इलाहाबाद HC की टिप्पणी पर उलेमा का जवाब- तीन तलाक महिलाओं के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन

देवबंदी उलेमा ने कहा हिन्दुस्तान के संविधान में सभी धर्मों के लोगों को धार्मिक आजादी प्राप्त है। जिससे वे धार्मिक परंपराओं का निर्वहन स्वतंत्रता से कर सके।

Update: 2017-05-10 07:24 GMT

सहारनपुर: तीन तलाक और फतवे पर इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा मंगलवार को की गई टिप्पणी पर आज बुधवार (10 मई) को देवबंदी उलेमा ने कहा कि हिन्दुस्तान के संविधान में सभी धर्मों के लोगों को धार्मिक आजादी प्राप्त है। जिसके चलते वे अपने सभी धार्मिक क्रियाकलाप और परंपराओं का निर्वहन स्वतंत्रता के साथ कर सकते हैं। तीन तलाक पर उलेमा ने कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड समाज को जागरूक करने की लगातार कोशिश कर रहा है।

संविधान के दायरें में रहकर ही कार्य होता है

दारुल उलूम जकरिया के वरिष्ठ उस्ताद और फतवा ऑन मोबाइल सर्विस के चेयरमैन मुफ्ती अरशद फारुकी ने कहा कि इस्लाम धर्म में औरतों को सबसे अधिक अधिकार दिए गए हैं। तलाक एक हो या अधिक इस्लाम मजहब में सभी को गलत माना गया है। कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ कभी संविधान के दायरें से हटा ही नहीं बल्कि संविधान के दायरें में रहकर ही कार्य करता है।

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उन्होंने कहा कि हिंदुस्तान ही नहीं बल्कि अंतर्राष्टीय स्तर पर भी महिलाओं के बुनियादी अधिकार निश्चित नहीं किए जा सके हैं जबकि इस्लाम मजहब ने चौदह सौ साल पहले ही महिलाओं को उनके अधिकारों से अवगत करा दिया था।

फतवा का मतलब बताया

दारुल उलूम के मोहतमिम व वरिष्ठ मुफ्ती आरिफ कासमी ने कहा कि फतवा एक शरई राय है। जो शरियत की रोशनी में दिया जाता है। फतवा देने वाले किसी मुफ्ती को यह अधिकार नहीं है, कि वह फतवे को जबरन लागू करा सके।

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शरीयत की रोशनी में इस्लामी राय बताई जाती है

मुस्लिम पर्सनल लॉ संविधान से ऊपर नहीं बल्कि संविधान के दायरें में रहकर कार्य करता है। फतवा कभी भी संवैधानिक निर्णयों से टकराव नहीं करता बल्कि फतवे के माध्यम से शरीयत की रोशनी में इस्लामी राय बताई जाती है। जिसे मानने या न मानने का अधिकार फतवा लेने वाले व्यक्ति के विवेक पर निर्भर करता है।

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