डॉक्टर्स डे: कोरोना सकंट में कोई बच्चों से हैं दूर, तो किसी ने टाल दी शादी
इस कोरोना काल में महीनों से अपने परिवार से दूर रह रहे ऐसे ही डॉक्टर कोविड-19 से जूझने वाले मरीजों के बीच दिन काट रहे हैं।
हमीरपुर: कोविड-19 महामारी ने जीने का अंदाज बदल दिया है। घर से बाहर निकलने, घूमने-फिरने और कारोबार में तमाम बंदिशें हैं। आम लोग जितना इस बीमारी को लेकर तनाव के दौर से गुजर रहे हैं, उसी तनाव के दौर से डॉक्टर भी गुजर रहे हैं। लेकिन डॉक्टरों ने मुसीबत की घड़ी में अपने फर्ज को तरजीह दी है। महीनों से अपने परिवार से दूर रह रहे ऐसे ही डॉक्टर कोविड-19 से जूझने वाले मरीजों के बीच दिन काट रहे हैं। किसी की शादी टल चुकी है तो कोई अपने बच्चों को दुलारने को तरस रहा है। महीनों से घर भी नहीं देखा। आज डॉक्टर्स डे पर ऐसे ही कुछ डॉक्टरों की कहानी से रूबरू कराते हैं।
छः माह की बच्ची से दूर पिता, तो ड्यूटी की खातिर टाल दी शादी
छानी सीएचसी फैसिलिटी कक्वारंटाइन में ड्यूटी देने वाले डॉ परमेंद्र बताते हैं कि उनका सीधा सामना कोविड-19 के मरीजों से होता है। पॉजिटिव मरीजों के संपर्क में आने वालों को सीएचसी में क्वारंटाइन किया जाता है। इस बीमारी के बाद से परिवार से तालमेल मिलाने में दिक्कत हो रही है। छह माह की बच्ची के साथ पत्नी डॉ प्रियंका जबलपुर में हैं। वही उनकी पोस्टिंग है। फोन और वीडियो कॉलिंग से ही बच्ची को देख लेते हैं। छानी सीएचसी में तैनात डॉ श्रेया मिश्रा बताती हैं कि कोविड-19 से पूर्व उनकी मां सीएचसी आवास में उनके साथ रहती थी।
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पहले दिन से वह कोविड-19 की ड्यूटी में है। लेकिन उनकी वजह से उनके परिवार में संक्रमण न हो, इसलिए उन्होंने अपनी मां को वापस इलाहाबाद भेज दिया है। पिछले साढ़े तीन माह से सीएचसी में रहते हुए ड्यूटी कर रही हैं। उनकी अप्रैल माह में शादी होने वाली थी। लेकिन कोविड-19 के संक्रमण को देखते हुए और सीएचसी की जिम्मेदारी मिलने की वजह से उन्हें शादी टालनी पड़ी। अभी पूरा फोकस कोविड को हराने पर ही हैं।
घर से दूर मां को सता रही चिंता, बेटी से वीडियो कॉलिंग पर होती बात
जिला अस्पताल के ईएनटी सर्जन डॉ विकास यादव बताते हैं कि कोविड-19 के बाद से पारिवारिक जीवन बहुत बदल गया है। तीन माह में तीन बार घर गए हैं। चार साल की बच्ची आशवी है, जिससे वीडियो कॉलिंग में बातें कर लेते हैं। तीन बार जब-जब घर पहुंचे, तब खुद को परिवार से दूर रखा। अलग कमरे में ठहरे। चाहकर भी बच्ची को नहीं दुलार पाए। उससे दूर से ही बातें करते रहे। डॉ यादव की पत्नी प्रशंसा यादव भी डॉक्टर हैं और कानपुर के प्राइवेट अस्पताल में आईसीयू में है।
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पिता डॉ शत्रुघ्न यादव रिटायर्ड डॉक्टर हैं और मां सुषमा यादव गृहणी है। डॉ यादव बताते हैं कि मां हमेशा फोन करके उन्हें कोविड को लेकर अपनी शंकाओं से रूबरू कराती रहती हैं और बचने की सलाह देती रहती है। मां को हमेशा डर रहता है। लेकिन पिता से बूस्टर मिलता रहता है। कोविड-19 वायरस मुंह-नाक से प्रवेश करके फेफड़ों में जाता है और सीधे श्वसन तंत्र को प्रभावित करता है। जो भी मरीज ओपीडी में आते हैं, वो निगेटिव हैं या पॉजिटिव उन्हें पता नहीं होता है, लेकिन सभी को देखना और परामर्श देना उनका फर्ज है।
बच्चों और परिवार से दूर ड्यूटी कर रहे डॉक्टर्स
जिला महिला अस्पताल के नवजात शिशु एवं बाल रोग विशेषज्ञ डॉ आशुतोष निरंजन कोविड-19 में तैनात स्टाफ की ट्रेनिंग की जिम्मेदारी निभाने के साथ ही ओपीडी में मरीजों को देखते हैं। डॉ निरंजन कहते हैं कि कोविड में बहुत कुछ बदल दिया है। पत्नी अराधना सिंह गृहणी है। दो बच्चे हैं। बड़ा बेटा तपिश 14 साल है। टीवी पर कोरोना की खबरें देखता हैं तो फिर उन्हें बचाव को आगाह करता है। इस कोरोना काल में वो भी बहुत कम घर जा पा रहे हैं।
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जैसे आम लोगों में कोरोना को लेकर डर हैं, ठीक वैसा ही डर उनके परिवार के सदस्यों में भी रहता है। महामारी रोग विशेषज्ञ डॉ.संदीप कुमार कोविड-19 महामारी के बाद से दिन-रात ड्यूटी में लगे हैं। उनकी ड्यूटी प्रशासन के साथ कोविड-19 की प्लानिंग करने और उसका प्रोटोकॉल फालो कराने में है। डॉ.संदीप बताते हैं कि उनका भी घर जाना छूट चुका है। बच्चे छोटे है। परिवार के लोगों को कोरोना का डर है। लेकिन इस समय कोरोना से लड़ने के अलावा दूसरा कोई चारा नहीं है।
रिपोर्ट- रविंद्र सिंह