नमदा कालीन को पुनर्जीवित करने वाली लड़की, जिसने अमेरिका का ऑफर ठुकरा दिया
बाजारों से लगभग गायब हो रही कश्मीर की नमदा कालीन को वापसी दिलाने के लिए एक अभियान शुरू हुआ। अपने साथ तीन दस्तकारों को लेकर श्रीनगर की आरिफा जान ने अभियान की शुरुआत की।
श्रीनगर: बाजारों से लगभग गायब हो रही कश्मीर की नमदा कालीन को वापसी दिलाने के लिए एक अभियान शुरू हुआ। अपने साथ तीन दस्तकारों को लेकर श्रीनगर की आरिफा जान ने अभियान की शुरुआत की। अब उनका यह व्यवसाय कई देशों तक फैल चुका है।
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आरिफा बताती हैं कि मेरे मन में एक ओर कश्मीरी महिलाओं को सशक्त बनाने की ख्वाहिश थी तो दूसरी ओर यहां की पारंपरिक कलाओं को जिंदा रखने की चाहत भी। मैं मध्यमवर्गीय परिवार से आती हूं। 2012-13 में मैंने किसी तरह से क्राफ्ट मैनेजमेंट का कोर्स किया फिर जब इस क्षेत्र में कदम रखा तो इसकी अलग ही छाप थी। क्राफ्ट अपनी अंतिम सांसें गिन रहा था।
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इसे संजोने वाले कारीगर खुद को दूसरे कामों में लगा रहे थे। क्योंकि इसमें नवाचार कम हो रहा था और आर्थिक दशा बिगड़ती चली जा रही थी। इसका निर्यात भी लगभग न के बराबर था। फिर मैंने यह दशा देखते ही मुट्ठी बांध ली और चल पड़ी अपनी ख्वाहिशों के साथ। कश्मीरी नमदा कालीन को बाजार में प्रवेश दिलाने के लिए इसके अनूठेपन को दुनिया के सामने लाना चुनौती थी। मैंने तीन औरतों को साथ लिया। अब तो मेरा लंबा काफिला है।
50 रुपये से शुरू किया था काम
आरिफा बताती हैं कि काम शुरू करते वक्त मेरे पास केवल 50 रुपये थे। मैंने नमदा में नए कलेवर जोड़ने का काम किया और इसे स्थानीय बाजारों से बाहर ले जाने का प्रयास किया। इसके लिए मुझे इंपीरियल कॉटेज इंडस्ट्री का सहयोग मिला। इस दौरान मुझे महसूस हुआ कि इसमें पूंजी की कमी ही नहीं बल्कि महिलाओं का नजरिया भी अहम स्थान रखता है। क्योंकि उन्हें लेकर समाज में तमाम तरह की रूढ़िवादियां हैं कि उन्हें कोई काम-धंधा नहीं करना चाहिए।
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अब विदेशों तक सप्लाई चेन
पहले तीन साल में हमें करीब चार लाख रुपये की बचत हुई। अब हमारे कुल छह केंद्र स्थापित हो गए हैं और देशभर की प्रदर्शनियों में हिस्सा लेते हैं। इसकी पसंद अपने देश में तो है ही, अब इसे ऑस्ट्रेलिया, फिनलैंड और खाड़ी देशों में भी खूब पसंद किया जा रहा है।
ठुकराया अमेरिका का ऑफर
आरिफा कहती हैं कि मेरा लक्ष्य कश्मीर की असंगठित कॉटेज इंडस्ट्री को संगठित करना ही नहीं बल्कि उसे पेशेवर ढंग से पेश करना भी है। इस कला को शीर्ष स्थान दिलाना है। इसी वजह से अमेरिका से मिले पार्टनरशिप ऑफर को भी ठुकरा दिया था। क्योंकि मैं चाहती हूं कि जो भी करूं, कश्मीर के लिए, देश के लिए करूं।
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