ये हैं दूसरे गांधी! क्या आप जानते हैं इनकी महानता की कहानी, पढ़ें पूरी खबर
नेल्सन मंडेला गांधी जी के विचारों से काफी प्रभावित थे। उन्हीं के विचारों से प्रभावित होकर उन्होंने रंगभेद के खिलाफ अपने अभियान की शुरुआत की थी।
नई दिल्ली: क्या आप इस धरती के दूसरे गांधी के बारे में जानते हैं। भारत में लोग राष्ट्रपिता मोहन दास करमचंद गांधी का बहुत सम्मान करते हैं और उनके सम्मान में ये भी कहा जाता है कि, इस धरती पर कोई दूसरा गांधी नहीं होगा। लेकिन दक्षिण अफ्रीका के सबसे बड़े नेता नेल्सन मंडेला को भी लोग गांधी कहकर ही पुकारते थे। नेल्सन मंडेला गांधी जी के विचारों से काफी प्रभावित थे। उन्हीं के विचारों से प्रभावित होकर उन्होंने रंगभेद के खिलाफ अपने अभियान की शुरुआत की थी।
मंडेला को गांधी कहकर पुकारा जाने लगा
नेल्सन मंडेला को अपने अभियान में इस कदर सफलता मिली कि उन्हें भी गांधी कहा जाने लगा। और खास बात ये है कि, वो दक्षिण अफ्रीका की ही धरती थी जहां पर गांधी जी के साथ रंगभेद हुआ था। दक्षिण अफ्रीका उन्हें रंगभेद के कारण ट्रेन के फर्स्ट क्लास बोगी से बाहर निकाल दिया गया। इसके बाद विदेश से अपने स्वदेश लौटे गांधी जी ने अंग्रेजों के खिलाफ जंग छेड़ दी थी और उन्हें भारत की धरती से खदेड़कर ही दम लिया।
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'भारत रत्न' से हुए थे सम्मानित
सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' से सम्मानित नेल्सन मंडेला ने भी रंगभेद के खिलाफ एक अभियान शुरु किया थ। इस अभियान ने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया था और यही वजह है कि साल 1990 में उन्हें भारत सरकार ने सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' से सम्मानित किया था।
वहीं नेल्सन मंडेला ऐसे पहले विदेशी हैं, जिन्हें 'भारत रत्न' से सम्मानित किया गया। उसके बाद नेल्सन मंडेला को साल 1993 में नोबेल शांति पुरस्कार से नवाजा गया था। साल 2013 में 5 दिसंबर को एक बड़ी बिमारी के चलते नेल्सन मंडेला का 95 वर्ष की उम्र में निधन हो गया।
27 सालों तक रहे थे जेल में
रंगभेद के खिलाफ अभियान शुरु करने की वजह से तत्कालीन सरकार ने नेल्सन मंडेला को 27 साल के लिए रॉबेन द्वीप की जेल में डाल दिया था। वहां पर उन्होंने कोयला खनिक का काम किया था। जेल में उन्हें सोने के लिए एक खास-फूस की एक चटाई उपलब्ध कराई गई थी। फिर साल 1990 में श्वेत सरकार से हुए एक समझौते के बाद नेल्सन मंडेला ने एक नए दक्षिण अफ्रीका का निर्माण किया।
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उनके सम्मान में मनाते है 'मंडेला दिवस'
रंगभेद के खिलाफ उन्होंने जो जंग छेड़ा था, उसके लिए उनके सम्मान में उनके जन्मदिन यानि 18 जुलाई के दिन को, साल 2009 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 'मंडेला दिवस' के रूप में घोषित कर दिया। वहीं इसमें खास बात ये भी है कि, नेल्सन मंडेला के जीवित रहते ही उनके जन्मदिन को अंतरराष्ट्रीय दिवस के रुप में घोषित कर दिया गया और उसके बाद हर साल 18 जुलाई को 'मंडेला दिवस' मनाया जाने लगा।
'मंडेला दिवस' शांति स्थापना, रंग-भेद समाधान, मानवाधिकारों की रक्षा और लैंगिक समानता की स्थापना के लिए किए गए उनके सतत प्रयासों के लिए मनाया जाता है। मंडेला को शांतिदूत भी कहा जाता है। आज भले ही नेल्सन मंडेला इस दुनिया में न हों लेकिन उनके सतत प्रयासों के लिए उन्हें आज भी याद किया जाता है।
आज ही के दिन हुई थी उम्र कैद की सजा
दक्षिण अफ्रीका के सबसे बड़े नेता नेल्सन मंडेला को आज ही के दिन यानि 5 दिसंबर को साल 1964 में उम्र कैद की सजा दी गई थी। उन पर तख्तापलट की साजिश का आरोप लगाया गया और 27 सालों तक जेल में रखा गया। 27 सालों की जेल के बाद साल 1990 में उनको जेल से रिहा किया गया और साल 1994 में वो दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति बने।
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लोग उन्हें प्यार से ‘मदीबा’ भी बुलाते थे। उन्हें लोग अफ्रीका गांधी कहकर पुकारते थे। मंडेला गांधी जी विचारों से खासा प्रभावी थे। उन्हीं के ही विचारों से प्रभावित होकर उन्होंने रंगभेद के खिलाफ अभियान शुरु किया था। इस मुहिम में मिली सफलता के बाद उन्हें सब अफ्रीका का गांधी कहकर पुकारा जाने लगा।
18 जुलाई को हुआ था जन्म
नेल्सन मंडेला का जन्म 18 जुलाई, 1918 को दक्षिण अफ्रीका में बासा नदी के किनारे ट्रांसकी के मर्वेजो गांव में हुआ था। मंडेला 10 मई 1994 को अफ्रीका के राष्ट्रपति बनाए गए थे, उनका कार्यकाल 10 मई 1994 से 14 जून 1999 तक रहा। नेल्सन मंडेला दक्षिण अफ्रीका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति थे।
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मंडेला सरकार ने सालों से चली आ रही रंगभेद की नीति को अफ्रीका की धरती से जड़ से खत्म करने और बाहर करने के लिए भरपूर काम किया। उन्होंने एक नए दक्षिण अफ्रीका का निर्माण किया था। 1991 से 1997 तक वह अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे।
बीमारी के बाद हुआ निधन
5 दिसंबर 2013 को लंबी बीमारी के बाद नेल्सन मंडेला का 95 साल की उम्र में निधन हो गया। इस खबर की सूचना दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति जैकब जूमा ने टीवी पर सुनाई। जिसके बाद देश में करीब 10 दिन तक राष्ट्रीय शोक बनाया गया। मंडेला के निधन की खबर ने पूरी दुनिया की आंखें नम कर दी थीं।
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