पसमांदा बिरादरी, शिक्षित मुस्लिम, AMU के पूर्व VC...तारिक मंसूर हर लिहाज से फिट, बीजेपी ने बनाया राष्ट्रीय उपाध्यक्ष

Lok sabha Election 2024: बीजेपी ने राष्ट्रीय टीम में यूपी के कई चेहरों को जगह दी है। इनमें सबसे ज्यादा चर्चा प्रोफेसर तारिक मंसूर की हो रही है। AMU के VC रह चुके तारिक मंसूर फिलवक्त यूपी में बीजेपी से एमएलसी हैं। उनके चयन को बीजेपी की 'मुस्लिम पॉलिटिक्स' और पसमांदा कार्ड के रूप में जोड़कर देखा जा रहा है।

Update: 2023-07-29 10:45 GMT
तारिक मंसूर (Social Media)

BJP Central Committee: भारतीय जनता पार्टी (BJP) के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने शनिवार (29 जुलाई) को अपनी नई टीम की घोषणा की। बीजेपी की इस टीम पर नजर डालें तो पूरी तरह लोकसभा चुनाव 2024 के लिए साफ संदेश देता नजर आ। 38 सदस्यीय राष्ट्रीय पदाधिकारियों की सूची में जहां नए-पुराने चेहरों के बीच समन्वय रखा गया है। वहीं, जातिगत समीकरण का भी ख्याल रखा गया है। यूपी से पार्टी के कई नेताओं को टीम में जगह मिली है। लेकिन, सबसे अधिक चर्चा विधान परिषद सदस्य और पार्टी के मुस्लिम चेहरे तारिक मंसूर (Tariq Mansoor) की हो रही है। तारिक मंसूर को बीजेपी ने राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया है।

दरअसल, बीजेपी पसमांदा मतदाताओं पर विशेष नजर बनाए हुए है। प्रोफेसर तारिक मंसूर इसी पसमांदा बिरादरी से आते हैं। प्रधानमंत्री मोदी अकसर अपने संबोधन में पसमांदा मुस्लिमों पर बोलते नजर आए हैं। तारिक मंसूर हर लिहाज से बीजेपी के उस खांचे में फिट बैठते हैं, जो 2024 लोकसभा चुनाव में उसके लिए जीत की बढ़ने में कारगर हो सकता है।

पसमांदा समाज से आते हैं तारिक मंसूर

प्रोफ़ेसर तारिक मंसूर (Pro. Tariq Mansoor) कुरैशी बिरादरी से आते हैं। कुरैशी मुस्लिम समाज में पसमांदा कहलाता है। अब सवाल उठता है पसमांदा हैं कौन? आपको बता दें, मुसलमानों में पसमांदा मुस्लिम सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और शैक्षणिक रूप से भी काफी पिछड़े हैं। आंकड़ों की मानें तो देश में मुसलमानों की कुल आबादी का करीब 85 प्रतिशत पसमांदा है। वहीं, 15 फीसद उच्च जाति के मुसलमानों की आबादी है। अर्थात, दलित और पिछड़े मुस्लिम, पसमांदा वर्ग में आते हैं।

पसमांदा पर डोरे डालते रही है बीजेपी

बीजेपी लंबे समय से पसमांदा समुदाय (Pasmanda Community) में गहरी पैठ बनाने की कोशिश में जुटी है। पसमांदा को आकर्षित करने और अपनी बात उन तक पहुंचाने के लिए समय-समय पर कई कार्यक्रम भी करती रही है। थोड़े दिन पहले ही प्रधानमंत्री मोदी ने भोपाल में रैली को संबोधित करते हुए कहा था कि, 'अगर हम मुसलमान भाई-बहनों की ओर देखें तो, पसमांदा मुसलमानों को वोटबैंक की राजनीति करने वालों ने जीना मुश्किल कर रखा है। उन्हें तबाह कर रखा है।'

जानें कौन हैं तारिक मंसूर?

प्रोफेसर तारिक मंसूर फिलवक्त उत्तर प्रदेश में बीजेपी (UP BJP) के विधान परिषद सदस्य (MLC) हैं। एमएलसी बनने से पहले वो 6 वर्षों तक अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) के वाइस चांसलर (VC) रहे थे। बता दें, तारिक मंसूर पहले भी बीजेपी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) नेताओं के करीब रहे हैं। तारिक मंसूर ने AMU के शताब्दी वर्ष समारोह में प्रधानमंत्री मोदी को आमंत्रित किया था। हालांकि, तब काफी हो-हल्ला और हंगामा मचा था। घनिष्टता इस कदर रही है कि, तारिक मंसूर के बेटे की शादी में आरएसएस चीफ मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) भी शरीक हुए थे। वर्ष 2019 में जब CAA और NRC पर देश में जगह-जगह मचा था तब अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी भी अछूता नहीं था। वहां भी छात्रों ने आंदोलन किया था। तब डॉ. मंसूर ने वाइस चांसलर रहते यूनिवर्सिटी कैंपस में पुलिस फोर्स बुला ली थी। उस वक़्त अपने इस फैसले से प्रोफ़ेसर मंसूर सुर्ख़ियों में रहे थे क्योंकि पहली बार एएमयू परिसर में पुलिस आई थी।

चार दशकों का अनुभव, 107 पब्लिकेशन इनके नाम

प्रोफ़ेसर तारिक मंसूर पसमांदा समाज से हैं, काफी पढ़े-लिखे हैं। बीजेपी को इस समाज के लिए एक ऐसे 'प्रतीक' की ही जरूरत थी, जो प्रो मंसूर पूरी करते हैं। AMU की ऑफिशियल वेबसाइट पर नजर डालें तो डॉ. तारिक मंसूर पहले जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज (JNU) और अलीगढ़ में सर्जरी विभाग में प्रोफेसर थे। प्रोफ़ेसर मंसूर को चार दशकों का अनुभव है। शिक्षण, अनुसंधान, क्लिनिकल तथा प्रशासनिक अनुभव के साथ-साथ उनके पास 107 पब्लिकेशन हैं। उन्होंने 58 पोस्ट ग्रेजुएट मेडिकल छात्रों की थीसिस का पर्यवेक्षण भी किया है।

कई अहम पद संभाल चुके हैं तारिक मंसूर

प्रोफ़ेसर तारिक मंसूर को प्रधानमंत्री मोदी द्वारा वर्ष 2023 के लिए भारत सरकार की पद्म पुरस्कार समिति (Padma Awards Committee) के सदस्य के रूप में भी नामित किया गया था। आपको बता दें, मंसूर मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (MCI) के सदस्य भी रह चुके हैं। भारतीय प्रबंधन संस्थान, लखनऊ (IIM, Lucknow) के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स में भी शामिल रहे हैं। साथ ही, मौलाना आज़ाद एजुकेशन फाउंडेशन के शासी निकाय और अल्पसंख्यक शिक्षा के लिए राष्ट्रीय निगरानी समिति, शिक्षा मंत्रालय में भी डॉ. मंसूर पद पर रहे हैं। उन्होंने शिक्षा मंत्रालय में भी विभिन्न समितियों में अपनी सेवाएं दी हैं। इसी साल जब प्रधानमंत्री मोदी से जुड़े बीबीसी डॉक्यूमेंट्री (BBC documentary) रिलीज़ हुई थी तब उन्होंने बीबीसी की आलोचना की थी। उन्हें इसे 'एजेंडा-संचालित पत्रकारिता' करार दिया था।

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