सृजन : मैंने देखा था उन आँखों में छिपे अश्रुओं को.......

Update: 2018-07-21 11:52 GMT

(चारू खरे )

मैंने देखा था उन आँखों में छिपे अश्रुओं को

कुछ कहना चाहते थे मुझसे, पर कह नहीं पा रहे थे

एक आस सी छिपी थी उसके लफ़्ज़ों में

खाली सा दिल लिए, बैठा था वो उन कस्बों में

कागज पर उतारे उसने जो थे जज्बात सारे

सिमटकर उन्हीं पन्नों में रह गए थे उसके ख्वाब सारे

अल्फाजों ने उसके दहलीज के पार न रखे थे कदम

शायद उन दरवाजों में बंद थे उसके सारे स्वप्न

मंजिल तक पहुँचने का कोई जरिया न था

वह भटका हुआ राही, उसका भटका मंजर था

खोजने वह अब भी अपनी राह निकला है

कब होगी जीत, न जाने नियति का क्या फैसला है

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