रामजन्म भूमि विवाद: फैसले के इंतजार में अयोध्या
अयोध्यावासियों के मन में सुप्रीमकोर्ट से इंसाफ की उम्मीद दिख रही है। दशकों पुराने अयोध्या विवाद का फैसले का हर किसी को बेसब्री से इंतजार है। देश की सबसे बड़ी अदालत में चल रही सुनवाई पूरी हो चुकी है।
श्रीधर अग्निहोत्री
लखनऊ: पिछले कई साल से न्याय के इंतजार में शांत पड़ी अयोध्या के मिजाज में इधर कुछ बदलाव दिख रहा है। सरयू नदी के बहाव ने गति पकड़ी है, साधु- संतों के चेहरे पर सुकून दिख रहा है। अयोध्यावासियों के मन में सुप्रीमकोर्ट से इंसाफ की उम्मीद दिख रही है। दशकों पुराने अयोध्या विवाद का फैसले का हर किसी को बेसब्री से इंतजार है। देश की सबसे बड़ी अदालत में चल रही सुनवाई पूरी हो चुकी है। इसे देश की आजादी के बाद सबसे बड़ा मामला बताया जा रहा है क्योंकि सियासत पर भी इसका गहरा असर पडऩे की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।
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राम मंदिर मामले ने 1984 में उस समय तेजी पकड़ी जब विश्व हिंदू परिषद ने बाबरी मस्जिद के ताले खोलने और राम जन्मस्थान को स्वतंत्र कराने व एक विशाल मंदिर के निर्माण के लिए अभियान शुरू किया। विहिप ने इसके लिए एक समिति का गठन किया गया। वर्ष 1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने विवादित स्थल का ताला खुलवा दिया। एक फरवरी 1986 को फैजाबाद के जिला न्यायाधीश कृष्ण मोहन पाण्डे ने विवादित स्थल पर हिंदुओं को पूजा की इजाजत दे दी। इस घटना के बाद नाराज मुसलमानों ने बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का गठन किया। तब मो.हाशिम ने इस निर्णय के विरुद्ध अपील दायर की तथा बाद मुस्लिम समाज ने कांग्रेस के खिलाफ नाराजगी व्यक्त करते हुए काला दिवस मनाया। कई जगह आगजनी व हिंसा हुई। इसका राजनीतिक परिणाम यह रहा मुसलमान कांग्रेस से नाराज हो गया और 1989 के चुनाव में कांग्रेस प्रदेश की सत्ता से बेदखल हो गयी।
मुलायम राज में चली कारसेवकों पर गोलियां
अयोध्या विवाद का अगला पड़ाव उस समय आया जब मंदिर निर्माण के लिए उमड़े हुजूम को रोकने के लिए मुलायम सरकार के आदेश पर पहले 30 अक्टूबर और बाद में 2 नवम्बर 1990 को पुलिस ने लाठियां बरसाकर कारसेवकों को रोकना चाहा। जब कारसेवक नहीं रुके तो उन पर गोली चलाने का आदेश दिया गया। इस घटना का परिणाम यह रहा कि केन्द्र में वी.पी. सिंह की राष्ट्रीय मोर्चा सरकार ने विश्वासमत खो दिया और चन्द्रशेखर ने प्रधानमंत्री का पद संभाला। चंद्रशेखर ने एक दिसम्बर 1990 को मुलायम सरकार की तरफ से की गयी कार्रवाई को उचित बताया। इसके बाद 1991 के विधानसभा चुनाव में मुलायम का सूपड़ा साफ हो गया और 24 जून 1991 को प्रदेश में कल्याण सिंह के नेतृत्व में भाजपा सरकार का गठन हुआ।
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बाबरी विध्वंस के बाद चार सरकारें बर्खास्त
कल्याण सिंह की सरकार के गठन होते ही हिन्दूवादी ताकतें सक्रिय हो गयीं। 29 और 30 नवम्बर 1992 को नई दिल्ली में पंचम धर्म संसद में इस विवाद का समाधान न होने पर 6 दिसम्बर को अयोध्या में कारसेवा करने की घोषणा कर दी गयी। परिणाम यह रहा कि इस दिन देश भर से आए अयोध्या पहुंचे उन्मादी कारसेवकों ने बाबरी ढांचे का विध्वंस कर दिया। इसके बाद केन्द्र सरकार ने उत्तर प्रदेश के अलावा भाजपा शासित तीन अन्य राज्यों हिमाचल प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश की सरकारों को बर्खास्त कर दिया।
मुकदमे की शुरुआत
वर्ष 1885 में पहली बार रघुवर दास ने खुद को श्रीराम जन्मभूमि मंदिर का पुजारी बताते हुए मंदिर बनाने के लिए अदालत में याचिका दायर की थी। फैजाबाद के सब जज पंडित हरकिशन ने 24 दिसंबर 1885 को इसे खारिज कर दिया। इसके बाद 1950 में गोपाल सिंह विशारद ने वाद दायर किया। उन्होंने विवादित स्थल पर भगवान राम की पूजा की अनुमति मांगी थी। दूसरा वाद 1950 में ही परमहंस रामचंद्र दास ने दायर किया। उन्होंने भी यही अनुमति मांगी, लेकिन बाद में उन्होंने इसे वापस ले लिया। तीसरा वाद 1959 में निर्मोही अखाड़े ने दायर किया और रिसीवर से विवादित स्थल का प्रभार मांगा। चौथा मुकदमा उप्र सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने दायर किया जिसमें विवादित स्थल के कब्जे की मांग की गई। पांचवां वाद एक जुलाई 1989 को भगवान श्री रामलला विराजमान के नाम से दायर किया गया। इसमें भी विवादित स्थल पर
कब्जे की मांग की गई
इसके बाद उत्तर प्रदेश के तत्कालीन महाधिवक्ता के आवेदन पर सभी चारों मामले 1989 में उच्च न्यायायल में हस्तांतरित हो गए। उच्च न्यायालय ने मामले में सुनवाई करते हुए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण एएसआई को विवादित स्थल के आसपास खुदाई करने को कहा ताकि यह पता लगाया जा सके कि क्या मस्जिद से पहले वहां मंदिर बना था। रामजन्मभूमि परिसर के आसपास उत्खनन का कार्य 12 मार्च 2003 से शुरू हुआ, जो 7 अगस्त 2003 तक चला।
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एएसआई को मिले मंदिर के प्रमाण
अयोध्या में राम मंदिर की सत्यता जानने की कोशिश में खुदाई करने वाली एएसआई टीम को पहली बार 1977-78 में और बाद में भी जब एएसआई की टीम ने खुदाई की तो बाबरी मस्जिद के नीचे मंदिर के प्रमाण मिले हैं। एएसआई को जल की मकरमुख वाली परनाली, शिखर के नीचे अमलका और सबसे बड़ा प्रमाण विष्णु हरि शिला फलक जो कहता है कि यह मंदिर उसका है जिसने दस शीश वाले का वध किया। एएसआई टीम को खुदाई में मंदिर के 14 स्तंभ भी मिले थे।
जमीन को तीन हिस्सों में बांटने का आदेश
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में दस जनवरी 2010 से शुरू हुई नियमित सुनवाई के दौरान अदालत के समक्ष इस मामले में कुल 94 गवाह पेश हुए। इनमें 58 गवाह हिन्दू पक्ष के तथा 36 गवाह मुस्लिम पक्ष से रहे। कोर्ट में सुनवाई 24 जुलाई को पूरी हो गई और विशेष पीठ ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। बाद में 30 सितम्बर 2010 को फैसला सुनाया गया। फैसले में कहा गया कि अयोध्या का विवादित स्थान ही भगवान राम का जन्मस्थान है। यह स्थान करोड़ों हिन्दुओं की आस्था का स्थान है। यहां पर बाबर ने विवादित स्थल पर मस्जिद का निर्माण कराया था। हाईकोर्ट की तीन सदस्यीय बेंच ने दस हजार पृष्ठों के फैसले में जमीन को तीन हिस्से बांटने की बात कही जिसमें एक हिस्सा रामलला विराजमान, एक हिस्सा निर्मोही अखाड़ा और एक हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को देने की बात थी। तीनों जजों एसयू खान, सुधीर अग्रवाल और डीवी शर्मा ने अलग-अलग फैसले दिए, लेकिन पूजा जारी रखने पर तीनों जज एकमत रहे।
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फैसले में कहा गया कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण तथा अन्य प्राप्त सबूतों से यह प्रतीत होता है कि बाबरी मस्जिद का निर्माण किसी हिन्दू मंदिर के ऊपर किया गया और विवादित ढांचा हिन्दू मंदिर को तोडऩे के बाद बनाया गया। कोर्ट ने यह भी कहा कि रामलला की मूर्ति 1949 में गुम्बद के अन्दर रखी गयी थी। तीन सदस्यीय बेंच के फैसले में कहा गया कि निर्मोही अखाड़े को सीता रसोई और राम चबूतरे और भंडार का हिस्सा मिलेगा। बाकी का हिस्सा मुस्लिमों को दिया जाएगा। तीनों पार्टियों को तीन माह के अंदर बताना होगा कि वे कौन का हिस्सा चाहते हैं।
दोनों पक्ष संतुष्ट नहीं, मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा
इसके बाद इस फैसले पर न तो मुस्लिम पक्ष सहमत हुआ और न ही हिन्दू पक्ष। अक्टूबर 2010 में कारसेवकपुरम में हुई इस बैठक में 41 सदस्यों वाली कमेटी में ज्योतिषपीठ शंकराचार्य वासुदेवानन्द सरस्वती, रामजन्मभूमि ट्रस्ट के अध्यक्ष महंत नृत्यगोपाल दास, स्वामी चिन्मयानन्द,रामविलास वेदान्ती के अलावा विहिप अध्यक्ष डा.अशोक सिंहल, डा.प्रवीण तोगडिय़ा समेत अन्य हिन्दू नेताओं ने हिस्सा लेकर मामले को सुप्रीम कोर्ट में ले जाने की रणनीति बनाई। वहीं आल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड पहले ही सुप्रीम कोर्ट जाने की बात कह चुका था। दोनों पक्षों के सुप्रीम कोर्ट जाने के निर्णय से 60 साल पुराना विवाद फिर उसी जगह पहुंच गया।
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इस मामले में हिन्दू पक्ष का कहना है कि यहां आदिकाल से मंदिर से था। मुगल सेनापति मीर बाकी ने मंदिर को तोडक़र इसके स्थान पर मस्जिद बनवाई थी। इस स्थान पर मुसलमानों ने कभी भी नमाज नहीं पढ़ी, जबकि यहां 1949 से लगातार भगवान राम की पूजा हो रही है। दूसरी ओर मुस्लिम पक्ष का कहना है कि यह ढांचा शुरू से मस्जिद ही था। बाबर के सेनानायक मीर बाकी ने 16वीं सदी में यहां मस्जिद का निर्माण करवाया था और 1992 में हिंदुओं ने इसे गैरकानूनी रूप से गिराकर मंदिर में बदल दिया।
देश के सबसे पुराने धार्मिक विवाद के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के 30 सितंबर 2010 के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 14 अपीलें दायर की गई हैं। हाईकोर्ट ने विवादित 2.77 एकड़ भूमि को सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला विराजमान के बीच समान रूप से विभाजित करने का आदेश दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने मई 2011 में हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाने के साथ ही अयोध्या में विवादित स्थल पर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया था।
सुप्रीमकोर्ट ने गठित की कमेटी
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में पूर्व जज जस्टिस एफएम कलीफुल्ला की अध्यक्षता में तीन सदस्यों की समिति गठित की थी। कमेटी से आपसी समझौते से सर्वमान्य हल निकालने की कोशिश करने की बात कही गयी थी। समिति में आध्यात्मिक गुरु श्रीश्री रविशंकर और वरिष्ठ वकील श्रीराम पांचू शामिल थे। इसके बाद समिति ने बंद कमरे में संबंधित पक्षों से बात की, लेकिन हिंदू पक्षकार गोपाल सिंह विशारद ने सुप्रीम कोर्ट के सामने निराशा व्यक्त करते हुए लगातार सुनवाई की गुहार लगाई। 155 दिन के विचार विमर्श के बाद मध्यस्थता समिति ने रिपोर्ट पेश की और कहा कि वह सहमति बनाने में सफल नहीं रही है। तब सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में गठित मध्यस्थता कमेटी भंग करते हुए 6 अगस्त से मामले की रोज सुनवाई शुरू कर दी और तब से सप्ताह के तीन दिन-मंगलवार बुधवार और गुरुवार को सुनवाई होती रही है।
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निर्मोही अखाड़े का दावा
निर्मोही अखाड़ा के महंत दिनेंद्र दास का दावा है कि यहां 1850 से हिन्दू पूजा पाठ कर रहे हैं। ब्रिटिश काल में भी पूजा होती थी। मुगलकाल में मंदिर को तोडक़र मस्जिद का निर्माण कराया गया। मुस्लिम कानून के तहत विवादित स्थल पर मस्जिद निर्माण कराना गलत है। संपूर्ण परिसर अखाड़े को मिलना चाहिए। हम मंदिर निर्माण के लिए पूरी तरीके से तैयार हैं। उक्त स्थल पर पूजा हो रही थी, वर्तमान में हो रही है और भविष्य में भी होती रहेगी। इसे कोई रोक नहीं सकता। भगवान श्री रामलला विराजमान के पैरोकारों का दावा है कि हम भगवान राम के असली उत्तराधिकारी हैं जिस कारण यह संपूर्ण विवादित भूमि हमें प्रदान की जाए। हम यहां भव्य राम मंदिर का निर्माण करेंगे।
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विश्व हिंदू परिषद के मीडिया प्रभारी शरद शर्मा का मानना है कि मंदिर निर्माण के लिए पत्थर तराशने का काम अधिकांश पूरा हो गया है। न्यायालय के निर्णय आते ही पत्थरों की खेप वहां पहुंचा कर निर्माण कार्य शुरू कराया जाएगा। केवल न्यायालय के निर्णय का इंतजार है। देश के सबसे बड़े विवादित मामले मे यूपी में कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में श्री रामजन्मभूमि परिसर का ताला खुला, मुलायम सरकार में मंदिर निर्माण के लिए गए कारसेवकों को रोकने के लिए गोली चली, कल्याण सरकार के दौरान बाबरी ढांचे का विध्वंस किया गया और फिर मायावती की सरकार में 60 साल पुराने इस विवाद का हाईकोर्ट से फैसला आया। इस बार जब प्रदेश में भगवा सरकार है तो सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने जा रहा है।
अयोध्या से नाथ बख्श सिंह