देवबंदी उलेमा ने कहा- औरत की जिम्मेदारी घर चलाना, मजबूरी में निकल सकती है नौकरी करने

मुफ्ती आरिफ ने कहा कि मर्द की जिम्मेदारी घर से बाहर निकल कर कमाना और औरत की जिम्मेदारी घर चलाना है। लेकिन कहा कि इस्लाम ने औरतों को मजबूर नहीं बनाया है। परिस्थितियां हो तो औरतें पर्दे में रहकर नौकरी कर जिम्मेदारियों का निर्वहन भी कर सकती हैं।

Update:2017-04-04 02:03 IST

सहारनपुर: तीन तलाक पर छिड़ी बहस के बीच गुजरात के मौलाना सलाउद्दीन सैफी के बयान ने एक और बहस छेड़ दी है। सैफी ने कहा है कि मर्द के होते औरत का नौकरी करना गलत है। हालांकि उलेमा ए देवबंद ने मौलाना सलाउद्दीन की बात को पूरी तरह से सही बताया है, लेकिन उनका यह भी कहना है कि बेहद मजबूरी हो तो औरत पर्दे में रहकर नौकरी भी कर सकती है।

गुजराती मौलाना का समर्थन

दारुल उलूम वक्फ के वरिष्ठ उस्ताद मुफ्ती आरिफ कासमी ने कहा कि अल्लाह तआला ने मर्द और औरत को पैदा करने के बाद दोनों की जिम्मेदारियां अलग अलग निर्धारित की हैं। मर्द की जिम्मेदारी घर से बाहर निकल कर कमाना और औरत की जिम्मेदारी घर चलाना है।

उन्होंने यूरोप व अमेरिका पर तंज कसते हुए कहा कि वहां पर नाजायज ख्वाहिशात को पूरा करने के लिए औरत को घर से बाहर निकाला गया और आजादी के नाम पर उसे प्राइवेट सक्रेटरी व एयर हॉस्टेस जैसे कामों पर लगा दिया गया।

मुफ्ती आरिफ ने सोवियत यूनियन के पूर्व राष्ट्रपति गोर्बाचेफ की किताब का हवाला देते हुए कहा कि उन्होंने अपनी किताब में लिखा है कि अगर हम घरेलू सिस्टम सही रखना चाहते हैं तो हमें औरतों को वापस घर के भीतर लाना होगा।

मजबूरी में निकले बाहर

हालांकि उन्होंने स्पष्ट किया कि इस्लाम ने औरतों को मजबूर नहीं बनाया है। यदि विकट परिस्थितियां हो तो औरतें पर्दे में रहकर नौकरी कर अपने ऊपर पड़ी जिम्मेदारियों का निर्वहन भी कर सकती हैं।

अल कुरआन फाउंडेशन के अध्यक्ष एवं अरबी विद्वान मौलाना नदीमुल वाजदी ने कहा कि इस्लाम में कमा कर घर चलाने की जिम्मेदारी मर्द की है। उन्होंने कहा कि आजादी के नाम पर औरतों से नौकरी कराना औरतों से दोहरी गुलामी कराने के बराबर है।

मौलाना वाजदी ने कहा कि बच्चों की परवरिश मां ही बेहतर कर सकती है। इसलिए औरत का घर के अंदर रहना जरूरी है। जबकि इस्लाम ने मर्दों को बाहर निकलकर अपने परिवार के भरण पोषण करने के जिम्मेदारी सौंपी है।

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