जयपुर:स्कूली बच्चों को पढ़ाई के साथ-साथ एक्सट्रा एक्टिविटीज में भी हिस्सा लेना होता है। स्कूल से लौटने के बाद बच्चे डांस, सिंगिंग या पेंटिंग जैसी क्लासेज भी जाते हैं,लेकिन बर्डन होने की वजह से कई बार वे किसी एक काम पर फोकस नहीं कर पाते हैं। इसका नतीजा यह होता है कि वे पढ़ाई में तो पिछड़ते ही हैं, एक्सट्रा करिकुलर एक्टिविटिज में भी बहुत अच्छा परफॉर्म नहीं कर पाते हैं। दरअसल, इसकी वजह उनमें फोकस की कमी होती है। ऐसे में कुछ जरूरी बातों को अमल में लाकर बच्चों में एकाग्रता को बढ़ाया जा सकता है।
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*पढ़ाई और एक्सट्रा करिकुलर एक्टिविटीज में बच्चा तभी इंट्रेस्ट लेगा, जब उसे गैजेट्स, मोबाइल से दूर रखा जाएगा। जब भी बच्चा पढ़ाई कर रहा हो या किसी एक्सट्रा करिकुलर एक्टिविटीज पर फोकस कर रहा हो तो उसके आस-पास गैजेट्स बिल्कुल नहीं होने चाहिए, यह सबसे बड़े फोकस ब्रेकर होते हैं।
*कुछ रिसर्च से भी साबित हुआ है कि गैजेट्स, मोबाइल के यूज से बच्चों की मेमोरी पावर पर भी असर पड़ता है। अगर पैरेंट्स चाहते हैं कि बच्चों का पढ़ाई पर और दूसरी एक्टिविटीज पर फोकस बढ़े तो गैजेट्स से उन्हें दूर रखें।
*बच्चे किसी भी काम में फोकस तभी कर पाते हैं, जब वे एनर्जेटिक फील करते हैं, लेकिन ऐसा तभी होता है, जब वे पूरी नींद सोएंगे। दरअसल, आजकल पैरेंट्स की देखा-देखी बच्चे भी देर रात तक जगते हैं, फिर स्कूल के लिए जल्दी उठते हैं, इससे सुबह फ्रेश फील नहीं करते हैं।
इसका असर उनकी स्टडी पर, एक्सट्रा करिकुलर एक्टिविटीज पर नजर आता है। ऐसे में पैरेंट्स को चाहिए कि बच्चे को कम से कम आठ घंटे की पूरी नींद जरूर लेने दें। इससे बच्चे की बॉडी, माइंड रिलैक्स रहेंगे और वो अपने काम पर फोकस कर पाएंगे।
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* बच्चा अगर पढ़ाई में कमजोर है या किसी भी काम में उसे फोकस करने में समस्या आती है तो ऐसे में पैरेंट्स को चाहिए कि बच्चे को ज्यादा से ज्यादा माइंडफुल एक्टिविटीज में हिस्सा लेने के लिए मोटिवेट करें।बच्चा जितना ज्यादा पजल्स, क्रॉस वर्ड्स और बोर्ड गेम्स जैसे खेल खेलेगा, उतनी उसकी फोकस एबिलिटी बढ़ेगी। हां, इसके लिए पैरेंट्स को बच्चों के साथ इन गेम्स को खेलना होगा, तभी बच्चा भी इनमें इंट्रेस्ट लेगा।
*एक वक्त था जब बच्चों को दादा-दादी, नाना-नानी ढेरों कहानियां सुनाते थे। ऐसी कहानियां बच्चों के ब्रेन पावर को बढ़ाने में इंपॉर्टेंट रोल प्ले करती थीं। आज भी इस तरीके का इस्तेमाल किया जा सकता है पैरेंट्स को चाहिए कि वे अपने बच्चों को कहानियां जरूर सुनाएं। जरूरी नहीं है कि बच्चा 3 या 4 साल का है, तभी उसे कहानियां सुनाना ठीक है। 10-12 साल के बच्चों को भी कहानियां सुनाकर, बहुत सी अच्छी बातें समझाई जा सकती हैं। कुछ ऐसी कहानियां बच्चों को जरूर सुनाएं, जिनमें समझदारी, एकाग्रता वाली बातें शामिल हों। ऐसा करने से बच्चे का कंसंट्रेशन बढ़ने के साथ क्रिएटिविटी भी बढ़ती है।