भारत के दो रजनीकांत: ऐसे तय किया फर्श से अर्श तक का सफर, संघर्ष की ये है गाथा

दूसरे रजनीकांत आरके श्रीवास्तव का जन्म बिहार के रोहतास जिले के बिक्रमगंज में एक गरीब परिवार में हुआ था। जिनका पूरा नाम रजनीकांत श्रीवास्तव है।

Update: 2020-09-14 07:04 GMT

देश के दो रजनीकांत एक बस कंडक्टर तो दुसरा ऑटो रिक्शा वाला। इनके फर्श से अर्श तक का सफर की कहानी आप जरूर पढ़ें। अपने गरीबी को काफी पीछे छोड़ कड़ी मेहनत के बल पर एक ने अभिनय तो दुसरे ने शिक्षा के क्षेत्र में पहचान स्थापित की। आज देश- विदेश में सुपरस्टार माने जाने वाले रजनीकांत करोड़ों दिलों की धड़कन हैं। तो वहीं दूसरा रजनीकांत देश-विदेश में अपने शैक्षणिक कार्यशैली के चलते मैथेमैटिक्स गुरू आरके श्रीवास्तव के नाम से जाने जाते हैं। जिनका नाम वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में भी दर्ज है। लाखों युवायों के रोल मॉडल बन चुके हैं।

एक बस कंडक्टर से सुपरस्टार तक का सफर

दक्षिण भारतीय सिनेमा की शान और एक्शन फिल्मों का सुपरस्टार माने जाने वाले रजनीकांत करोड़ों दिलों की धड़कन हैं। दक्षिण भारत में उन्हें भगवान की तरह पूजा जाता है। रजनीकांत एक मिसाल हैं कि कैसे कोई सामान्य सी शक्ल सूरत का इंसान अपनी अनोखी स्टाइल और प्रतिभा के दम पर पूरे विश्व को अपना दीवाना बना सकता है। रजनी ने एक बहुत ही सामान्य आदमी से बेहद सफल सितारा बनने का सफर तय किया है। उनकी सफलता की कहानी कई लोगों के लिए प्रेरणा है।

सुपरस्टार रजनीकांत (फाइल फोटो)

तमिल सिनेमा के इस सुपरस्टार का जन्म 12 दिसंबर 1949 को कर्नाटक के एक गरीब मराठी परिवार में हुआ। शिवाजी राव गायकवाड़ नाम के इस सामान्य से बस कंडक्टर से मेगाहिट 'शिवाजी द बॉस' के नायक रजनीकांत का सफर बहुत मुश्किलों भरा था। घर के पास बने राम मंदिर के सामने स्टंट दिखाने वाले रजनी सिगरेट उछालने और चश्मा पहनने की अलग स्टाइल के लिए मशहूर हो गए, जो उनकी फिल्मों का ट्रेडमार्क बन गया।

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अपने शुरुआती दिनों में गरीबी के कारण पढ़ाई छोड़ बस कंडक्टर बने रजनी आज एशिया में जैकी चेन के बाद सबसे महंगे स्टार हैं। अपनी फिल्म 'एंधिरन' (रोबोट) के लिए 45 करोड़ का मेहनताना लिया और एक फिल्म के लिए अधिकतम राशि पाने का रिकॉर्ड बनाया। अभिनेता के रूप में रजनी की पहली कन्नड़ फिल्म 'कथा संगम' 1975 में आई। लेकिन रजनीकांत को पहचान बालाचंदर की फिल्म 'अपूर्व रागांगल' नाम की तमिल फिल्म ने दिलावाई। इस फिल्म में डायलॉग डिलेवरी और पंच डायलॉग ने रजनीकांत को अलग पहचान दी।

तमिल सिनेमा सहित बॉलीवुड में भी हिट हैं थलाइवा

सुपरस्टार रजनीकांत (फाइल फोटो)

तमिल सिनेमा में सुपरस्टार के रूप में स्थापित हो जाने के बाद रजनीकांत की कई फिल्म 'मेगा हिट' साबित हुईं। उनकी ब्लाकबस्टर फिल्मों की फेहरिस्त में थालापथी (1991), अन्नामलाई (1992), इजामन (1993), मुथू (1995), बाशा (1995), अरुनांचलम (1997), पडियप्पा (1999), चंद्रामुखी (2005), शिवाजी - द बॉस (2007), कुशेलन (2008) और एंधिरन (2010) शामिल हैं।

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रजनीकांत ने न केवल दक्षिण भारतीय सिनेमा में अपनी पहचान बनाई, बल्कि उत्तर भारत की चर्चित फिल्में अंधा कानून (1983), गिरफ्तार (1985), उत्तर दक्षिण (1987), चालबाज (1989), हम (1991) से बॉलीवुड में भी अपनी छाप छोड़ी। इतनी सफलता पाकर भी रजनी जमीन से जुड़े हुए हैं। वे आम आदमी के हीरो हैं और इसीलिए उन्हें जनता का प्यार मिलता है। रजनी ने गरीबी देखी है और इसीलिए वे हर जरूरतमंद की मदद में जरा भी देर नहीं करते।

दूसरे रजनीकांत का जीवन भी काफी संघर्ष भरा

मैथेमैटिक्स गुरू आरके श्रीवास्तव (फाइल फोटो)

वहीं दूसरे रजनीकांत आरके श्रीवास्तव का जन्म बिहार के रोहतास जिले के बिक्रमगंज में एक गरीब परिवार में हुआ था। जिनका पूरा नाम रजनीकांत श्रीवास्तव है। इनके नाम के पीछे भी दिलचस्प कहानी है। रजनीकांत श्रीवास्तव के बड़े भाई स्व शिव कुमार श्रीवास्तव फिल्म अभिनेता रजनीकांत के बहुत बड़े फैन थे तो अपने छोटे भाई का नाम रजनीकांत रखा। उनके पिता एक किसान थे। जब आरके श्रीवास्तव पांच वर्ष के थे तभी उनके पिता पारस नाथ लाल इस दुनिया को छोड़ कर चले गए। पिता के गुजरने के बाद आरके श्रीवास्तव की मां ने इन्हें काफी गरीबी को झेलते हुए पाला पोषा।

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आरके श्रीवास्तव को हिंदी माध्यम के सरकारी स्कूल में भर्ती कराया। उन्होंने अपनी शिक्षा के उपरांत गणित में अपनी गहरी रुचि विकसित की। जब आरके श्रीवास्तव बड़े हुए तो फिर उन पर दुखों का पहाड़ टूट गया। पिता की फर्ज निभाने वाले एकलौते बड़े भाई शिवकुमार श्रीवास्तव भी इस दुनिया को छोड़ कर चले गए। अब इसी उम्र में आरके श्रीवास्तव पर अपने तीन भतीजियों की शादी और भतीजे को पढ़ाने लिखाने सहित सारे परिवार की जिम्मेदारी आ गयी। आरके श्रीवास्तव कहते है मेरे पापा और भैया आज मेरे साथ नही है लेकिन उनका आशीर्वाद हमेशा मेरे साथ रहता है।

मां को देते हैं अपनी उपलब्धियों का श्रेय

मैथेमैटिक्स गुरू आरके श्रीवास्तव (फाइल फोटो)

आरके श्रीवास्तव अपनी उपलब्धियों का श्रेय अपनी मां के द्वारा बढ़ाये गए मनोबल , भाभी के आशीर्वाद और उनके कड़े संघर्ष कभी न हार न मानने की सीख को देते हैं। परिवार की हालत ऐसी नहीं थी कि भरपेट भोजन मिल सके। कुछ वर्षों के बाद बड़े भाई के द्वारा रिस्तेदारों से पैसे लेकर खरीदे गए ऑटो रिक्शा से जो आमदनी होती जो पैसा शाम को घर आता था जिससे घर का खर्च चलता। आरके श्रीवास्तव कहते हैं कि उनके जो भी उपलब्धिया हैं वे सब माँ के आशीर्वाद के कारण ही है। माँ के संघर्षों का व्याख्यान शब्दो मे करना नामुमकिन है। आर्थिक रूप से गरीब स्टूडेंट्स के सपनो को पंख देने वाले का नाम है आरके श्रीवास्तव।

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आरके श्रीवास्तव अब लाखो युवाओं के रोल मॉडल बन चुके हैं। बिहार के इस शिक्षक ने अपने कड़ी मेहनत, पक्का इरादा और उच्ची सोच के दम पर ही शीर्ष स्थान को प्राप्त कर लिया है। करीब एक दशकों से भी अधिक समय से आरके श्रीवास्तव देश के शिखर शिक्षक बने हुए हैं। देश के टॉप 10 शिक्षको में भी इन बिहारी शिक्षकों का नाम आ चुका है। गणित के शिक्षक हैं, परन्तु इनके शैक्षणिक कार्यशैली एक दशकों से चर्चा का विषय बना हुआ है। बिहार सहित आज पूरे देश की दुआएं आरके श्रीवास्तव को मिलता है। विदेशो में भी इन बिहारी शिक्षक के पढ़ाने के तरीको को भरपूर पसंद किए जाते हैं। उन सभी देशों में भी इनके शैक्षणिक कार्यशैली को पसंद किया जाता है। जहां पर भारतीय मूल के लोग बसे हुए हैं।

सिर्फ 1 रुपया लेते हैं गुरु दक्षिणा

मैथेमैटिक्स गुरू आरके श्रीवास्तव (फाइल फोटो)

मैथेमैटिक्स गुरू आरके श्रीवास्तव का व्यक्तित्व सरल है। पिता के गुजरने के बाद अपने पढ़ाई के दौरान गरीबी के कारण उच्च शिक्षा में होने वाले परेशानियों को नजदीक से महसूस किया है। ये बिहारी शिक्षक बताते हैं कि पैसों के आभाव के कारण हमें बड़े बड़े शैक्षणिक संस्थानो में पढ़ने का सौभाग्य नही मिला। लेकिन हम वैसे जरूरतमंद स्टूडेंट्स के सपने को पंख दे रहें जिनकी आर्थिक स्थिति बहुत कमजोर है। जो आज के समय के कोचिंग की लाखो फी देने में सक्षम नहीं हैं परन्तु उनका सपना बड़ा है। आपको बताते चलें की आरके श्रीवास्तव सिर्फ 1 रुपया गुरु दक्षिणा लेकर गणित का गुर स्टूडेंट्स को सिखाते हैं।

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ये शिक्षक सैकड़ों आर्थिक रूप से गरीब स्टूडेंट्स को आईआईटी, एनआईटी,बीसीईसीई,एनडीए सहित देश के प्रतिष्ठित संस्थानो मे दाखिला दिलाकर उनके सपने को पंख लगा चुके हैं। आरके श्रीवास्तव के कबाड़ की जुगाड़ से प्रैटिकल कर गणित पढाने का तरीका और नाइट क्लासेज अभियान( लगातार 12 घंटे पूरी रात गणित पढाना) पूरे देश में चर्चा का विषय बना हुआ है। निश्चित रूप से आरके श्रीवास्तव को देश का वर्तमान में सबसे बड़ा शिक्षक माना सकता है। जो हिन्दूस्तान को विश्व गुरू बनाने में अपना योगदान नि:स्वार्थ दे रहे।

वर्ल्ड रिकॉर्ड बुक में भी दर्ज है नाम

मैथेमैटिक्स गुरू आरके श्रीवास्तव (फाइल फोटो)

आप आरके श्रीवास्तव के पढ़ाने के तरीके और उनके बातो को कहीं भी सुन लें। तब समझ आ जाएगा कि वे अपने स्टूडेंट्स के सफ़लता को लेकर कितने गंभीर रहते हैं। वे हमेशा जीतने वाले छोड़ते नहीं और छोड़ने वाले जीतते नहीं जैसी बातें अपने स्टूडेंट्स को बताते हैं। अभी हाल ही में आनंद कुमार की जीवनी पर बॉलीवुड ने सुपर 30 फिल्म बनाई। आनंद कुमार के संघर्ष को हृतिक रोशन ने अपने अभिनय से पूरी दुनिया को दिखाया।

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कैसे एक पापड़ बेचने वाले ने सैकड़ों गरीब स्टूडेंटस के सपने को पंख दिए हैं। आपको बताते चले की आनंद कुमार की तरह ही बिहार के आरके श्रीवास्तव की कहानी है। एक आँटो रिक्शा वाले आरके श्रीवास्तव ने मैथेमैटिक्स गुरू बन सैकड़ों निर्धन परिवार के स्टूडेंट्स के सपने को लगा दिया पंख। वर्ल्ड बुक ऑफ रिकार्ड्स लंदन से सम्मानित, इंडिया बुक ऑफ रिकार्ड्स में नाम दर्ज, एशिया बुक ऑफ रिकार्ड्स में नाम दर्ज, बेस्ट शिक्षक अवॉर्ड, इंडिया एक्सीलेन्स प्राइड अवॉर्ड, ह्यूमैनिटी अवॉर्ड, इंडियन आइडल अवॉर्ड, युथ आइकॉन अवॉर्ड सहित दर्जनों अवॉर्ड आरके श्रीवास्तव को उनके शैक्षणिक कार्यशैली के लिए मिल चुके है।

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद भी कर चुके हैं बिहार के आरके श्रीवास्तव के शैक्षणिक कार्यशैली कार्यशैली की प्रशंसा कई बार अलग अलग तरीकों से GK के किताबो और टेस्ट परीक्षाओ में आरके श्रीवास्तव के बारे में प्रश्न पुछे जा चुके हैं।

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