योग दिवस पर अनोखी कलाकृति, आर्टिस्ट ने रेत पर दिया ये संदेश
रूपेश कहते हैं कि वह वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाकर देश का नाम रोशन करना चाहते हैं, लेकिन भूखे रहकर वह कैसे अपना जुनून पूरा कर पाएंगे, उनके सम्मुख यह यक्ष प्रश्न है ।
बलिया । छठवां विश्व योगा दिवस बलिया जिले के एक सैंड आर्टिस्ट ने अनोखे अंदाज में मनाया। विश्व कीर्तिमान स्थापित करने का जज्बा पाले आर्टिस्ट रूपेश सिंह ने योगा दिवस पर रेत पर उकेरकर अनोखी कलाकृति बनाया तथा इसके जरिये योगा के महत्व को रेखांकित किया ।बलिया जिले के राजा का गांव खरौनी के रहने वाले रूपेश सिंह ने आज छठवां विश्व योगा दिवस अनूठे अंदाज में मनाया ।
इच्छा को साकार नही कर सके
रूपेश ने बांसडीह तहसील क्षेत्र के अपने गांव खरौनी में आज योगा दिवस पर अनोखी कलाकृति को बालू से उकेर कर तैयार किया । उन्होंने कहा कि वह पितृ दिवस व विश्व संगीत दिवस पर भी कलाकृति तैयार करना चाहते थे, लेकिन पिछले 48 घण्टे में उनको बांसडीह पुलिस ने ऐसा दर्द दे दिया कि समय की कमी के कारण वह अपनी इच्छा को साकार नही कर सके ।
विश्व रिकॉर्ड बनाने की इच्छा
सैंड आर्टिस्ट रूपेश में अंदर का कलाकार जुनून की तरह भरा पड़ा है । उनकी इच्छा विश्व रिकार्ड बनाने की है । इसके लिए उन्होंने अजीब निर्णय कर लिया है । उन्होंने तय किया है कि जब तक वह अपने नाम वर्ल्ड रिकॉर्ड नही कर लेते तब तक वह अपनी दाढ़ी नही बनायेंगे । दाढ़ी को लेकर उन्हें आये दिन परिजनों के साथ ही पड़ोसियों व सम्पर्क में रहने वालों की झिड़की सुनने को मिलती है ।
लोग उन पर फब्तियां भी कसते हैं । परिवार के लोग फिक्रमंद हैं कि दाढ़ी में रुपेश बाबा की मानिंद हो गए हैं तो फिर उसकी शादी कैसे होगी । हालांकि रूपेश इन फब्तियों के बावजूद अपने जुनून को पूरा करने के प्रति समर्पित हैं । उन्होंने कल विश्व रक्तदान दिवस पर रक्तदान को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहित करते हुए एक अनुपम कलाकृति समर्पित किया था ।
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किसी का साथ नहीं मिला
रूपेश का जीवन संघर्ष से भरा पड़ा है । बचपन से ही चित्र बनाना रूपेश के जीवनचर्या का हिस्सा रहा है । वह बचपन से ही गांव में धार्मिक व सामाजिक आयोजन में मूर्ति आदि बना लेते थे , इसके लिये उनके परिजनों ने उनकी पिटाई भी की थी । रूपेश को सैंड आर्ट्स के अपने काम को पूरा करने के लिये स्वयं कोई न कोई काम करना पड़ता है ।
वह बताते हैं कि तकरीबन छह साल पहले गांव में एक स्थान पर बालू गिरा था । उसके जरिये उन्होंने पहली बार बालू से नारी शोषण पर आकृति उकेरा । इसके बाद वह बनारस में आयोजित एक प्रतियोगिता में शिरकत किये । उनके जेब में तब पैसा नही था । किसी ने सहयोग भी नही किया । बनारस की प्रतियोगिता में भाग लेने के लिये उन्होंने काफी परेशानी झेली । वह बताते हैं कि रविदास घाट पर उन्होंने पतंग की तीलियों को बटोरा । सेब की टोकरी का फट्टा निकाला ।
पिता का स्वास्थ्य हमेशा खराब रहता है
पड़ोस के घर से कूड़ा से सामग्री लिया और फिर चारा घोटाले को लेकर चित्र बनाया । इस प्रतियोगिता में बड़े घरों से लोग कार से शिरकत करने आये थे, इससे वह हतोत्साहित तो हुए लेकिन प्रतियोगिता में जब उनको अव्वल घोषित किया गया तो उनको काफी बल मिला । वह इसके बाद पीछे मुड़कर नही देखे । काशी विद्यापीठ में मास्टर ऑफ फाइन आर्ट्स के द्वितीय सेमेस्टर का छात्र रूपेश अपने किसान पिता त्रिभुवन सिंह के तीन पुत्र व एक पुत्री में सबसे छोटे हैं । रूपेश बताते हैं कि उनकी सबसे बड़ी बहन व बड़े भाई का उनके परिवार से कोई जुड़ाव नही है ।
वह बताते हैं कि मारुति फैक्ट्री में ड्राइवर का काम करने वाले मझले भाई राकेश सिंह ही परिवार के खेवनहार हैं । राकेश ही दस सदस्यों वाले इस परिवार का भरण पोषण चला रहे हैं । रुपेश पिता की स्थिति बताते बिलख पड़ते हैं । रुंधे गले से वह कहते हैं कि पिता का स्वास्थ्य हमेशा खराब रहता है । वह गाय, भैस व खेत बेंचकर पिता का इलाज करा रहे हैं । वह कहते हैं कि आज मझले भाई सहयोग कर रहे हैं तो परिवार का काम चल जा रहा है, लेकिन बड़े भाई की तरह मझले भाई ने किनारा कंस लिया तो फिर क्या होगा ।
वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाकर देश का नाम रोशन करेंगे
वह कहते हैं कि जब मैं कोई आकृति बनाता हूँ तो प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर उनको वाहवाही मिलती है तो उन्हें अपार खुशी होती है , लेकिन उनको इस बात का अपार कष्ट है कि किसी ने भी आज तक उनकी पीड़ा को नही समझा । वह कैसे सामग्री जुटा कर आकृति बना रहे हैं, इसे जानने की किसी ने कोई कोशिश नही की । अब तक न तो शासन व प्रशासन की तरफ से कोई सहयोग मिला और न ही सामाजिक संगठनों या आम जन ने ही सहयोग किया ।
रूपेश कहते हैं कि वह वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाकर देश का नाम रोशन करना चाहते हैं, लेकिन भूखे रहकर वह कैसे अपना जुनून पूरा कर पाएंगे, उनके सम्मुख यह यक्ष प्रश्न है । वह कहते हैं कि यही हालत रही तो किसी दिन वह बीमार होकर मर जायेंगे ।
रिपोर्टर-अनूप कुमार हेमकर, बलिया
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