लखनऊ : राज्य सरकार की ओर से नियुक्त 201 नये सरकारी वकीलों में से एक दर्जन से अधिक को शासकीय अधिवक्ता अधिष्ठान ने ज्वाइन कराने से मना कर दिया है। इन वकीलेां का नाम हाईकोर्ट की लखनउ बेंच में एडवेाकेट आन रोल में दर्ज नही पाया गया। हाईकेार्ट में वकालत करने का प्रथत दृष्टया सबूत होता है, कि उसका नाम एओआर सूची में दर्ज हो।
इन नवनियुक्त सरकारी वकीलो में गिरीश तिवारी, प्रवीण कुमार शुक्ला, शशि भूषण मिश्र सहित दिवाकर सिंह, वीरेंद्र तिवारी एवं दिलीप पाठक शामिल हैं। मुख्य स्थायी अधिवक्ता रमेश पांडे ने कहा कि महाधिवक्ता राघवेंद्र सिंह के आदेश से सरकारी वकीलों को फिलहाल ज्वाइनिंग कराने से रोक दिया गया है।
चर्चा है, कि बिना एओआर वाले वकीलों की संख्य 49 है। इस बीच सूची में पांच सरकारी वकीलों के नाम दो जगह पाये गये है। इनमें अनिल कुमार चौबे, प्रत्युश त्रिपाठी, सेामेश सिंह सहित राजाराम पांडेय व श्याम बहादुर सिंह शामिल हैं। वहीं सूची के पेज नंबर तीन पर ब्रीफ होल्डर सिविल की श्रेणी में पांच सरकारी वकीलों के नाम गायब पाये गये हैं।
इस पर आरएसएस के पुराने स्वयंसेवक एडवेाकेट रामउग्रह शुक्ला ने कहा कि तीन महीने की लंबी कवायद के बाद सूची आयी है। तमाम प्रमुख कार्यकर्ता वकीलों के नाम सूची में स्थान नही पा सके, परंतु सूची को देखने से साफ प्रतीत हो रहा है कि इसके साथ छेड़छाड़ की गयी है। ऐसे में सूची कानूनी रूप से टिकी नही रह सकती है। यह भी कहा कि सूची बनाने में सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों का भी पालन नही किया गया और तमाम नान प्रैक्टिसिंग एडवोकेट्स को सरकारी वकील बना दिया गया है।
सरकार ने गत 7 जुलाई को 201 सरकारी वकीलों की सूची जारी की थी और पहले से कार्यरत करीब 350 सरकारी वकीलों को हटा दिया गया था। पंरतु योगी सरकार ने सपा सरकार के दौरान कार्यरत रहे पचास से अधिक सरकारी वकीलों को फिर से नयी सूची में जगह दे दी।
सूत्रों के मुताबिक तमाम ऐसे लोगों को सरकारी वकील बना दिया गया जो हाई कोर्ट में वकालत नही करते थे और न ही यहां के काम काज के तरीके से अवगत थे।
संघ व बीजेपी विचारधारा के वकीलों की भी जमकर अनदेखी की गयी जिस पर संघ व संगठन में नाराजगी है। कहा जा रहा है, कि सूची का रिव्यू किया जाना तय हो गया है। मामला मुख्यमंत्री के संज्ञान में आने के बाद काफी गंभीर हो गया है।