Dhananjay Singh News: अब धनंजय सिंह नहीं लड़ पाएंगे चुनाव! जानिए क्या हैं कारण?
Dhananjay Singh News: नमामि गंगे योजना के तहत जौनपुर में काम कर रहे प्रोजेक्ट मैनेजर अभिनव सिंघल ने 10 मई 2020 को थाना लाइन बाजार में धारा 364, 386, 504 और 120 का मुकदमा धनंजय सिंह सहित संतोष सिंह के खिलाफ दर्ज कराया था।
Dhananjay Singh News: जौनपुर से पूर्व सांसद धनंजय सिंह को जौनपुर अपहरण मामले में कोर्ट ने दोषी ठहराया है। अदालत बुधवार को धनंजय सिंह को सजा सुनाइगी। नमामि गंगे योजना के तहत जौनपुर में काम कर रहे प्रोजेक्ट मैनेजर अभिनव सिंघल ने वर्ष 10 मई 2020 को थाना लाइन बाजार में धारा 364, 386, 504 और 120 का मुकदमा पूर्व सांसद धनंजय सिंह सहित उनके साथी संतोष कुमार सिंह के खिलाफ दर्ज कराया था। मामले में पुलिस द्वारा चार्ज सीट न्यायालय भेजने के बाद मुकदमा शरद चन्द त्रिपाठी एडीजे चतुर्थ एमपी-एमएलए कोर्ट में विचाराधीन था। इधर कुछ दिनों से इस मुकदमे की सुनवाई तेज कर दी गई थी। आज इस मुकदमा में तारीख निर्धारित था। धनंजय सिंह कोर्ट में मौजूद थे।
दूसरे प्रहर अचानक न्यायाधीश ने पूर्व सांसद धनंजय सिंह और उनके साथी संतोष कुमार सिंह को न्यायिक अभिरक्षा में ले लिया और अपने एक आदेश के तहत धनंजय सिंह और संतोष कुमार सिंह को अपराध कारित करने के लिए दोषी पाये जाने का आदेश देते हुए फैसले की तारीख 06 मार्च मुकर्रर कर दिया और दोनों को न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया।
अब यहां यह जानना जरूरी है कि क्या पूर्व सांसद धनंजय पर जिस धारा 364, 386, 504 और 120 में मुकदमा दर्ज कराया गया है। उन धाराओं में सजा का क्या प्रावधान है। इसमें क्या सजा हो सकती है।
धारा-364 में सजा
भारतीय दंड संहिता की धारा-364 में सजा के प्रावधान अनुसार जो कोई भी व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति को जान से मारने या उसकी हत्या करने के इरादे से उसका अपहरण करने का दोषी पाया जाता है तो उसको अदालत के द्वारा दिया जाने वाला दंड इस प्रकार है।
कारावासःधारा 364 के तहत कम से कम सजा दस वर्ष का कारावास है, लेकिन अपराध की गंभीरता को देखते हुए इसे आजीवन कारावास तक भी बढ़ाया जा सकता है।
जुर्माना:धारा 364 के तहत दोषी अपराधी पर कारावास के साथ ही जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
आईपीसी की धारा 386 के तहत क्या है सजा?
अगर अभी बात केवल धमकी देने में हुई है, चोट नहीं पहुंचाया गया है। सिर्फ धमकी है जिससे शरीर को नुक्सान पहुंचाया जायेगा तब इस अपराध के तहत अपराधी को एक अवधि के लिए 10 साल का कारावास और साथ ही साथ जुर्माने की सजा का प्रावधान है। इस अपराध के लिए कोई बेल नहीं मिल सकती है। इसमें बेल की कोई गुंजाइश नहीं होती है। ये एक गैर संज्ञेय अपराध है जिसकी सुनवाई प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट के द्वारा की जाती है। पुलिस बिना किसी वारंट के अपराधी को अरेस्ट कर सकती है।
आईपीसी की धारा 504 में क्या है सजा?
धारा 504 के अधिनियम के तहत ये एक गैर-संज्ञेय श्रेणी का अपराध माना जाता है। इसका मतलब यह है कि जिस मामले में किसी व्यक्ति पर आईपीसी की धारा 504 लगाई जाती है। उसे पुलिस अधिकारी बिना वारंट के गिरफ्तार नहीं कर सकता है और गिरफ्तारी के लिए न्यायालय की अनुमति लेनी होती है। यह एक जमानती अपराध हैं। इसलिए इस केस में आरोपी को जमानत मिलने में किसी तरह की कोई मुश्किल नहीं आती। यह किसी भी श्रेणी के मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय होता है।
504 के तहत किया गया अपराध आपसी समझौता करने योग्य है। यदि शिकायतकर्ता आरोपी के खिलाफ लगाए गए सभी आरोपों को वापस लेने के लिए सहमत हो जाता है तो आरोपी आगे की कार्यवाही व उसके बाद मिलने वाली सजा से बच जाता है।
क्या है आईपीसी की धारा 120?
भारतीय दंड संहिता की धारा 120 की भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 120 में ऐसे अपराध की साजिश को छिपाने के बारे में बताया गया है, जिसके कारित होने पर कारावास की सजा का प्रावधान है। धारा 120 के अनुसार, अगर अपराध को कार्य या अवैध लोप द्वारा स्वेच्छया छिपाएगा या ऐसी परिकल्पना के बारे में ऐसा व्यपदेशन करेगा, जिसका मिथ्या होना वह जानता है। तो इस मामले में उसे धारा 120 की भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 120 के तहत सजा होगी।
सजा का क्या है प्रवधान
वहीं इस धारा के तहत जो सजा का प्रावधान है वो छिपाना यदि अपराध होता है तो अपराध के लिए दीर्घतम अवधि की एक चैथाई अवधि के लिए कारावास या आर्थिक दण्ड या दोनों ही लागू होता है। वहीं इस मामले में जमानत, संज्ञान और अदालती कार्रवाई, किए गये अपराध अनुसार तय होगी। वहीं यदि अपराध नहीं होता तो दीर्घतम अवधि के आठवें भाग के लिए कारावास या आर्थिक दण्ड या दोनों हो सकता है साथ ही इस मामले में जमानत, अदालती कार्रवाई अपराध अनुसार ही तय होगी। वहीं यह अपराध समझौता करने योग्य नहीं है।
दो साल से अधिक सजा पर नहीं लड़ सकता चुनाव
रिप्रेजेंटेंशन ऑफ पीपल्स एक्ट 1951 की धारा 8 (1) और 8 (2) के मुताबिक जहां सजायाफ्ता को चुनाव लड़ने से अयोग्य करार दिए जाने की बात की गई है वहीं 8 (3) में इसे दो साल या इससे ज्यादा सजा होने पर व्यक्ति विशेष को चुनाव लड़ने से अयोग्य करार दिए जाने की बात कही गई है।