UP Top News: मोदी के खिलाफ लड़ने का मिला इनाम, जाने कौन हैं नेता
UP Congress News: पार्टी के पूर्व विधायक अजय राय को प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है। अजय राय वाराणसी से पीएम मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ चुके हैं। वह बृजलाल खाबरी का स्थान लेंगे।
UP Congress News: लोकसभा चुनाव 2024 से पहले कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में बड़ा बदलाव किया है। पार्टी के पूर्व विधायक अजय राय को प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है। अजय राय वाराणसी से पीएम मोदी के खिलाफ दो बार लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं। वह बृजलाल खाबरी का स्थान लेंगे।
कौन हैं अजय राय?
अजय राय का जन्म वाराणसी में 19 अक्टूबर, 1969 हुआ था। अजय राय के राजनैतिक जीवन की शुरुआत 1996 से हुई। समाजवादी पार्टी, भारतीय जनता पार्टी में भी रहे अजय राय। वाराणसी के कोल असला की सीट से भारतीय जनता पार्टी की टिकट पर तीन बार लगातार चुनाव जीते।1996 से 2007 तक लगातार 3 बार कोल असला की सीट से चुनाव जीते। साल 2009 में बिना किसी पार्टी के निर्दल चुनाव लड़ें और प्रचंड बहुमत से चुनाव भी जीते। चुनाव जीतने के बाद समाजवादी पार्टी का दामन थाम लिया। 2009 में बीजेपी ने लोकसभा का टिकट काट दिया जिसके बाद अजय राय सपा में शामिल हुए।
समाजवादी पार्टी ने अपना भरोसा जताते हुए अजय राय को 2009 में लोकसभा का चुनाव लड़वाया लेकिन भारतीय जनता पार्टी की तरफ से मुरली मनोहर जोशी वाराणसी से चुनाव लड़ें जिसमें अजय राय की हार हुई।2012 में अजय राय ने कांग्रेस ज्वॉइन किया। कांग्रेस पार्टी ने भरोसा जताते हुए अजय राय को पिंडरा सीट से विधानसभा का टिकट दिया जिसमें अजय राय ने प्रचंड बहुमत के साथ जीत दर्ज किया। साल 2014 में अजय राय ने देश के प्रधानमंत्री पीएम मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ा। अजय राय 2014 का लोकसभा चुनाव हार गए। चुनाव हारने के बाद से अभी तक अजय राय पिंडरा से भी चुनाव नहीं जीत पाए।अजय राय के साथ का सिलसिला 2019 में बरकरार रहा।
दो बार पीएम मोदी के खिलाफ लड़ चुके हैं चुनाव
अजय राय दो बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विरुद्ध वाराणसी से लोकसभा का चुनाव लड़ चुके हैं। पहली बार 2014 में और दूसरी बार 2019 में चुनाव लड़ा था। अजय 2017 में पिंडरा विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा था, लेकिन उन्हें अजय राय से हार का सामना करना पड़ा।
बता दें कि 80 लोकसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश में पिछले कुछ चुनावों के परिणाम को देखें तो पता चलाता है कि प्रदेश में कांग्रेस की स्थिति ठीक नहीं है। विधानसभा चुनाव 2022 में कांग्रेस को सीर्फ दो सीटों से संतोष करना पड़ा। जबकि 2019 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने अपनी सबसे सुरक्षित सीट भी गंवा दी। ऐसी स्थिति में अब नए अध्यक्ष के रूप में अजय राय के सामने सबसे बड़ी चुनौती है कि वह बिखरे हुए पार्टी को एक कर लोकसभा चुनाव 2024 से पहले पार्टी कैडर तैयार करें।
लंबा राजनीतिक करियर है कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अजय राय का
पांच बार चुनाव जीतकर पूरे दो दशक विधायक और प्रदेश सरकार में एक बार राज्य मंत्री रहे अजय राय का परिवार मूल रूप से गाजीपुर के मलसा गांव के साथ ही तीन पीढ़ियों से बनारस से भी जुड़ा रहा और लहुराबीर में आवासित है। उनका जन्म बनारस में ही सात अक्तूबर, 1969 को श्री सुरेन्द्र राय के पुत्र के रूप में हुआ। उनके बड़े पिता श्रीनारायण राय बनारस जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे। बड़े भाई स्व.अवधेश राय भी कांग्रेस से ही जुड़े थे, लेकिन अजय राय ने उनकी हत्या के बाद भाजपा के साथ राजनीति शुरू की। 2009 में पार्टी का लोकसभा टिकट तय होने के बाद भाजपा छोड़ सपा के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़े और मुरली मनोहर जोशी एवं मुख्तार अंसारी के बाद तीसरे नंबर पर रहे। सपा उन्हें रास नहीं आई और अपने इस्तीफे से रिक्त विधानसभा सीट पर निर्दल उम्मीदवार के रूप में लड़े और एक बार फिर चर्चित जीत दर्ज की। जीतने के बाद उन्होंने अपने परिवार की पुरानी परम्परागत पार्टी कांग्रेस का रुख किया। प्रभारी कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह उनके घर गये। वह कांग्रेस से जुड़कर कांग्रेस विधायक दल के सम्बद्ध सदस्य बन गये। पांचवीं बार लगातार अपना विधानसभा चुनाव उन्होंने 2012 में कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में लड़ा और जीत दर्ज कर लंबे अंतराल के बाद कांग्रेस की झोली में कोई विधान सभा सीट डाली।
2014 में नरेन्द्र मोदी के खिलाफ लड़ा चुनाव
कांग्रेस ने अजय राय के जमीनी संघर्ष की राजनीति के चलते उनको 2014 में प्रधानमंत्री पद के बीजेपी के घोषित चेहरे नरेन्द्र मोदी के खिलाफ वाराणसी संसदीय सीट पर उम्मीदवार बनाया। तमाम दबावों की चिन्ता छोड़कर लड़े अपने उस चुनाव में उन्होंने कड़ी हार के बावजूद पूरा राजनीतिक फोकस अपनी ओर खींचने में कामयाबी हासिल की। नाराज सपा सरकार और केन्द्र में पदारूढ़ भाजपा के वह निशाने पर रहे। संतों के एक प्रतिकार आन्दोलन में उन्हें गिरफ्तार कर फतेहगढ़ जेल में डाल कर उन पर रासुका आमद कर दिया गया, जबकि भाजपा सहित कई दलों के नेता उस आंदोलन में थे। बाद में वह हाईकोर्ट से बाइज्जत बरी हुये। 2014 का चुनाव लड़े अरविंद केजरीवाल भले कभी बनारस नहीं लौटे, लेकिन अजय राय निरन्तर आन्दोलनात्मक संघर्ष की राजनीति से बनारस में लगातार सक्रिय रहे। अतः राजनीतिक दबाव का टारगेट भी बने।