BSP में मचे उथल-पुथल से घबराई मायावती, पदाधिकारियों को दे रहीं सफाई

स्वामी प्रसाद मौर्या, बृजेश पाठक के बहुजन समाजवादी पार्टी (बसपा) छोड़ने और नसीमुद्दीन सिद्दीकी के पार्टी से निष्कासन के बाद भी बसपा के अंदरखाने में उठा तूफान शांत नहीं हुआ है। उधर पार्टी कैडर के नेताओं में शुमार पूर्व मंत्री इंद्रजीत सरोज के निष्कासन और विधानसभा स्तर पर 15 लाख वसूली के आरोप पर पार्टी सुप्रीमों मायावती की तरफ से कोई बयान नहीं आया है।

Update:2017-08-10 14:31 IST

लखनऊ : स्वामी प्रसाद मौर्या, बृजेश पाठक के बहुजन समाजवादी पार्टी (बसपा) छोड़ने और नसीमुद्दीन सिद्दीकी के पार्टी से निष्कासन के बाद भी बसपा के अंदरखाने में उठा तूफान शांत नहीं हुआ है। उधर, पार्टी कैडर के नेताओं में शुमार पूर्व मंत्री इंद्रजीत सरोज के निष्कासन और विधानसभा स्तर पर 15 लाख वसूली के आरोप पर पार्टी सुप्रीमो मायावती की तरफ से कोई बयान नहीं आया है।

पूर्व मंत्री जयवीर सिंह पहले ही एमएलसी पद से इस्तीफा देकर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) में शामिल हो चुके हैं। इन सब वाकयों ने मायावती को अंदर से हिला दिया है। इसी सिलसिले में वह गुरुवार को पार्टी पदाधिकारियों की बैठक बुलाकर सफाई पेश कर रही हैं।

बैठक में इन्हें बुलावा

बैठक में जोन इंचार्ज, मंडल प्रभारी, जिला प्रभारी, जिला अध्यक्ष, विधानसभा क्षेत्र अध्यक्ष, लोकसभा क्षेत्र अध्यक्ष, विधायक और एमएलसी बुलाए गए। बैठक में मायावती सपा की देश बचाओ, देश बनाओं रैली की तर्ज पर प्रस्तावित कार्यकर्ता सम्मेलन के आयोजन के संबंध में दिशा निर्देश जारी कर सकती हैं। इसमें वह नेताओं के पार्टी छोड़ने के फैसले पर अपनी सफाई भी पेश करेंगी।

जनता के बीच हुई फजीहत

ऐन मौके पर विधानसभा चुनावों के पहले जब स्वामी प्रसाद मौर्या ने बसपा को अलविदा कहा तब उन्होंने मायावती पर पैसा वसूले जाने का आरोप लगाया था। उन्होंने कहा था कि वह दलित की नहीं बल्कि दौलत की बेटी है। उसी वक्त से लगातार पार्टी छोड़ रहे नेता पार्टी सुप्रीमों पर पैसा वसूलने का आरोप लगा रहे हैं। इन आरोपों ने पार्टी की जनता के बीच भद्द पिटायी है।

मायावती के लिए बड़ी चुनौती

साथ ही अंदरखाने वरिष्ठ नेताओं का भी पार्टी से मोहभंग होना शुरू हो गया है। मायावती यह भांप चुकी हैं कि समय रहते अगर इस डैमेज को कंट्रोल नहीं किया गया तो आगामी चुनाव में पार्टी को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। मौजूदा समय में पार्टी पदाधिकारियों में विश्वास जगाना मायावती के लिए सबसे बड़ी चुनौती है।

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