Bhadohi News: उत्साह के रंग, पवित्रता की मुस्कुराहट, सीतामढ़ी के ऐतिहासिक नवमी मेले में उमड़ा जनसैलाब

Bhadohi News: महर्षि वाल्मीकि की तपोस्थली, जगत जननी मां सीता समाहित स्थली व लव-कुश की जन्मस्थली सीतामढ़ी में लवकुश जन्मोत्सव के अवसर पर चल रहे नौ दिवसीय रामायण मेले का मंगलवार को विशाल मेले के साथ समापन हो जाएगा। बीती 19 जून को अखिल भारतीय राष्ट्रीय रामायण मेले का आगाज भव्य गंगा पूजन के साथ हुआ था।

Update:2023-06-27 18:49 IST

Bhadohi News: महर्षि वाल्मीकि की तपोस्थली, जगत जननी मां सीता समाहित स्थली व लव-कुश की जन्मस्थली सीतामढ़ी में लवकुश जन्मोत्सव के अवसर पर चल रहे नौ दिवसीय रामायण मेले का मंगलवार को विशाल मेले के साथ समापन हो जाएगा। बीती 19 जून को अखिल भारतीय राष्ट्रीय रामायण मेले का आगाज भव्य गंगा पूजन के साथ हुआ था। मंगलवार को अंतिम दिन भव्य व ऐतिहासिक मेले के दिन श्रद्धालुओं का जनसैलाब उमड़ पड़ा। हजारों लोगों ने यहां मंदिर में दर्शन-पूजन, गंगास्नान के बाद मेले में घूमकर आनंद उठाया।

सजीं तरह-तरह की दुकानें, महिलाएं-बच्चे सभी के लिए सबकुछ

सीतामढ़ी के भव्य मेले में दूरदराज से आए दुकानदारों ने अपनी दुकानें सजा रखी हैं। खिलौनों व महिलाओं के सौंदर्य प्रसाधन की वस्तु वाली दुकानों की मेले में अधिकता है। लोगों के मनोरंजन के लिए मेला क्षेत्र में सर्कस, झूले भी बड़ी मात्रा में लगे हैं। चाट, छोला, जलेबी, कुल्फी, मिठाई, पके आम सहित मनोहारी वस्तुओं की दुकानों की मेले में बहुलता दिखी। परंपरा के अनुसार नवमी तिथि 27 जून को वृहद मेले का आयोजन हुआ जिसमें भारी संख्या मे श्रद्धालुओं का आगाज हुआ। सुरक्षा की दृष्टि को देखते हुए पुलिस चप्पे-चप्पे पर मौजूद रही और सीतामढ़ी चौकी इंचार्ज के द्वारा गंगा स्नान करने के लिए आए हुए श्रद्धालुओं को दिक्कत ना हो, इसके लिए गंगा में बैरिकेडिंग की व्यवस्था कराई गई थी।

आज भी मौजूद हैं पौराणिक वट वृक्ष

बता दें कि महर्षि वाल्मीकि स्थली में सदियों से पौराणिक वट वृक्ष यहां के धार्मिक महत्व के गवाह के रूप में आज भी मौजूद है। महर्षि वाल्मीकि की तपोस्थली व लवकुश कुमारों की जन्मस्थली सीतामढ़ी के कण-कण में प्रभु श्री राम की लीला साक्षात गवाही के साक्ष्य मिलते हैं। यही वह पावन धरती है कि जहां जगत जननी माता सीता का पावन रज पड़ा था।

मां सीता समाहित स्थल है सीतामढ़ी, विश्व में है पहचान

वेद ग्रंथों व मान्यता के अनुसार माता सीता यहीं पर मां धरती की गोद में समाहित हुईं थीं। सीतामढ़ी की पावन धरती पवित्र गंगा तट के किनारे पर स्थित है। यहां पर स्थित गंगा तट पर वट वृक्ष की आयु का अब तक कोई अंदाजा नहीं लगाया जा सका है। जो माता-सीता के यादों को वर्षों से समेटे हुए हैं। शास्त्री हनुमान जी महाराज ने बताया कि कवितावली में स्पष्ट वर्णन है गोस्वामी तुलसीदास जी ने कवितावली के 138 कविताओं में सीता समाहित स्थली का वर्णन करते हुए सीतामढ़ी का उल्लेख किया गया है।

इसमें एक अंश ‘विटप महीप सुर सरित समीप, सोहेल सीता वटु पेखत पुनित होत पातकी’ इसका अर्थ जहां की छाया का स्पर्श होते ही शरीर का ताप शांत हो जाता है, वह वृक्षराज सीता वट गंगा के तट पर शोभायमान है। इसके दर्शन मात्र से सारे पापों का नाश हो जाता है।

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