मां जंगली देवी पर होने वाले जलाभिषेक से सींची गई ईट, निर्माणाधीन मकान में लगाने से आती है खुशहाली

Update:2018-10-16 11:00 IST

कानपुर: जंगली देवी मंदिर की मूर्ति के पीछे बनी नाली में ईट रखने के बाद उस ईट को निर्माणाधीन मकान में लगाने से दिन दुनी रात चौगनी तरक्की होती है, ऐसी है जंगली देवी मंदिर की मान्यता। साथ ही जो भी भक्त पूरी श्रद्धा के साथ माता के चेहरे को निहारता है ,धीरे-धीरे माता की प्रतिमा का रंग गुलाबी हो जाता है।

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इस प्राचीन मंदिर का बहुत ही प्राचीनतम इतिहास है ,जंगल में मंदिर होने के कारण यह जंगली देवी मंदिर के नाम से विख्यात हो गया। किदवई नगर स्थित जंगली देवी मंदिर का इतिहास बहुत ही रोचक है। जिस स्थान पर जंगली देवी का मंदिर बना है ,838 ईसवी में वहा पर राजा भोज का राज था। राजा भोज ने बगाही क्षेत्र में एक विशाल मंदिर बनवाया था लेकिन राजशाही समाप्त होने के बाद सब कुछ नष्ट हो चुका था।

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17 मार्च सन 1925 में मोहम्मद बकर अपने घर के निर्माण के लिए खुदाई करा रहे थे उसी दौरान उनको एक ताम्र पात्र मिला था ,जिसे देखने के लिए पूरा गाँव जमा हो गया था। लेकिन उन्होंने इस ताम्र पात्र को पुरातत्व विभाग को सौप दिया था।

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मंदिर के प्रबंधक डीपी बाजपाई के मुताबिक क्षेत्रीय लोगो के प्रयास से ताम्र पात्र को वापस लाया गया और एक तालाब के किनारे नीम के पेड़ के नीचे रख दिया गया । एक छोटा से मंदिर बना दिया गया लेकिन उस समय इस क्षेत्र में बहुत बड़ा जंगल था। मंदिर के पास लोग जाने में डरते थे क्योंकि मंदिर के पास बने तालाब में जंगली जानवर पानी पीते आते थे।

समय के साथ धीरे-धीरे तालाब सूख गया और आबादी बढ़ने लगी ,लोग यहाँ पर पूजा करने आने लगे साधू संतो ने वहा पर अपना डेरा जमा लिया। इसके बाद आपसी सहयोग से मंदिर का निर्माण कार्य शुरू हो गया।

मंदिर की विशेषता बताते हुए राजा सिंह कहते है कि इस मंदिर में भक्तो की अटूट आस्था है जंगली देवी मंदिर में सन 1980 से अखंड ज्योति जल रही है । जो भी भक्त अखंड ज्योति जलाने में योगदान देता है उसकी मनोकामनाए पूरी होती है । जिस भक्त की मनोकामना पूरी हो जाती है उसके बाद अगले भक्त के दिए हुए घी से अखंड ज्योति जलाई जाती है।

मंदिर कमिटी के अध्यक्ष बुधलाल गुप्ता के मुताबिक माता जी प्रतिमा के सामने जो भक्त पूरी आस्था के साथ चेहरे को निहारता है तो प्रतिमा का रंग धीरे-धीरे गुलाबी होने लगता है तो समझो मनोकामना पूरी हो गई।

मंदिर के नियमित दर्शन करने वाले भक्त रामशंकर के मुताबिक प्रतिमा पर चढ़ाए गए जल व् नारियल का पानी प्रतिमा के पीछे बनी नाली से होकर गुजरता है। जो भक्त वहा पर ईट रखता है और कुछ दिन बाद वही ईट अपने निर्माणाधीन मकान में लगाता है तो छोटा सा मकान भी बहुत जल्द बंगले में बदल जाता है। उन्होंने कहा यह सब माता जी की कृपा से मुमकिन है।

भक्त किरण के मुताबिक पिछले दस साल से माता के मंदिर में दर्शन के लिए आ रहे है। उनकी अनुकम्पा से सभी बिगड़े काम बनते चले जा रहे है । ऐसे बहुत से श्रद्धालु है जिनकी दर्शन मात्र से मनोकामनाए पूरी हो रही है।

प्रसिद्ध इतिहासकार रामकृष्ण अवस्थी के मुताबिक इस ताम्र पात्र पर अंकित लिपि इस इस बात की और इशारा करती है कि यह लगभग 1200 वर्ष से अधिक प्राचीन है। यह ताम्र पात्र राजा भोज के समय का है। इस ताम्र पात्र को मंदिर में स्थापित कराया गया था जहा इस वक्त यह विशाल मंदिर बना हुआ है।

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