क्या बाढ़ पीड़ितों की जान लेने पर आमदा है जिला प्रशासन? तस्वीरें तो यही कह रहीं
बाढ़ से तो यह किसी तरह अपनी जान बचा ले रहे हैं। मगर अब जो जिला प्रशासन इनके साथ कर रहा है उससे इनकी जान कैसे बचेगी यह बड़ा सवाल है।
बाराबंकी: एक तरफ कोरोना की महामारी से मरने वालों का आँकड़ा बढ़ता जा रहा है और जिले में हर रोज कई दर्जन नए मरीज सामने आ रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ बाढ़ पीड़ित जो बाढ़ से अपनी जान बचाने का प्रयास कर रहे हैं। उन्हें जिला प्रशासन कोरोना की आग में झोंक रहा है। यह बात हम नहीं कह रहे बल्कि यह तस्वीरें खुद बयान कर रहीं हैं।
बाढ़ से बचावं लेकिन कोरोना के जा रहे मुंह में
बाराबंकी जिले की तीन तहसील रामसनेहीघाट, सिरौलीगौसपुर और रामनगर के कई दर्जन गांव बाढ़ की चपेट में आ चुके हैं। यहां के ग्रामीण अपनी जान बचाने के लिए बंन्धे या सुरक्षित स्थानों की ओर पलायन भी कर चुके हैं। सरकार ने बाढ़ राहत किट के नाम पर इन्हें राशन और जरूरी चीज उपलब्ध तो करा दी है।
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मगर इनके पास इनकी जान के अलावा और भी कुछ है जैसे इनके पालतू जानवर। अपनी जान के साथ अपने जानवरों की जान बचाने का संघर्ष यह बाढ़ पीड़ित कर रहे हैं। बाढ़ से तो यह किसी तरह अपनी जान बचा ले रहे हैं। मगर अब जो जिला प्रशासन इनके साथ कर रहा है उससे इनकी जान कैसे बचेगी यह बड़ा सवाल है।
मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग की उड़ रही धज्जियां
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आज जो तस्वीरें सामने आईं वह बेहद डरावनी हैं। क्योंकि कोरोना की महामारी से लगातार देश और प्रदेश में मौत का आंकड़ा बढ़ता जा रहा है। और इससे बचाव का सबसे कारगर उपाय मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग है। मगर यही कारगर उपाय यहां प्रशासन की मौजूदगी में मुँह चिढ़ाने का काम कर रहा है। आज जब यहां विद्युत व्यवस्था बाधित होने के बाद एकमात्र सहारा केरोसिन का वितरण शुरू हुआ तो यहां सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियाँ उड़ती दिखाई दीं।
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यहां मौजूद स्थानीय लेखपाल और पुलिस ने किसी को यह समझाना जरूरी नहीं समझा कि सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करें और मास्क लगा कर रखें। अब ऐसे में कोरोना से अगर कोई संक्रमित हो जाये तो बड़ी बात नही होगी और इस बीमारी से अगर किसी की जान चली जाए तो इसका उत्तरदायित्व किसका होगा, यह एक प्रश्न है।
रिपोर्ट- सरफराज़ वारसी