गौरवमयी इतिहास है उत्तर प्रदेश विधानसभा का

Update:2023-04-24 14:44 IST
गौरवमयी इतिहास है उत्तर प्रदेश विधानसभा का

श्रीधर अग्निहोत्री

लखनऊ: उत्तर प्रदेश की विधानसभा अपने अतीत की सुनहरी यादों को लेकर एक बार फिर इतराने को तैयार है। उत्तरप्रदेश के इतिहास में पहली बार गांधी जयंती के मौके पर 48 घंटे का सत्र बुलाया जाएगा। मजे की बात यह है कि यह सत्र लगातार 48 घंटे चलेगा। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सुझाव पर यह अभिनव प्रयोग किया जा रहा है। राष्ट्र्रपिता महात्मा गांधी की 150वी जयंती के अवसर पर यह विशेष सत्र बुलाया गया है।

महात्मा गांधी को दर्शन विश्वस्तर पर विख्यात है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने 2015 में सतत विकास के17 लक्ष्य तय किए थे, जिस पर भारत ने भी अपनी सहमति दी थी और हस्ताक्षर किए थे। उस लक्ष्य को पाने के लिए सरकार-विधायिका सबको कोशिश करनी थी और इसी आधार पर सभी नेताओं को आमंत्रित किया गया था। संयुक्त राष्ट्र में गांधी जयंती के उपलक्ष्य में इन 17 विषयों पर भारत ने हस्ताक्षर भी किए हैं। इसमें स्वास्थ्य, कुपोषण, अशिक्षा, पेयजल संकट और सर्वांगीण विकास जैसे मसलों पर सभी विधायकों को चर्चा का मौका मिलेगा। देश के संसदीय इतिहास में इतनी लंबी अवधि का सत्र बिना विश्राम के किसी विधानसभा में नहीं चला है।

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का उप्र से विशेष जुड़ाव रहा है। इसलिए उनकी जयंती पर यह ऐतिहासिक आयोजन करने पर सहमति बनी है। 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से लेकर गांधी जी के नेतृत्व में चले स्वतंत्रता संग्राम में उत्तर प्रदेश की अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका रही और इसने कई महत्वपूर्ण नेता दिए। इस अवधि में इस प्रदेश का देश के सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक विकास में उल्लेखनीय योगदान रहा है।

2013 में भी हुआ था विशेष आयोजन

इसके पहले पिछली अखिलेश सरकार के दौरान भी यूपी विधानसभा ने 2012 में 6 से 8 जनवरी 2013 को उत्तरशती (125 वर्ष) रजत जयन्ती समारोह मनाया था। इसमें इस सदन के पूर्व सदस्यों नारायणदत्त तिवारी व मुलायम सिंह यादव समेत कई अन्य माननीयों को सम्मानित किया गया था। जबकि तिथियों को लेकर कुछ अन्तर्विरोधों के चलते 2003 में तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती और विधानसभा अध्यक्ष केशरी नाथ त्रिपाठी के कार्यकाल में इलाहाबाद में उत्तर प्रदेश विधानमंडल स्थापना का उत्तरशती समारोह मनाया जा चुका था। इसके पहले मायावती के मुख्यमंत्रित्वकाल में 29 जुलाई 1997 को यूपी विधानसभा ने हीरक जयन्ती समारोह का आयोजन किया था। यूपी विधानसभा ने 1987 में स्वर्ण जयन्ती समारोह का आयोजन किया था जिसमें तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी मुख्य अतिथि के तौर पर यहां आए थे।

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शुरुआत में थे नौ सदस्य

अपना राज, अपना कानून बनाए जाने की मांग 8 जनवरी 1887 को उस समय साकार हुई, जब नार्थ वेस्टर्न प्राविसेंस एंड अवध के तत्कालीन लेफ्टिनेंट गर्वनर एवं मुख्य आयुक्त अवध ने चार भारतीयों सर सैयद अहमद खान, राजा प्रताप नारायण सिंह, राय बहादुर दुर्गा प्रसाद और पंडित अजुध्यानाथ को कौंसिल का सदस्य नियुक्त किया था। कौंसिल में जे.डब्लू क्ंिवटन, टी.काननाल, जे वुडबर्न, एमए मैकांगी तथा जीई नाक्स को सचिव नियुक्त किया गया था।प्रारम्भ में नौ सदस्यों से आरम्भ हुई इस विधानमंडल की सदस्य संख्या इंडियन कौसिंल एक्ट 1892 में संशोधन करके 15 तक पहुंची। इसके बाद 1909 में मार्ले मिन्टो सुधारों के तहत भारतीयों का प्रतिनिधित्व 50 तक पहुंचा जिसमें अधिकांश सदस्य गैर सरकारी थे। इसके बाद गवर्नमेंट आफ इंडिया एक्ट 1919 के तहत संशोधन करके सदस्यों की संख्या 123 कर दी गयी।

1937 में अध्यक्ष चुने गए टंडन

वर्ष 1935 में पारित गर्वनमेंट आफ इंडिया एक्ट के तहत विधानसभा का गठन सबसे पहले एक अप्रैल 1937 को किया गया। तब इस सदन का नाम यूनाइटेड प्रोविंसेज लेजेस्लिेटिव एसेम्बली हुआ करता था। इसके लिए सबसे पहले 1936 में चुनाव कराए गए जिसमें कांग्रेस को बहुमत मिला और जुलाई 1937 में पं गोबिन्द वल्लभ पंत के नेतृत्व में पहली बार मंत्रिमंडल का गठन किया गया। इस विधानसभा की पहली बैठक इसी भवन में 29 जुलाई 1937 को आयोजित की गयी जिसमें पुरुषोत्तम दास टंडन को अध्यक्ष तथा अब्दुल हकीम को उपाध्यक्ष चुना गया। इसके बाद पं गोबिन्द वल्लभ पंत ने कुछ साल बाद अपने पद से इस्तीफा दे दिया।

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1949 में पारित हुए दो ऐतिहासिक विधेयक

इसके बाद 1946 में फिर चुनाव कराए गए तो श्री पंत के नेतृत्व में एक बार फिर मंत्रिमंडल का गठन किया गया।इस विधानसभा की पहली बैठक 25 अप्रैल 1946 को हुई थी। 27 अप्रैल 1946 को राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन को पुन: अध्यक्ष चुने जाने के बाद 15 अगस्त 1946 को नफीसुल हसन को विधानसभा का उपाध्यक्ष चुना गया। स्वतंत्रता के बाद यूपी विधानसभा की पहली बैठक 3 नवम्बर 1947 को सम्पन्न हुई।यूपी विधानसभा में 1949 को दो ऐतिहासिक विधेयक पारित हुए। यह विधेयक यूपी जमींदारी विनाश और भूमि व्यवस्था विधेयक तथा यूपी काश्तकार(विशेषाधिकारी उपार्जन) थे। इनमें से पहला विधेयक 1951 में और दूसरा विधेयक दिसम्बर 1949 में अधिनियम बना।

1950 में नाम विधानसभा हुआ

चार नवम्बर 1947 को विधानसभा में यह संकल्प लिया गया कि विधानसभा के सभी कार्यों तथा कार्यवाहियों में केवल हिन्दी भाषा का ही प्रयोग किया जाएगा। आजादी के बाद जब 26 जनवरी 1950 को संविधान लागू होते ही राज्य और सदन दोनों का नाम बदल दिया गया। राज्य का नाम यूनाइटेट प्रोविन्ससे उत्तर प्रदेश और सदन लेजिस्लिेटिव असेम्बली से विधानसभा हो गया जिसे आज उत्तर प्रदेश विधानसभा के नाम से पूरे विश्व में जाना जाता है। यूनाइटेड प्रोविन्स से उत्तर प्रदेश बनने के बाद विधानमंडल का प्रथम सत्र 2 फरवरी 1950 को आरम्भ हुआ जिसमें पुरुषोत्तम दास टंडन को अध्यक्ष पद की शपथ दिलाई गयी। 11 अगस्त 1950 को टंडन के इस्तीफा देने के बाद 21 दिसम्बर 1950 को नफीसुल हसन को अध्यक्ष तथा हरगोबिन्द पंत को उपाध्यक्ष निर्वाचित किया गया।

सीतारमन विधानपरिषद के पहले सभापति

इसी तरह विधानपरिषद में पहले सभापति के रूप में डा.सीतारमन का नाम इतिहास में अंकित है। उनका जन्म 12 जनवरी 1885 को मेरठ में हुआ था। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेजी और संस्कृत में उच्च श्रेणी में एमए पास करने के बाद आगरा विश्वविद्यालय ने उन्हें मानद और डाक्टरेट की उपाधि प्रदान की। डा. सीतारमन वर्ष 1921 में राज्य विधानमंडल के सदस्य हुए थे। 19 अगस्त 1925 को वे काउंसिल के प्रेसीडेंट निर्वाचित हुए। इसके बाद 9 मार्च 1949 तक वे लगभग 25 वर्षो तक काउंसिल के सभापति रहे।

1922 में हुआ विधानभवन का शिलान्यास

लेजेस्लिेटिव कौंसिल की शुरुआत में अपना कोई भवन नहीं था। इसलिए विधानमंडल की कुल चार बैठकें भिन्न-भिन्न नगरों के 11 भवनों में हुई। बाद में सदस्यों की बढ़ती संख्या को देखते हुए 27 जनवरी 1920 में एक बड़े भवन की जब आवश्यकता हुई तो लखनऊ में ही एक बड़ेे भवन के निर्माण का निर्णय लिया गया।इसके बाद 21 दिसम्बर 1922 को विधानभवन का शिलान्यास तत्कालीन गर्वनर हरकोर्ट बटलर ने किया। मिर्जापुर से लाए गए पत्थरों से बने देश की खूबसूरत इमारतों में से एक यूपी विधानभवन बनने में छह वर्ष लग गए। इस भवन का निर्माण कलकत्ता की कंपनी मेसर्स मार्टिन एंड कंपनी की ओर से किया गया था। इसके मुख्य आर्किटेक्ट सर रिवनोन जैकब तथा हीरा सिंह थे।

निर्माण पर खर्च हुए 21 लाख

उस समय इसके निर्माण में 21 लाख रुपए स्वीकृत किए गए थे। इस भवन की स्थापत्य शैली यूरोपियन और अवधी निर्माण की मिश्रित शैली है। भवन के अन्दर अनेक हाल एवं दीर्घाए हैं जो आगरा और जयपुर के संगमरमर से निर्मित हैं। ऊपरी मंजिल पर जाने के लिए मुख्य द्वार के दाहिने और बाईं ओर अत्यन्त सुन्दर शैली में संगमरमर की निर्मित गोलाकार सीढिय़ां बनी हैं। इसके अष्टभुजाकार मंडप की छत गुम्बद के रूप में है। इस मंडप के अन्दर पंख फैलाए नृत्य करते हुए राष्ट्रीय पक्षी मोर के चित्र को बहुत ही भव्य ढंग से उकेरा गया है। वर्तमान विधानभवन के निर्माण के बाद 27 फरवरी 1928 से विधानमंडल की बैठकें इसी भवन में हो रही हैं। इसके अलावा विधानपरिषद की बैठकों का प्रस्ताव जुलाई 1935 में हुआ जिसके निर्माण का कार्य मेसर्स फोर्ड एंड मैकडानाल्ड को सौंपा गया। मुख्य वास्तुविद एएम मार्टिनर द्वारा एक्सटेंशन भवन का निर्माण कराया गया जो लोकनिर्माण विभाग की देखरेख में नवम्बर 1937 में पूरा हुआ। विधानपरिषद का यह भवन मुख्यभवन के दोनों ओर बनाए गए कमरों एवं बरामदों से जुड़ा हुआ है।

विधानसभा ने दिए कई बड़े नेता

उत्तर प्रदेश विधानसभा राज्य विधानमंडलों में एक अकेली संस्था है जिसने भारत को लाल बहादुर शास्त्री, चौधरी चरण सिंह और वीपी सिंह तथा पाकिस्तान को नवाबजादा मोहम्मद अली खां जैसे प्रधानमंत्री दिए हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ की पहली महिला अध्यक्ष श्रीमती विजय लक्ष्मी पंडित यूपी की पहली लेजेस्लिेटिव असेम्बली की सदस्य थीं। पंडित जवाहरलाल नेहरू, डा.एस.राधाकृष्णन, आचार्य जेबी कृपलानी और फिरोज गांधी जैसे राजनीतिकों को इस विधानसभा ने भारत की संविधान के लिए सदस्य चुना गया था। यही नहीं पं.गोबिन्द वल्लभ पंत, रफी अहमद किदवई, आचार्य नरेन्द्र देव चन्द्रभानु गुप्त, चौ चरण सिंह, नारायण दत्त तिवारी जैसे राजनीतिज्ञों को इस सदन ने राष्ट्र को दिया है।

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विधानसभा अध्यक्ष- अब तक

यूपी विधानसभा अध्यक्ष का जो गौरवशाली सफर राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन के कुशल दिशा निर्देशन में 31 जुलाई 1937 को शुरू हुआ था। उस सफर के वर्तमान सारथी हदयनारायण दीक्षित उसे आज अपनी विद्वता कुशल संचालन और संविधान की पारखी निगाहों से उसे बेहतरीन ढंग से चला रहे है।

श्री दीक्षित से पहले पुरुषोत्तम दास टंडन(31 जुलाई से 10 अगस्त 1950), शफीसुल हसन ( 21 दिसम्बर से 19 मई 1952),आशाराम गोबिन्द खेर ( 20 मई 1952 से 10 अप्रैल 1957, 10 अप्रैल 1957 से 26 मार्च 1962 तथा 17 मार्च 1969 से 18 मार्च 1974 तक, तीन बार), मदन मोहन वर्मा (26 मार्च 1962 से 16 मार्च 1967 तक), जगदीश चन्द्र अग्रवाल (17 मार्च 1967 से 16 मार्च 1969 तक), वासुदेव सिंह (18 मार्च 1974 से 13 जुलाई 1977 तक),बनारसी दास ( 12 जुलाई 1977 से 26 फरवरी 1979 तक), श्रीपति मिश्र ( 7 जुलाई 1980 से 18 जुलाई 1982 तक), धर्म सिंह ( 25 अगस्त 1982 से 15 मार्च 1985 तक), नियाज हसन (15 मार्च 1985 से 9 जनवरी 1990 तक),हरी किशन श्रीवास्तव (9 जनवरी 1990 से 30 जुलाई 1991 तक), केशरी नाथ त्रिपाठी (30 जुलाई 1991 से 16 दिसम्बर 1993, 21 मार्च 1997 से 14मई 2002 तथा 14 मई 2002 से 19 मई 2004 तक, तीन बार),धनीराम वर्मा ( 15 दिसम्बर 1993 से 20 जून 1995 तक), बरखू राम वर्मा ( 18 जुलाई 1995 से 26 मार्च 1997 तक),सुखदेव राजभर ( 15 मई 2007 से 13 अप्रैल 2012 तक), माता प्रसाद पाण्डेय ( 26 जुलाई 2004 से 18 मई 2007 तक, 13 अप्रैल 2012 से 18 मार्च 2017 तक) रहे। इसके बाद 19 मार्च 2017 को प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्रित्व में गठित विधानसभा के अध्यक्ष के तौर पर हदयनारायण दीक्षित विधानसभा का कुशल संचालन कर रहे हैं।

 

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