प्रकृति का अंधाधुंध दोहन बना खतरा, यूपी में इन अहम मुद्दों पर हुई ख़ास चर्चा

मनुष्य द्वारा प्रकृति का अंधाधुंध दोहन करने के कारण ही आज जैविक विविधता का चक्र असंतुलित हो गया है। जिसकी वजह से बहुत सी बीमारियां एवं महामारियों का सामना मनुष्य को करना पड़ रहा है

Update:2020-06-05 23:49 IST

मेरठ: चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग एवं पंडित दीनदयाल उपाध्याय शोध पीठ के तत्वाधान में पन्द्रह दिवसीय ई-कार्यशाला "कोविड-19 के साथ जीवन: स्वावलंबी भारत की रूपरेखा" विषय पर आयोजित ई-कार्यशाला के बारहवें दिन के प्रथम सत्र के मुख्य वक्ता श्री जयंत सहस्त्रबुद्धे राष्ट्रीय संगठन मंत्री विज्ञान भारती एवं संघ प्रचारक ने स्वावलंबी समाज के पर्यावरणीय आयाम एवं मुद्दे विषय पर बोलते हुए कहा कि इस पृथ्वी पर वर्तमान समय में लगभग 80 लाख प्रजातियां पेड़ पौधों की पाई जाती हैं, जिनमें से लगभग 10 लाख प्रजातियां ऐसी हैं जो विलुप्त की कगार पर हैं।

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यह पेड़ पौधे हैं जिनमें से कोई दुर्गंध सुगंध का आभास मनुष्य जाति को नहीं हो पाता, लेकिन जैविक विविधता को बनाए रखने में इनका महत्वपूर्ण योगदान है। उन्होंने कहा कि मनुष्य द्वारा प्रकृति का अंधाधुंध दोहन करने के कारण ही आज जैविक विविधता का चक्र असंतुलित हो गया है। जिसकी वजह से बहुत सी बीमारियां एवं महामारियों का सामना मनुष्य को करना पड़ रहा है। और इसी वजह से प्रकृति विश्व के किसी भी क्षेत्र में अपना रूद्र रूप दिखा रही है। जैसे कि तूफान आना किसी क्षेत्र में सूखा पड़ जाना ग्लेशियरों का पिघलना कई द्वीपों का पानी में डूब जाना एवं पर्यावरण का दूषित हो जाना आदि।

आत्मनिर्भर बनने का मतलब विदेशी वस्तुओं का उत्पादों का पूर्णतया बहिष्कार नहीं

श्री जयंत सहस्त्रबुद्धे ने कहा कि हमें आत्मनिर्भर बनना है। इसका यह कदापि अर्थ नहीं है कि हमें विदेशी वस्तुओं का उत्पादों का पूर्णतया बहिष्कार कर देना चाहिए या विश्व के अन्य देशों से कुछ भी नहीं लेना है। यह वर्तमान समय में संभव नहीं है। स्वदेशी एवं आत्मनिर्भरता का अर्थ आर्थिक स्वावलंबन ही नहीं है बल्कि हमें स्वावलंबी बनना है। अपने आसपास के क्षेत्र में जो संसाधन उपलब्ध हैं उनको उपयोग के लिए अनुकरणीय बनाना है, जिससे हम इंधन एवं ऊर्जा और जो धन हम उसके लिए खर्च कर रहे हैं उसकी बचत कर सकें।

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उन्होंने कहा कि हमें आत्मनिर्भर बनना है, लेकिन पर्यावरण और प्रकृति को नुकसान पहुंचाकर नहीं बल्कि प्रकृति को आत्मसात करना है। और अपनी आवश्यकताओं में और प्रकृति में संतुलन बनाने की आवश्यकता है। नहीं तो हम आधुनिक विज्ञान के युग में पर्यावरण के नुकसान से पड़ने वाले प्रभावों को कम नहीं कर पाएंगे। चाहे हम कितने ही शिखर सम्मेलन कितने ही नीतियों या कितने ही लाखों करोड़ों रुपए खर्च कर ले, लेकिन हम वन संपदा, जलसंपदा, जंतु जीव संपदा या कहे इस पारिस्थितिकी तंत्र को नहीं बचा पाएंगे तब मनुष्य के पास कोई विकल्प नहीं बचेगा और तब बहुत देर हो जाएगी।

आत्मनिर्भर बनकर ही है हम अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा को और अधिक मजबूत किया जा सकता है

द्वितीय सत्र के मुख्य वक्ता श्री आशुतोष भटनागर अध्यक्ष जम्मू-कश्मीर अध्ययन केंद्र ने स्वावलंबी समाज एवं राष्ट्रीय सुरक्षा विषय पर बोलते हुए कहा कि वर्तमान समय में भारत के समक्ष बहुत सी चुनौतियां हैं। अपनी राष्ट्रीय सीमाओं की सुरक्षा करनी है अपने पड़ोसी राज्यों से एवं आंतरिक भारत में भी बहुत सी जगह अशांति व्याप्त रहती हैं उन चुनौतियों का भी सामना करना है। इसलिए हमें आत्मनिर्भर बनना है तभी हम अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा को और अधिक मजबूत कर सकते हैं।

क्योंकि वर्तमान समय में मेक इन इंडिया कार्यक्रम के अंतर्गत बहुत से रक्षा उत्पादों का उत्पादन भारतीय कंपनियां स्वदेशी तकनीक अपनाकर कर रही हैं। जैसे तेजस लड़ाकू विमान और भी बहुत से उपकरण है, जिनका निर्माण भारत की टाटा महिंद्रा, हिंदुस्तान एयरोनॉटिकल लिमिटेड आदि कंपनी कर रही हैं। उन्होंने कहा कि भारत आंतरिक रूप से जितना मजबूत होगा उतनी ही मजबूती उसकी राष्ट्रीय सुरक्षा नीति में दिखाई देगी। उन्होंने कहा कि जब भारतीय समाज अपने संसाधनों का उपयोग भारतीय चिंतन दृष्टि एवं ज्ञान परंपरा से करेगा तो भारत स्वावलंबी बनेगा और जब भारतीय समाज स्वाबलंबी बनेगा तो उसका प्रभाव हमें राष्ट्रीय अस्त्र शस्त्रों के निर्माण पर भी दिखाई देगा। उन्होंने अपनी बातों को ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य एवं तथ्यों के माध्यम से भी स्पष्ट किया।

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इससे पहले डॉ. राजेंद्र कुमार पांडेय सहचार्य राजनीति विज्ञान विभाग ने अतिथियों का परिचय एवं स्वागत कराया। डॉ. राजेंद्र कुमार पांडेय ने विषय प्रवेश कराते हुए कहा कि आज पूरा विश्व एवं हम सभी विश्व पर्यावरण दिवस को मना रहे हैं। इस अवसर पर स्वावलंबी समाज में पर्यावरण की एवं पर्यावरण के आयामों की क्या महत्वपूर्ण भूमिका है इसके बारे में हमें नए सिरे से चिंतन एवं कार्य योजना पर विचार करना होगा जिससे जैविक विविधता को बिना हानि पहुंचाए हम आत्मनिर्भर एवं स्वाबलंबी समाज का निर्माण कर सकें।

रिपोर्ट: सुशील कुमार

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