राख से काशी में मनाई होली, विदेशी सैलानी भी कुछ इस तरह खेलते नजर आए
पूरे देश में रंगो और गुलालों से होली खेली जाती हैं तो वहीं भोले की नगरी काशी में चिता की राख के साथ होली खेली जाती हैं। जो पूरे विश्व में सिर्फ काशी में मनाई जाती हैं, क्योंकि मान्यता है कि भगवान शंकर चिता भस्म की होली महश्मशान में खेलते है इसलिए काशी के साधु संत और आम जनता भी महाश्मशान में चिता भस्म की होली खेलते नजर आए।
वाराणसी : पूरे देश में रंगो और गुलालों से होली खेली जाती हैं तो वहीं भोले की नगरी काशी में चिता की राख के साथ होली खेली जाती हैं। जो पूरे विश्व में सिर्फ काशी में मनाई जाती हैं, क्योंकि मान्यता है कि भगवान शंकर चिता भस्म की होली महश्मशान में खेलते है इसलिए काशी के साधु संत और आम जनता भी महाश्मशान में चिता भस्म की होली खेलते नजर आए।
शिव के गढ़ के साथ यहां घूमने आए विदेशी सैलानी भी पूरी मस्ती में भस्म की इस होली का आंनद लेते हैं। भक्तों के साथ फ्रांस से आई लड़कियों ने जम कर डांस किया।
वाराणसी का मर्णिकर्णिका घाट जहां कभी चिता की आग शांत नहीं होती हैं। लेकिन साल में कुछ ऐसा भी दिन आता हैं। जब काशी के लोग यहां आकर इन चिताओं की राख से होली खेलते हैं, वो दिन होती हैं होली। गुरूवार को काशी के ये शिव के गण राख के साथ होली खेल रहे हैं।
-रंगभरी एकादशी के दूसरे दिन ये काशी आकर बाबा मशान नाथ की आरती कर चिता से राख की होली शुरू करते हैं। ढोल और डमरू के साथ पूरा श्मशान हर-हर महादेव के उद्घोष से गुंजायमान होता हैं।
एकादशी के साथ ही जहां होली की शुरुआत बाबा विश्वनाथ के दरबार से हो जाती है। जब माता पार्वती को गौना कराकर लौटते हैं ,लेकिन उसके अगले ही दिन बाबा विश्वनाथ काशी में अपने चहेतों जिन्हें शिवगण भी कहा जाता है। अपने चेलों भुत-प्रेत के साथ होली खेलते हैं।
ये होली कुछ मायने में बेहद खास होती है, क्योंकि ये होली केवल चीता भस्म से खेली जाती है। चूंकि बाघम्भर शिव को भस्मअति प्रिय है और हमेशा शरीर में भस्म रमाए समाधिस्थ रहने वाले शिव की नगरी काशी में श्मशान घाट पर चीता भस्म से होली खेली जाती है। मान्यता है कि ये सदियों पुरानी प्रथा काशी में चली आ रही है। ये होली काशी में मसाने की होली के नाम से जानी जाती है। पुरे विश्व में केवल काशी में खेली जाती है। मसान में के इस होली में रंग की जगह राख होती हैं। इस होली के खेलने वाले शिवगण जिन्हें ऐसा प्रतीत होता हैं कि भगवान शिव उनके साथ होली खेलते हैं और इस राख से तारक मंत्र प्रदान करते हैं।
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