संविधान दिवस: संविधान को गीता की तरह करें आत्मसात

भारतीय संविधान के गुणों पर प्रकाश डालते हुए उन्हेानें कहा कि हमारा संविधान विश्व का सबसे बड़ा संविधान है और हमें सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक न्याय तो दिलाता तो है ही साथ ही साथ देशवासियेां में स्वतंत्र , समानता और बंधुत्व की भावना भी कूट कूर भरता है।

Update:2019-11-26 23:18 IST

विधि संवाददाता

लखनऊ: इलाहाबाद हाई केार्ट के चीफ जस्टिस गोविंद माथुर ने मंगलवार केा संविधान दिवस के अवसर पर आयेाजित एक कार्यक्रम में कहा कि जजेां एंव वकीलेां केा संविधान को गीता के समान मानना चाहिए तथा अपने दिनचर्या में उसे आत्मसात करना चाहिए। भारतीय संविधान के गुणों पर प्रकाश डालते हुए उन्हेानें कहा कि हमारा संविधान विश्व का सबसे बड़ा संविधान है और हमें सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक न्याय तो दिलाता तो है ही साथ ही साथ देशवासियेां में स्वतंत्र , समानता और बंधुत्व की भावना भी कूट कूर भरता है।

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चीफ जस्टिस हाई कोर्ट में संविधान दिवस पर आयेाजित कार्यक्रम में बतौर मुख्य वक्ता बोल रहे थे। भारत का एक राष्ट्र के रूप में विकास एवं हमारे संविधानिक मूल्य विषय पर बोलते हुए चीफ जस्टिस ने कहा कि हमार संविधान कितना सशक्त है यह इसी बात से जाना जा सकता है कि हमारे पड़ोंसी मुल्क मे हमारा संविधान बनने के कुछ ही घंटो के अर्तपर्त उसका भी संविधान बना किन्तु आज दुनिया वाकिफ है कि पड़ोसी पाकिस्तान एक विफल राष्ट्र की संज्ञा पाता है जबकि हमारा राष्ट्र विश्व के सबसे बड़े प्रजातांत्रिक देश के रूप से अपनी पहचना बना चुका है।

इस अवसर पर उन्हांेने संविधान निर्माता डा भीम राव अंबेडकर सहित अन्य लोगों को याद किया और कहा कि हमारे संविधान की देा खास बातें है कि हमस ब विभिन्नताअेंा को आत्मसात कर लेते है और हममें सहुष्णता की पराकाष्ठा है। चीफ जस्टिस ने कहा कि हमारे संविधान में सोसलिज्म की परिकल्पना चीन व रूस के सोसलिज्म से भिन्न है। उन्हेेांने कहा कि आज संप्रभु राष्ट्र पर सैनिक हमला हेाना मुश्किल है किन्तु सामाजिक , सांस्कृतिक व आर्थिक हमले होते हैं जिससे बचने के लिए हमारे संविधान में बहुत शक्तियां है।

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चीफ जस्टिस ने कहा कि संविधान केा 26 नवंबर 1949 को अंगीकार किया गया था उसके बाद कई सर्जिकल स्ट्राइक्स करके गोवा, पांडिचेरी सहित कई क्षेत्रों का अपने में मिलाया गया। उन्हेानें समाज एवं महिलाओं की सोंच में आये तमाम बदलाओं का श्रेय संविधान में प्रदत्त व्यवस्थाओं केा दिया। चीफ जस्टिस ने संविधान में दिये गये मौलिक अधिकारेां पर चर्चा करते हुए कहा कि हमें अनुच्छेद 51 ए में दिये गये मौलिक कर्तव्येां पर भी ध्यान देना चाहिए।

कार्यक्रम में शिरकत करते हुए लखनऊ पीठ के सीनियर जज जस्टिस पंकज कुमार जायसवाल ने कहा कि हमारा संविधान करीब 9 हजार शब्देां का लिखा है और यह हमारे संविधान निर्माताअेां की कड़ी मेहनत का फल है।

कार्यक्रम का संचालन जस्टिस डी के उपाध्याय ने किया । उन्होंने कहा कि देश के नागरिक यदि अपने दायित्वों का ठीक से निर्वहन करें तो संविधान की सच्चे अर्थेा में पूर्ति हो जायेगी।

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कार्य क्रम में लखनऊ खंडपीठ के न्यायाधीशों के साथ महाधिवक्ता राघवेंद्र सिंह , शासकीय अधिवक्ता विमल श्रीवास्तव, मुख्य स्थायी अधिवक्ता जे के सिन्हा , शैलंेद्र कुमार सिंह , रजिस्ट्री के अधिकारीगण , न्यायिक अफसर व कई ट्रेनी जजेज शामिल हुए। कार्यक्रम के दौरान जस्टिस ए आर मसूदी ने चीफ जस्टिस केा एवं जस्टिस संगीता चंद्रा ने सीनियर जज केा पुष्प गुच्छ देकर सम्मानित किया।

इस अवसर पर मशहूर दस्तरगोई हिमांशु बाजपेयी ने गांधी जी एवं उनके डर विषय पर कहानी सुनायी । उसके बाद चीफ जस्टिस ने मेमेंटेां देकर उनका स्वागत किया।

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स्पीड ब्रेकरों की दशा सुधारने के सम्बंध में कार्यवाही पर रिपेार्ट तलब

विधि संवाददाता

लखनऊ: स्पीड ब्रेकरों की दशा सुधारने व उन्हें इंगित करने वाले साइनबोर्ड लगाने के सम्बंध में राज्य सरकार द्वारा दो वर्ष पूर्व दिये आश्वासन पर, दो सप्ताह में हलफनामा दाखिल करने का आदेश दिया है। सरकार की ओर से आश्वासन दिया गया था कि वह इस दिशा में कदम उठा रही है। यह आदेश जस्टिस पंकज कुमार जायसवाल और जस्टिस आलोक माथुर की बेंच ने अब्दुल्लाह रमजी खान की ओर से दाखिल एक जनहित याचिका पर दिया।

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याचिका में लखनऊ शहर के सभी स्पीड ब्रेकरों की मार्किंग, स्कूल, कॉलेजों, अस्पतालों और दुर्घटना बाहुल्य इलाकों में मार्क्ड और विजिबल स्पीड ब्रेकर बनवाए जाने का आदेश सरकार को देने की मांग की गई है। पिछली सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर कहा गया था कि सरकार मात्र लखनऊ शहर में ही नहीं बल्कि पूरे राज्य में स्पीड ब्रेकरों के स्पष्ट दिखाई देने और इन्हें इंगित करने के लिए साइनबोर्ड लगाया जाना सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाएगी।

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