बनारस कचहरी में चला था पं. दीनदयाल हत्याकांड का मुकदमा, तीनों आरोपी हुए थे बरी
दरअसल हुआ यह था कि 1968 में 11 फरवरी को पं. दीनदयाल उपाध्याय बिहार जनसंघ कार्यकारिणी की बैठक में हिस्सा लेने के लिए पटना जा रहे थे।
अंशुमान तिवारी
लखनऊ: एकात्म मानववाद के प्रणेता पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जयंती पर शुक्रवार को पूरे देश में विविध आयोजन हो रहे हैं और पूरा देश उनको नमन कर रहा है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय चंदौली जिले के तत्कालीन मुगलसराय रेलवे स्टेशन पर 11 फरवरी, 1968 को मृत पाए गए थे। अब उनकी स्मृतियों को सहेजने के लिए इस स्टेशन का नाम उन्हीं के नाम पर कर दिया गया है। बनारस कचहरी से भी पंडित दीनदयाल उपाध्याय की यादें जुड़ी हुई हैं क्योंकि यहीं पर उनके हत्याकांड का मुकदमा चला था।
बैठक में हिस्सा लेने पटना जा रहे थे पंडित जी
दरअसल हुआ यह था कि 1968 में 11 फरवरी को पं. दीनदयाल उपाध्याय बिहार जनसंघ कार्यकारिणी की बैठक में हिस्सा लेने के लिए पटना जा रहे थे। इस यात्रा के दौरान ही मुगलसराय स्टेशन के 1276 नंबर खंभे के पास उनका शव संदिग्ध स्थितियों में मिला था। बाद में बनारस कचहरी में तीन आरोपियों के खिलाफ उनकी हत्या का मुकदमा चला था। इस मामले में बचाव पक्ष की पैरवी उस समय के चर्चित वकील चरणदास सेठ ने की थी।
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सेठ ने 435 पेज की बहस तैयार की थी। बाद में अदालत की ओर से केस की सुनवाई और सबूतों के आधार पर तीनों आरोपी बरी कर दिए गए थे। काशी की प्राचीन विरासतों और धरोहरों पर शोध करने वाले अधिवक्ता नित्यानंद राय का कहना है कि चर्चित मामले की सुनवाई के दौरान तीनों आरोपियों ने खुद को निर्दोष बताते हुए कहा था कि उनका पेशा चोरी करना है और वे चोरी करने की नीयत से ही बोगी में घुसे थे।
फैसले के बाद अशांत हो गए थे जज
बचाव पक्ष के वकील रहे चरणदास सेठ के पुत्र विनय सेठ उर्फ राजा बाबू का कहना है कि इस मामले की सुनवाई जज मुरलीधर ने की थी। उन्होंने बताया कि इस मामले में तीनों आरोपियों को बरी करने के बाद वे काफी अशांत रहने लगे थे। उनके दिलो-दिमाग में यह बात घर कर गई थी कि कहीं फैसला करने में कोई चूक तो नहीं हो गई। उन्होंने बताया कि अपने मन की शांति के लिए जज मुरलीधर ने इस मामले के अभियुक्त भरत से बात करने की इच्छा जाहिर की थी।
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बाद में वकील चरण दास सेठ जज मुरलीधर से अभियुक्त भरत की भेंट कराने का फैसला किया। उन्होंने वाराणसी के मीरघाट स्थित एक बगीचे में जज साहब से अभियुक्त भरत की मुलाकात कराई। जज मुरलीधर ने करीब दो घंटे तक एकांत में भरत से वार्ता की और इस मुलाकात के बाद जज मुरलीधर ने सेठ साहब से अपने फैसले पर पूरी तरह संतुष्ट होने की बात कही।
इस ट्रेन में कर रहे थे यात्रा
पंडित दीनदयाल उपाध्याय की मृत्यु बिहार जनसंघ कार्यकारिणी की पटना में आयोजित बैठक में हिस्सा लेने के लिए जाते समय हुई थी। इस बैठक में हिस्सा लेने के लिए 1968 में 11 फरवरी को पठानकोट सियालदह एक्सप्रेस से जा रहे थे। उस दिन यह ट्रेन सवा दो बजे मुगलसराय रेलवे स्टेशन पर पहुंची थी।
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ट्रेन के मुगलसराय स्टेशन से रवाना होने के करीब पौन घंटे बाद लीवरमैन ने 1276 नंबर खंबे के पास एक लाश पड़ी होने की सूचना दी थी। सूचना के बाद मौके पर पुलिस पहुंची और उसने शव को बरामद किया। उस समय दीनदयाल उपाध्याय की पहचान भी नहीं हो पाई थी और इस कारण 6 घंटे तक पंडित दीनदयाल उपाध्याय का शव लावारिस स्थिति में पड़ा रहा।
पंडित जी के नाम पर हुआ मुगलसराय स्टेशन
दीनदयाल उपाध्याय की स्मृतियों को सहेजने के लिए मुगलसराय स्टेशन का नाम अब पंडित दीनदयाल उपाध्याय जंक्शन हो गया है। पास ही स्थित पड़ाव में दीनदयाल स्मृति स्थल का निर्माण भी किया गया है जिसे पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को समर्पित किया था।
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पंडित दीनदयाल उपाध्याय की 104वीं जयंती की पूर्व संध्या पर स्मृति स्थल में 1100 दीप जलाए गए। भाजपा की ओर से आयोजित इस कार्यक्रम में पंडित जी की 104वीं जयंती के मौके पर दीपों से 104 का अंक बनाया गया। शुक्रवार को भी यहां पर विविध कार्यक्रमों का आयोजन किया गया है।