिन नए रिकॉर्ड्स के मुताबिक उसके बाद दंगों की संख्या में कमी आई है। हाल ही में देश के अलग-अलग इलाकों से हिंसा और दंगों की खबरें लगातार आती रही हैं।

NCRB के रिकॉर्ड्स के मुताबिक, साल 2017 में भारत में कुल 90,394 दंगों के मामले दर्ज किए गए थे, जिसमें 723 ऐसे मामले थे जो साम्प्रदायिक थे। इस रिकॉर्ड को देखा जाए तो हर रोज तकरीबन 161 मामले हुए और जिसके हर रोज 247 लोग शिकार हुए। NCRB के मुताबिक, साल 2000 से 2013 तक हर साल करीब 64,822 दंगे हुए।

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हालांकि लोकसभा में सरकार ने एक सवाल का जवाब देते हुए बताया था कि साल 2017 के खत्म होते होते कुल 2920 सांप्रदायिक घटनाएं हुई थीं, जिसमें करीब 389 लोग मारे गए थे और तकरीबन 8890 लोग घायल हो गए थे। इसकी जानकारी गृह मंत्रालय ने 06 फरवरी 2018 में लोकसभा में दी थी।

क्या थी दंगों की वजह?

संसद में जब दंगों को लेकर बहस छिड़ी तो उस पर गृह मंत्रालय ने बताया कि इनमें से ज्यादातर सांप्रदायित दंगों की वजह सोशल मीडिया पर आपत्ति जनक पोस्ट, लिंग संबंधी विवाद और धार्मिक स्थान रहा है।

अब हम आपको जवाब देने जा रहे हैं कि दंगे के पीछे वाकई किसी हाथ होता है या नहीं?

वैसे तो भारत में दंगों और उसके पीछे की वजहों पर ज्यादा शोध नहीं किए गए हैं। लेकिन जो भी शोध हुए हैं, उनमें ये माना गया है कि इस संबंध में शोध इसलिए कम होते हैं क्योंकि शोध में इनके सही आंकड़ों का पता नहीं चल पाता है। साथ ही ऐसे मामले कोर्ट में अधिक समय तक चलते हैं।

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दंगे कभी अपने आप नहीं होते!

हाल ही में दिए गए एक इंटरव्यू के दौरान पूर्व IAS ऑफिसर और सामाजिक कार्यकर्ता (Social Worker) हर्ष मंदर ने कहा था कि, दंगे कभी भी अपने आप नहीं होते। उन्होंने कहा था कि मैं पिछले कई सालों से सामाजिक हिंसा (Social violence) की स्टडी कर रहा हूं और यह पक्के तौर पर कह सकता हूं कि दंगे अपने आप नहीं होते पर करवाए जाते हैं। उन्होंने कहा कि मैंने बतौर IAS ऑफिसर कई दंगे देखे हैं और अगर दंगे कुछ घंटों से ज्यादा समय तक चले तो ये मान लीजिए कि दंगा प्रशासन की सहमति से हो रहा है।

इन तीन चीजों की होती है जरुरत

हर्ष मंदर ने कहा था कि दंगे करवाने के लिए केवल तीन चीजों की जरुरत होती है। पहला नफरत पैदा करना, दूसरा दंगों में इस्तेमाल होने वाले हथियारों को बांटना। तीसरा ईंट-पत्थर फेंक कर तनाव बनाना। साथ ही ये भी है कि इसके पीछे कहीं न कहीं पुलिस भी जिम्मेदार होती है।

वहीं पूर्व IPS ऑफिसर जुलियो रिबेरो और विभूति नारायण राय ने भी दंगों में पुलिस की भूमिका पर सवाल खड़े किए हैं। विभूति नारायण ने अपनी किताब 'सांप्रदायिक दंगे और भारतीय पुलिस' में लिखा है कि सांप्रदायिक दंगों को प्रशासन की एक बड़ी असफलता के रूप में लिया जाना चाहिए।

इन सभी के बाद सवाल ये खड़ा होता है कि अगर सच में दंगे भड़काने से होते हैं और इनके पीछे कोई होता है तो आखिर दिल्ली में दंगों के पीछे कौन है? आखिर कितने दिन तक राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली नफरत की आग में जलती रहेगी।

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