जानिए कौन थीं विजय लक्ष्मी पंड़ित, जिनके कारण देश में लागू हुई पंचायती राज व्यवस्था

पं. जवाहर लाल नेहरू से 11 साल छोटी और अपनी बहन कृष्णा से 7 साल बड़ी थीं। उन्होंने इलाहाबाद से अपनी पढ़ाई शुरू की थी। बाद में गांधी और नेहरू के साथ स्वतंत्रता संग्राम में लड़ीं।

Update: 2020-12-01 07:40 GMT
जानिए कौन थीं विजय लक्ष्मी पंड़ित, जिनके कारण देश में लागू हुई पंचायती राज व्यवस्था

श्रीधर अग्निहोत्री

नई दिल्ली। गांधी-नेहरू परिवार से ताल्लुक रखने वाली श्रीमती विजय लक्ष्मी पंडित के बारे में बहुत कम लोग जानते होंगे जबकि उनका आजादी की लड़ाई के पहले और बाद में भी जनसेवा में बड़ा योगदान रहा है। विजयलक्ष्मी पंडित भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की बहन और इंदिरा गांधी की बुआ थी। उन्होंने अपनी भतीजी और तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के आपातकाल का विरोध करते हुए उन्होंने कांग्रेस से इस्तीफा देकर जनता पार्टी में शामिल होने का काम किया।

भाई जवाहरलाल नेहरू के साथ राजनीति में सक्रिय रहीं

इनका जन्म 18 अगस्त 1900 को गांधी-नेहरू परिवार में हुआ था। उनकी शिक्षा-दीक्षा मुख्य रूप से घर में ही हुई। भाई जवाहर लाल की तरह उनका प्रारम्भिक जीवन भी एक राजकुमारी-सा व्यतीत हुआ । उन्होंने घर पर रहकर अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त की थी । वह शिक्षा के साथ-साथ राजनीति साहित्य, घुड़सवारी आदि में भी रुचि लेती थीं । पं. जवाहर लाल नेहरू से 11 साल छोटी और अपनी बहन कृष्णा से 7 साल बड़ी थीं। उन्होंने इलाहाबाद से अपनी पढ़ाई शुरू की थी। बाद में गांधी और नेहरू के साथ स्वतंत्रता संग्राम में लड़ीं। पहले डैडी मोतीलाल नेहरू और बाद में भाई जवाहरलाल नेहरू के साथ राजनीति में सक्रिय रहीं।

गांधीजी से प्रभावित रहीं विजयलक्ष्मी

गांधीजी से प्रभावित होकर उन्होंने भी आजादी के लिए आंदोलनों में भाग लेना आरम्भ कर दिया। इसके लिए वह कई बार जेल गयी यातनाएं भी सहीं। पर देश के लिए आजादी की लड़ाई लड़ती रहीं। 1937 में वो संयुक्त प्रांत की प्रांतीय विधानसभा के लिए निर्वाचित हुई। विजय लक्ष्मी पंडित केबिनेट मंत्री बनने वाली प्रथम भारतीय महिला बनी। 1953 में संयुक्त राष्ट्र महासभा की अध्यक्ष बनने वाली वह विश्व की पहली महिला थीं। विजय लक्ष्मी पंडित सोवियत संघ में भारत की पहली राजदूत बनीं। फिर अमेरिका में उन्हें राजदूत बनाया गया। वो संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत की पहली राजदूत बनीं।

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विवाह सन् 1921 में श्री रणजीत सीताराम पण्डित से हुआ

उनका विवाह सन् 1921 में श्री रणजीत सीताराम पण्डित, जो कि एक सुप्रसिद्ध वकील, इतिहासकार थे, उनसे हुआ । उनकी 3 पुत्रियां चन्द्रलेखा, नयनतारा और रीता थीं । उनके मन में साधारण गृहिणी बनकर अपना जीवन व्यतीत करने की अपेक्षा देश की सेवा में जीवन देने का ऐसा विचार आया कि सर्वप्रथम 1930 के सविनय अवज्ञा आन्दोलन में गांधीजी के साथ जेलयात्रा पर गयीं । फिर 1934 में इलाहाबाद म्यूनिसिपल बोर्ड की सम्मानित सदस्य निर्वाचित हईं, साथ ही शिक्षा समिति का अध्यक्ष पद भी उन्हें प्राप्त हुआ । 1935 एवं 1937 में केबिनेट स्तर के चुनावों में शासन मन्त्री बनीं ।

1940 के सत्याग्रह आन्दोलन में 4 माह जेल में बिताये

उन्होंने गांवों की दशा सुधारने के लिए पंचायत राज व्यवस्था अधिनियम भी पारित करवाया। 1940 के सत्याग्रह आन्दोलन में 4 माह जेल में बिताये । 1942 के ”भारत छोड़ो आन्दोलन” में उनका स्वास्थ बिगड गया जिसके बाद अंग्रेजों ने उन्हे जेल से रिहा कर दिया। लेकिन देषभक्ति का जज्बा लिए विजयलक्ष्मी पंडित ने बंगाल के अकाल पीडितों के लिए काम करना शुरू कर दिया।

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एक दिसम्बर 1990 को देहरादून में निधन हो गया

सन् 1944 में उन्हें अपने पति के स्वर्गवास का दुःख झेलना पड़ा। वह अखिल भारतीय महिला सम्मेलन की अध्यक्ष भी रही थीं । श्रीमती विजय लक्षमी ने 1952 में ग्रामीण सभ्यता व संसकृति से परिचय के लिए राजस्थान के बाडमेर जिले के सांस्कृतिक गांव बिसाणिया में श्मालाणी डेलूओं की ढाणीश् का ऐतिहासिक दौरा किया था। विजय लक्ष्मी पंडित का एक दिसम्बर 1990 को देहरादून में निधन हो गया।

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