खत्म हुआ कोरोना का खौफः बढ़ते मरीज और मौतों के आंकड़े, बेपरवाह आम आदमी
मास्क पहनने से लोग कतरा रहे हैं, मास्क को मजबूरी की तरह, तो कहीं लापरवाही से पहने हुए देखा जा सकता है।फिजिकल डिस्टेंसिग को भी गंभारता से नहीं ले रहे।
लखनऊ: भारत में कोरोना महामारी के बीच रिकवरी रेट भले ही बेहतर है और मरने वालों की संख्या की दर भी अपेक्षाकृत रूप से बहुत कम है। इसके बावजूद आबादी के विशाल आकार को देखते हुए यह अंदाजा लगाना कठिन नहीं है कि देश में खतरा कायम है और नए नए इलाके संक्रमण की जद में आ रहे हैं। खतरों के बीच देखा जा रहा है कि लोग महामारी से बचाव को लेकर बेफिक्र हो चले हैं। मास्क पहनने से लोग कतरा रहे हैं, मास्क को मजबूरी की तरह, तो कहीं लापरवाही से पहने हुए देखा जा सकता है।
फिजिकल डिस्टेंसिग के प्रति भी ज्यादातर लोग अब सचेत नजर नहीं आते। सड़कों पर थूकना, पेशाब करना, कूड़ा फेंकना जारी है और लगता नहीं है कि यह वही आशंकित, भयभीत और थाली पीटते लोग हैं जो कोरोना वायरस को भगाने के लिए कुछ भी करने को तत्पर नजर आते थे। लोगों में धारणा बनती जा रही है कि अब इस वायरस के साथ ही रहना है। लोग ये भी कहते हैं कि जब सब कुछ खोल दिया गया है और बंदिशें भी ज्यादातर हट गयीं हैं तो सरकार ने कुछ सोच कर ही ये किये होगा।
घातक रवैया अपना रहे लोग
ऐसे शहरों में जो लॉकडाउन और अन्य पाबंदियों से उबर चुके हैं, वहां सुबह शाम वॉक के लिए सड़कों पर निकले या सब्जी या किराने की दुकानों पर सामान खरीदने के लिए आतेजाते अधिकांश लोगों को मास्क न पहने हुए और फिजिकल दिस्टेंसिंग की सावधानी को नजरअंदाज करते हुए देखा जा सकता है। मास्क से जुड़ी प्रशासनिक और चिकित्सकीय हिदायतों को न सिर्फ भुला रहे हैं, बल्कि कई लोगों ने तो इन हिदायतों का यह कहकर पालन करने से मना कर दिया है कि इनसे कुछ होने वाला नहीं।
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आम धारणा बनती जा रही है कि अगर संक्रमण होना है तो होकर रहेगा - नहीं होना होगा तो नहीं होगा। दूसरा तर्क यह चल पड़ा है कि हमें नहीं होगा क्योंकि हमारा तो खानपान ठीक है, हमारा शरीर मजबूत है आदि।लोग एक तरह से खुश हैं कि वे कोरोना से बचे हैं लेकिन इस बात से शायद अनजान हैं कि कोरोना का दायरा उन तक बढ़ता ही जा रहा है।
मनमानी करने की ढिठाई
किसी भी निर्देश का पालन नहीं करना एक तरह से मनमानी करने की ढिठाई है। संवेदनाविहीन उपभोग की यह मानसिकता अपना काम बन जाने के स्वार्थ से संचालित होती है और भारत इस समय कई तरह के जिन सामाजिक संकटों से घिरा है, उनमें एक यह भी है। कोरोना संक्रमण को लेकर अनावश्यक भय या अतिरंजित कोशिशों से बचे जाने की जरूरत है। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि अब इसके साथ जीना पड़ेगा वाली धारणा के आगे नतमस्तक होकर बचाव के तरीकों को अनदेखा कर दिया जाए और जैसा चलता है चलने दिया जाए।
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जनता सिर के ऐन ऊपर तने हुए कानूनों और आदेशों पर तो अमल कर लेती है। लेकिन इन कायदों कानूनों में जरा भी छूट मिलते ही अपनी मनमर्जी में लौट जाती है। लॉकडाउन में छूट की अवधियों के दौरान निगरानी अभियान चला था लेकिन लॉकडाउन हट जाने के बाद अधिकारियों और लोगों ने भी इन हिदायतों से पल्ला झाड़ लिया।
छोटे शहरों-कस्बों का बुरा हाल
लॉकडाउन की बंदिशों में मिली छूट के बाद इंडियास्पेंड की टीम ने उत्तर प्रदेश के कस्बों और छोटे शहरों का हाल जाना। राज्य सरकार ने बाहर निकलने वाले हर व्यक्ति के लिए मास्क पहनना और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना आवश्यक कर दिया है, इसके उल्लंघन पर जुर्माना और क़ानूनी कार्रवाई भी की जा रही है। टीम ने अपनी पड़ताल में जाना कि राज्य के कस्बों और छोटे शहरों में इसका पालन नहीं हो पा रहा है।
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उत्तर प्रदेश में तेजी से बढ़ रहे कोरोनावायरस के मामलों को देखते हुए राज्य सरकार ने 10 जुलाई को एक अधिसूचना जारी की जिसमें सार्वजनिक स्थानों पर मास्क न पहनने पर लगने वाले जुर्माने को 100 रुपए से बढ़ाकर 500 रुपए कर दिया गया। यूपी के स्वास्थ्य और चिकित्सा विभाग के अपर सचिव, अमित मोहन प्रसाद ने एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस में इसकी जानकारी दी थी।कोई व्यक्ति जितनी बार भी बिना मास्क के पाया जाएगा उतनी ही बार उसे 500 रुपए का जुर्माना भरना होगा।
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एक जुलाई से सात जुलाई तक पूरे राज्य में मास्क न पहनने पर 7 लाख 40 हज़ार 508 लोगों से 7 करोड़ 92 लाख 23 हजार 322 रुपए का जुर्माना वसूल किया गया है। लगभग 20 करोड़ की आबादी वाले राज्य में इन गाइडलाइंस का पालन करवानी आसान नहीं है। इंडियास्पेंड की टीम ने उत्तर प्रदेश के गोंडा, सीतापुर और रायबरेली ज़िलों के स्थानीय बाज़ारों, सब्ज़ी मंडियों और दुकानों में पाया कि इन नियमों के बावजूद भी लोग मास्क अनिवार्य रूप से नहीं पहन रहे हैं और ना ही सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कर रहे हैं।
बसों में सब नार्मल
कस्बों और छोटे शहरों में चलने वाली उत्तर प्रदेश राज्य परिवहन निगम की बसों में निगम की गाइडलाइंस का पालन नहीं हो रहा है। लॉकडाउन 4.0 खत्म होने के साथ ही यूपी में सार्वजनिक वाहनों को दोबारा शुरू करने की मंज़ूरी मिल गई थी। इसके लिए परिवहन निगम ने गाइडलांइस भी जारी की थी। इन गाइडलांइस के मुताबिक़ बस को चलाने से पहले पूरी तरह से सैनिटाइज़ किया जाना है। कंडक्टर को मास्क व दस्ताने पहनना ज़रूरी है, हर बस में हैंड सेनेटाइज़र उपलब्ध होगा और सभी यात्रियों के हाथ सैनिटाइज़ कराए जाएंगे। यात्रियों को पूरी यात्रा के दौरान मास्क पहनना अनिवार्य होगा। लेकिन कहीं इसका पालन नजर नहीं आता।
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जब से राज्य में परिवहन विभाग की बसें चलनी शुरु हुई हैं उनमें यात्रियों की संख्या लगातार बढ़ रही है। एक जून को इन बसों में लगभग 52 हज़ार यात्रियों ने सफ़र किया। यह संख्या 30 जून को बढ़कर 8.76 लाख हो गई। बड़ी आबादी वाले राज्य में लोगों का मास्क लगाना और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना पुलिस के भरोसे है। वह भी तब जब राज्य में पुलिस बल आवश्यकता से कम है। पिछले साल दो जुलाई को लोकसभा में पेश एक आंकड़े के अनुसार उत्तर प्रदेश में पुलिस बल की स्वीकृत क्षमता 414,492 है जबकि इनमें से केवल 285,540 पद पर ही तैनाती है बाकी के 128,952 पद ख़ाली हैं।
कुछ देशों ने कोरोना को रखा काबू
कुछ देश कोरोना वायरस के संक्रमण की दूसरी लहर की चिंता कर रहे हैं, वहीं कुछ और देश पहली लहर को रोकने में सफल रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय आपातकाल घोषित होने के छह महीनों बाद, सफलता की कहानियों वाले ये देश कौन कौन से हैं?
रवांडा
रवांडा में मार्च में ही कड़ी तालाबंदी लागू कर दी गई, अंतरराष्ट्रीय सीमाएं बंद कर दी गईं, उड़ानें रद्द कर दी गईं, यात्राएं बंद कर दी गईं, रात का कर्फ्यू लगा दिया गया, मास्क पहनना, दूरी बनाए रखना और हाथ धोना अनिवार्य कर दिया गया और निगरानी के जरिए सभी नियमों का कड़ाई से पालन सुनिश्चित कराया गया। अस्पतालों में उच्च तकनीक वाले कुछ रोबोट भी तैनात किए गए। अभी रवांडा में संक्रमण के सिर्फ 1900 मामले हैं।
थाईलैंड
जनवरी में चीन के बाहर संक्रमण का पहला मामला थाईलैंड में ही सामने आया था। उसके बाद इस देश ने भी रवांडा से मिलते-जुलते कदम उठाए। थाईलैंड के कई इलाकों में अधिकतर लोग प्रदूषण की वजह से मास्क पहनने के पहले से आदि थे।
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यहां के लोग पारंपरिक रूप से अभिवादन में ना तो हाथ मिलाते हैं और ना गले मिलते हैं, बल्कि नमस्ते जैसी मुद्रा में अभिवादन करते हैं। थाईलैंड में मई से संक्रमण का एक भी मामला सामने नहीं आया है।
वियतनाम
यात्रा पर प्रतिबंध और तालाबंदी के अलावा, वियतनाम में लाखों लोगों को सैन्य-शैली जैसे शिविरों में क्वारंटीन किया गया और कड़ी टेस्टिंग और कॉन्टैक्ट-ट्रेसिंग की गई।
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हालांकि अब तटीय शहर डा नांग में संक्रमण के नए मामलों की वजह से देश में दूसरी लहर को लेकर चिंताएं उभर रही हैं। शहर की सीमाएं बंद कर दी गईं हैं, स्थानीय तालाबंदी लागू की जा रही है और विस्तृत रूप से टेस्ट किए जा रहे हैं।
न्यूजीलैंड
विज्ञान संचारक सियूक्सी वाइल्स के अनुसार जनता के साथ स्पष्ट और एकरूप संचार बनाए रखना न्यूजीलैंड की सफलता का एक बड़ा हिस्सा था। शारीरिक दूरी को समझाने के लिए "बुलबुलों" जैसे शब्दों का इस्तेमाल और संक्रमित लोगों के प्रति बुरे नजरिए को हटाने के लिए भाषा के इस्तेमाल ने मदद की।
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पूरे अभियान को कोविड-19 के खिलाफ किसी जंग की तरह पेश नहीं किया गया बल्कि एक दूसरे की मदद करने पर ध्यान केंद्रित किया गया।
कैरिबियाई देश
कोविड-19 जिस रफ्तार से लातिन अमेरिका के कई बड़े देशों में फैला उस रफ्तार से कैरिबियाई देशों में नहीं फैला। बारबाडोस के प्रधानमंत्री मिया मॉटली जैसे नेताओं ने प्रांतीय प्रयासों को बढ़ावा दिया। कैरिबियाई समुदाय ने साथ मिलकर निजी सुरक्षा के सामान का इंतजाम किया।
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सरकारों ने मिल कर अंतरराष्ट्रीय मदद और कर्ज-माफी की भी गुहार लगाई। पोर्तो रीको और हैती जैसे देशों में मामलों की संख्या काफी कम रही।