करक्यूरियम बचाएगा वायरस सेः वैज्ञानिकों ने भी माना लोहा, बस इतनी मात्रा में है लेना
हमारे पौराणिक ग्रथों में हल्दी को संजीवनी माना जाता है। हल्दी को उसका चमकीला पीला रंग और इसकी औषधीय ख़ूबियां करक्यूमिन नामके केमिकल से मिलती हैं।
नीलमणि लाल
नई दिल्ली: भारत के हर घर में पायी जाने वाली हल्दी के बारे में एक और खुलासा हुआ है। वो यह कि हल्दी में शक्तिशाली एंटीवायरल गुण होते हैं जो वायरस से बचाने में मदद करते हैं। वैज्ञानिक ये तो पहले ही जान चुके हैं कि हल्दी में मौजूद करक्यूमिन बेहद कारगर तत्व है जिसमें कैंसर तक को हराने की ताकत होती है। अब पता चला है कि करक्यूमिन की मौजूदगी कुछ वायरस को खत्म करने में मदद कर सकती है।
यही वजह है कि हमारे पौराणिक ग्रथों में हल्दी को संजीवनी माना जाता है। हल्दी को उसका चमकीला पीला रंग और इसकी औषधीय ख़ूबियां करक्यूमिन नामके केमिकल से मिलती हैं। ये एक तेज़ी से घुलने वाला कंपाउंड है। फैट के साथ करक्यूमिन के मिल जाने से शरीर में उसके अवशोषित होने की संभावना बढ़ जाती है।
वायरस का खात्मा
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जर्नल ऑफ जनरल वायरोलॉजी में प्रकाशित स्टडी के अनुसार करक्यूमिन तत्व ‘टीजीईवी’ नाम वाले वायरस से सुरक्षा प्रदान करता है। शोध में ये भी दावा किया गया है अधिक मात्रा में इसका प्रयोग वायरस को खत्म भी कर सकता है। कोरोना वायरस के खिलाफ ये कितना प्रभावी होगा इसके बारे में अभी और शोध करना पड़ेगा। लेकिन यह तथ्य कि हल्दी में एंटीवायरल गुण हैं, यह दर्शाता है कि भविष्य में यह एक संभावित इलाज हो सकता है।
टीजीईवी वायरस संक्रमण
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टीजीईवी वायरस के संक्रमण से सूअर के बच्चों में ट्रांसमिसिबल गैस्ट्रोएन्टेरिटिस नाम की बीमारी होती है। इस बीमारी से दस्त, गंभीर डिहाइड्रेशन के बाद कई बार मौत हो जाती है। इस वायरस का संक्रमण बहुत तेजी से फैलता है। फिलहाल इसका कोई इलाज नहीं है और टीजीईवी की वैक्सीन भी उपलब्ध नहीं है। चीन के शोधकर्ताओं के अनुसार, हल्दी का करक्यूमिन वायरस के सेल को इन्फेक्ट करने से पहले ही मार देता है।
करक्यूमिन और वायरस
हल्दी में पाए जाने वाले करक्यूमिन से डेंगू वायरस, हेपेटाइटिस बी और जीका वायरस सहित कई अन्य प्रकार के वायरस को बाधित किया जा सकता है। शोध में ये भी दावा किया गया है कि करक्यूमिन के एंटीट्यूमर, एंटी-इंफ्लेमेटरी और एंटी-बैक्टीरियल प्रभाव भी हैं।
औषधीय गुण
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हल्दी के औषधीय गुणों के चलते पश्चिमी देशों में इसका प्रयोग काफी प्रचलित हुआ है। रेस्तरां और कैफे में हल्दी मिले दूध को ‘गोल्डेन मिल्क’, टर्मरिक लैटे या ‘येलो लैटे’ नाम से महंगी कीमत पर बेचा जाता है। दरअसल, पश्चिमी देशों ने पिछले दशक में ही हल्दी को खोजा और इसे 'सुपरफ़ूड' बनाने में देर नहीं की।
75 फीसदी हल्दी भारत में
दुनिया भर के कुल हल्दी उत्पादन का 75 फ़ीसदी से अधिक हिस्सा भारत में होता है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा हल्दी निर्यातक है और यहां इसकी खपत भी सबसे ज़्यादा है। वर्ष 2018 में भारत ने करीब 1600 करोड़ रुपये की हल्दी का निर्यात किया। इसका सबसे ज्यादा निर्यात अमेरिका को किया जा रहा है। दक्षिण भारत के गर्म और आर्द्र मौसम वाले राज्यों- आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में उम्दा क्वालिटी वाली हल्दी का बड़े पैमाने पर उत्पादन होता है।
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इसे मई से अगस्त के बीच लगाया जाता है और जनवरी आते-आते फसल तैयार होने लगती है। तमिलनाडु में जनवरी के मध्य में होने वाली नई फसल के उत्सव पोंगल में हल्दी की जड़ और पत्तों का इस्तेमाल होता है। दूध उबालने के बर्तन के मुंह पर हल्दी के ताज़े पत्ते और उसकी जड़ बांधी जाती है। इसे धनधान्य का प्रतीक माना जाता है।
भारतीय संस्कृति में हल्दी
भारत में हिंदुओं में शादी जैसे शुभ अवसरों पर हल्दी का विशेष उपयोग किया जाता है। शादी में दुल्हन और दूल्हे के चेहरे पर हल्दी का लेप, मंगलसूत्र को हल्दी में डुबोना, शादी के कार्ड के साथ हल्दी की गांठ बांधना आदि का प्रयोग होता है।
घरेलू इलाज में इस्तेमाल
आयुर्वेद में हल्दी को जलन कम करने वाला माना गया है। इससे दर्द में राहत मिलती है। हल्दी एकमात्र ऐसी औषधि है जो वात, पित्त और कफ, तीनों तरह के दोषों को ठीक करती है।
- मोच लगने पर हल्दी का लेप लगाया जाता है।
- चोट लगने पर दूध में हल्दी मिला कर पिलाया जाता है।
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- सर्दी, खांसी में दूध-हल्दी पी जाती जाती है।
- हल्दी को एक कॉस्मेटिक की तरह भी इस्तेमाल किया जाता है। हल्दी के फेस पैक बहुत प्रचलित हैं।
कोरोना से बचने के लिए करें हल्दी का सेवन
कच्ची हल्दी सेहत के लिए बहुत ही फायदेमंद होती है। कच्ची हल्दी का इस्तेमाल आपनी इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए कर सकते हैं। आज के कोरोना काल में इम्यूनिटी को स्ट्रॉंग बनाए रखना बहुत जरूरी है।
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कच्ची हल्दी की गांठ को साफ करके दो कप पानी या दूध में डालकर उबालें। जब पानी या दूध उबलकर आधा बच जाए, तो इसे गर्म चाय की तरह पिएं। इससे आपकी इम्यूनिटी बूस्ट होगी और आप कई दूसरी बीमारियों से भी बचे रहेंगे।
हल्दी का पेटेंट
भारत की हल्दी हमसे ही दूर करने के लिए अमेरिका में एक चल चली गई थी और हल्दी का पेटेंट करवा लिया गया था। सिर्फ हल्दी ही नहीं बल्कि बासमती चावल का भी। इसके बाद भारत सरकार ने अमेरिका के पेटेंट और ट्रेडमार्क ऑफिस में केस लड़कर हल्दी और बासमती के पेटेंट को वापस जीत लिया। भारत ने यूरोपियन पेटेंट ऑफिस में केस लड़कर नीम का पेटेंट भी कैंसिल करवा दिया। इसके तुरंत बाद भारत सरकार ने यह निर्णय किया था कि अब भारत के पारंपरिक ज्ञान को बाहर जाने से रोकना होगा।
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इसके लिए अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के समय आयुष, सिद्धा, होमोपैथी, यूनानी, योग, आयुर्वेद आदि सब को मिलाकर एक कमिटी का गठन किया गया , जिसको भारत की सभी जड़ी बूटियों तथा पारंपरिक ज्ञान और पेड़ पौधों को पंजीकृत करने का कार्य सौंपा गया। 2001 में पारंपरिक ज्ञान डिजिटल लाइब्रेरी प्रोजेक्ट शुरू किया गया जिसमें भारत के सभी प्रकार के पारंपरिक ज्ञान को पंजीकृत किया जा रहा है।
कैंसर को हराए हल्दी
हल्दी की कैंसर से लड़ने की ताकत को अमेरिका ने भी पहचाना है और दो भारतीय संस्थाओं को संयुक्त रूप से अमेरिका में इससे जुड़ा एक पेटेंट मिला है। दरअसल, हल्दी के करक्यूमिन में कैंसर से मुकाबला करने की क्षमता होती है। अक्सर कैंसर प्रभावित मरीजों में सर्जरी के बाद भी दोबारा कैंसर की वापसी हो जाती है क्योंकि शरीर में कैंसर की बची हुई कुछ कोशिकाएं भी फिर से इस बीमारी को बढ़ा सकती हैं। लेकिन अब सर्जरी के बाद शरीर के उन हिस्सों पर करक्यूमिन से बना एक स्किन पैच लगाया जा सकता है जो शरीर के उन हिस्सों में मौजूद कैंसर की कोशिकाओं को जड़ से खत्म कर देंगे कि इससे स्वस्थ कोशिकाओं को कोई नुकसान नहीं होगा।
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तिरुवनंतपुरम के एक संस्थान और दिल्ली के इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च ने मिलकर इस स्किन पैच को विकसित किया है। इन दोनों संस्थानों को संयुक्त रूप से अमेरिका ने पेटेंट दिया है। इसके अलावा, ब्रिटेन में हुई एक रिसर्च में करक्यूमिन ने 24 घंटे में ही कैंसर की कोशिकाओं को नष्ट करना शुरू कर दिया था। यानी हल्दी में मिलने वाले इस प्राकृतिक रसायन से कैंसर के नए इलाज विकसित किए जा सकते हैं।
हरिद्रा से हल्दी
हल्दी शब्द संस्कृत के 'हरिद्रा' से बना है। संस्कृत में हल्दी के 53 अलग-अलग नाम हैं और दक्षिण भारत में इसे 'मंजल' कहा जाता है। माना जाता है कि भारत में हल्दी का इस्तेमाल पिछले 4 हजार वर्षों से किया जा रहा है।
- वर्ष 700 में हल्दी भारत से चीन और अगले कुछ सौ सालों में ये पूरे अफ्रीका महाद्वीप में पहुंच गई थी।
- वर्ष 1280 में इटली के व्यापारी मार्को पोलो ने हल्दी के गुणों से प्रभावित होकर इसकी तुलना केसर से की थी। ऐसा करके उन्होंने हल्दी को सम्मान दिया था क्योंकि केसर दुनिया के सबसे महंगे मसालों में एक है।
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- आचार्य सुश्रुत ने 2500 वर्ष पहले अपने ग्रंथ सुश्रुत संहिता में हल्दी का जिक्र किया था। आचार्य सुश्रुत को दुनिया का पहला सर्जन भी कहा जाता है।
- एक स्वस्थ व्यक्ति को दिनभर में 5 सौ से 2 हजार मिलीग्राम कर-क्यूमिन की जरूरत होती है। अगर आप हल्दी से बना भारतीय खाना खाते हैं तो आपकी जरूरतें पूरी हो जाएंगी।