OMG! आप भी हैं परेशान, फौरन कराएं ‘थाइरॉइड’ की जांच वरना...

Update:2018-07-17 12:23 IST

नई दिल्ली : थाइरॉइड एक ऐसी बीमारी है, जिससे अधिकतर लोग ग्रस्त रहते हैं। पुरूषों के मुकाबले यह बीमारी महिलाओं में ज्यादा देखी जाती है। थायराइड मानव शरीर में पाए जाने वाले एंडोक्राइन ग्लैंड में से एक है। थायरायड ग्रंथि गर्दन मे श्वास नली के ऊपर होती है, जिसका आकार तितली जैसा होता है। यह ग्रंथि थाइराक्सिन नामक हार्मोन बनाती है, जो शरीर की एनर्जी, प्रोटीन उत्पादन व अन्य हार्मोन्स के प्रति होने वाली संवेदनशीलता को कंट्रोल में रखता है।

इसका मुख्य कारण है महिलाओं में ऑटोम्यून्यून की समस्या ज्यादा होना। हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया (एचसीएफआई) के अध्यक्ष पद्मश्री डॉ. के.के. अग्रवाल ने बताया कि थायराइड हार्मोन अंगों के सामान्य कामकाज के लिए आवश्यक होते हैं। इनमें किसी भी तरह के असंतुलन से विकार पैदा होते हैं।

कई तरह के थाइरॉइड

थाइरॉइड दो तरह का होता है- हाइपो और हाइपर। हाइपो में वजन बढ़ने लगता है और भूख कम लगती है। हाथ-पांव में सूजन आ जाती है। मरीज सुस्ती और सर्दी से परेशान रहता है। उसका किसी काम में मन नहीं लगता। कभी-कभी मासिक धर्म और याददाश्त में कमी हो सकती है।

इसके उलटे हाइपर में मरीज का वजन कम हो जाता है और भूख ज्यादा लगती है। मानसिक तनाव की शिकायत होती है। एकाग्रता में कमी, धड़कन और बीपी बढ़ने की शिकायत हो जाती है।मीडिया reports के मुताबिक हाइपोथाइरॉइड में थाइरॉइड हार्मोन बनना कम हो जाता है।

ऐसे में शरीर में भोजन की ऊर्जा को रसायनिक प्रक्रिया में बदलने की गति धीमी हो जाती है। लेकिन यह आसानी से पकड़ में नहीं आती। इसलिए शुरुआती लक्षण जैसे कि याददाश्त में कमी, सुस्ती, थकान आदि दिखने पर हार्मोन की जांच करा लेनी चाहिए।

कुछ सुझाव :

थाइरॉइड कोई ऐसी बीमारी नहीं है, जिसे नियंत्रित ना किया जा सके। समय रहते यदि इसका पता चल जाए तो इसे पूरी तरह ठीक भी किया जा सकता है। लेकिन इसे ठीक करने के लिए कोई शॉर्टकट रास्ता नहीं है। इसके लिए लंबे समय तक उपचार चलता है। डॉक्टरों की मानें तो 35 वर्ष से ज्यादा उम्र के हर व्यक्ति को प्रत्येक पांच साल में एक बार थाइरॉइड जांच जरूर करा लेनी चाहिए।

* स्वस्थ वजन बनाए रखने के लिए फाइबर से समृद्ध और कम वसा वाला आहार लें।

* कुछ न कुछ शारीरिक गतिविधि करते रहने के लिए खुद को प्रेरित करें।

* तनाव से थायराइड विकारों को बढ़ने का मौका मिलता है, इसलिए तनाव के स्तर को कम करने के लिए कुछ प्रयास करिए। योग, ध्यान, नृत्य आदि से मदद मिल सकती है।

* यदि कैंसर का जोखिम है, तो कुछ-कुछ वर्षो में नोड्यूल का पता करने के लिए अपनी जीपी और टीएसएच स्तरों का परीक्षण करवाएं।

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