मोदी से कांपा चीन: भारत के इन 3 फैसलों ने दिया करारा झटका, उठाए गए ये कदम

चीन से फैले कोरोना वारयस ने पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले रखा है। इस महामारी ने अंतरराष्ट्रीय संबंधों को भी बुरी तरह प्रभावित किया है। कोरोना वायरस को लेकर चीन हमेशा से ही कई देशों के निशाने पर रहा है।

Update:2020-05-25 17:27 IST

लखनऊ: चीन से फैले कोरोना वारयस ने पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले रखा है। इस महामारी ने अंतरराष्ट्रीय संबंधों को भी बुरी तरह प्रभावित किया है। कोरोना वायरस को लेकर चीन हमेशा से ही कई देशों के निशाने पर रहा है। जहां एक ओर अमेरिका चीन से अपनी सभी संबंधों को खत्म करने की बात कर रहा है तो वहीं दूसरी ओर यूरोप के तमाम देशों ने भी कोरोना वायरस को लेकर चीन के खिलाफ जांच कराने की मांग की है। इनके अलावा भारत ने भी चीन के खिलाप कई अहम कदम उठाए हैं।

चीन ने इस कोरोना काल में चीन पर सीधे तौर पर प्रभाव डालने वाले कई कदम उठाए हैं। तो चलिए आपको बताते हैं कि भारत की तरफ से चीन के खिलाफ कौन-कौन से कदम उठाए गए हैं।

प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के नियमों को किए सख्त

सबसे पहले तो भारत ने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) के नियमों को सख्त कर दिया है। जिसके बाद भारत की सीमा से जुड़े किसी भी देश के नागरिक या फिर कंपनी को निवेश से पहले सरकार की मंजूरी लेना अनिवार्य हो गया है। दरअसल, भारत को आशंका थी कि कोरोना वायरस की महामारी का फायदा उठाते हुए पड़ोसी देश कमजोर हुईं भारतीय कंपनियों का अधिग्रहण न कर ले इसलिए भारत ने ये कदम उठाया है।

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भारत द्वारा FDI के नियमों में बदलाव करने के तुरंत बाद चीन की प्रतिक्रिया सामने आई। चीन ने भारत के इस कदम पर नाराजगी जताते हुए कहा था कि यह विश्व व्यापार संगठन के नियमों के खिलाफ है। यहीं नहीं चीन की तरफ से भारत को मेडिकल सप्लाई बैन करने की धमकी भी दे दी थी।

चीन ने दी थी मेडिकल सप्लाई बंद करने की धमकी

चीनी सरकार के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने लिखा था कि, भारत काफी हद तक मेडिकल सप्लाई के लिए चीन पर निर्भर है। भारतीयों कंपनियों के कथित अवसरवादी अधिग्रहण को रोकने की कोशिश मेडिकल सप्लाई पाने में उसके लिए मुश्किल का कारण बन सकती है।

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साथ ही कहा गया था कि इस तरह के प्रतिबंध भारत के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर के लिए घातक साबित हो सकते हैं। जल्द ही भारत में चीनी निवेश पर इस नई नीति का असर देखने को मिलेगा। लेख में दावा किया गया था कि चाहे भारत के लिए दूसरे दरवाजे खुल भी हों, लेकिन भारत के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में चीन की कमी को और कोई नहीं भर पाएगा।

भारत को चीन के साथ सहयोग को बढ़ावा देना चाहिए

लेख में यह भी लिखा गया था कि हो सकता है भारत अगला मैन्युफैक्चरिंग हब बन जाए लेकिन मौजूदा समय में आर्थिक संकट की वजह से आपूर्ति चेन बाधित है। ऐसा कहा जा सकता है कि भारत को मैन्युफैक्चरिंग हब बनने के लिए अभी काफी लंबा समय लगे। ऐसे में भारत को चीन के साथ सहयोग को बढ़ावा देना चाहिए।

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कोरोना वायरस की जांच का किया समर्थन

इसके अलावा भारत ने पिछले हफ्ते चीन के खिलाफ एक और बड़ा कदम उठाया। जो था कोरोना वायरस की जांच का समर्थन करना। कोरोना वायरस को लेकर केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने सबसे पहले कहा था कि कोरोना नैच्युरल नहीं है, बल्कि यह किसी लैब में पैदा हुआ है। इसके बाद भारत ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की बैठक में कोरोना वायरस के उत्पत्ति की स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच करने की भी मांग का समर्थन किया।

इससे पहले, यूरोप और ऑस्ट्रेलिया कोरोना वायरस को लेकर इस तरह की जांच की मांग उठाते रहे हैं। इसके बाद महामारी की शुरूआत के बाद से भारत पहली बार ऑफिशियल तौर पर एक पक्ष खड़ा हुआ। हालांकि इस मसौदे में वुहान और चीन का नाम नहीं था, लेकिन जाहिर है कि अगर ये जांच शुरू हुई तो चीन की मुश्किलें जरूर बढ़ेंगी।

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ताइवान को लेकर कूटनीतिक चुनौतियां

वहीं चीन ताइवान को लेकर भी भी कूटनीतिक चुनौतियों का सामना कर रहा है। चीन और ताइवान के बीच विवाद का एक बड़ा कारण यह है कि चीन हमेशा से ताइवान को अपना अभिन्न हिस्सा बताता रहा है जबकि ताइवान खुद को अलग देश बताता है। यह विवाद 1949 में माओत्से तुंग के समय से ही चल रहा है। हॉन्गकॉन्ग भी वन नेशन टू सिस्टम के तहत चीन के अंतर्गत आता है।

वहीं भारत हमेशा से ही ताइवान को लेकर बीजिंग की 'वन चाइना पॉलिसी' को मानता आ रहा है और उसके साथ किसी भी प्रकार के कूटनीतिक संबंध स्थापित नहीं किए हैं। लेकिन हाल ही में इस नीति में बदलाव के कुछ संकेत मिले हैं। जब पिछले हफ्ते ताइवान की साई इंग-वेन ने दूसरी बार राष्ट्रपति के तौर पर शपथ ग्रहण की तो शपथ समारोह में बीजेपी के दो सांसदों का भी बधाई संदेश दिखाया गया।

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अमेरिका को दी थी अंजाम भुगतने की धमकी

ताइवान की राष्ट्रपति साई-इंग वेन चीन के वन नेशन टू सिस्टम को खारिज करती आई हैं। बता दें कि चीन ताइवान की सरकार के साथ-साथ उन देशों का भी विरोध करता आया है जो ताइवान का समर्थन करते हैं या फिर उसके साथ संबंध मजबूत करना चाहते हैं। इसे इस तरह से भी समझा जा सकता है कि जब अमेरिकी विदेश मंत्री ने इस हफ्ते ताइवान के लोकतांत्रिक मूल्यों की सराहना करते हुए ताइवान राष्ट्रपति को बधाई दी तो चीन ने इस पर अमेरिका को अंजाम भुगतने तक की धमकी दे डाली थी। वहीं अब मोदी सरकार के इस कदम से चीन की चिंता अवश्य बढ़ेगी।

पूर्वी लद्दाख में LAC से सटे इलाकों में भारत-चीन में झड़प जारी

वहीं इन दिनों भारत और चीनी सेनाओं के बीच भी तनातनी जारी है। दोनों देशों के बीच तनाव चरम पर है। बीते दिनों ऐसी कई घटनाएं सामने आई हैं जब पूर्वी लद्दाख में LAC से लगे इलाके पैगोंग शो और गालवान घाटी में दोनों देशों के सैनिकों के बीच झड़प हुई। दरअसल, चीन उत्तरी लद्दाख इलाके पर कब्जा करना चाहता है इसलिए उसकी तरफ से भारत द्वारा हो रहे निर्माण कार्य को लेकर विरोध जताया जाता रहा है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, चीन के सैन्य दबाव बनाने के बावजूद भारत निर्माण कार्य नहीं छोड़ेगा।

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