Mahoba News: पत्थरों में जान डालने वाले खुद भुखमरी की कगार पर, गांव से युवाओं का पलायन

Mahoba News: पहाड़ खदान के बंद होने से गांव के कई परिवार ऐसे हैं, जिनके घरों के चूल्हे बमुश्किल ही जल पाते है, कई दिनों की सूखी रोटी, प्याज और बेर खाकर गुजारा करने को मजबूर हैं।

Update:2023-06-25 13:47 IST
महोबा के गांव का दृश्य (Photo: Newstrack Media)

Mahoba News: ‘एक जिला-एक उत्पाद योजना’ (ODOP) में चयन होने के बाद भी महोबा का एक गांव अपनी बदनीसीबी के आंसू रो रहा है। यहां अपनी उंगलियों के जादू से बेजान गौरा पत्थरों में जान डालने वाले कारीगर भुखमरी की कगार पर पहुंच गए हैं। गांव से युवाओं का पलायन हो रहा है। पहाड़ खदान बंद होने से यहां कारखाने बंद हैं और लोगों के लिए रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है।


पहाड़ खदान संचालित ना होने से रोजगार ठप

(Photo: Newstrack Media)


बुंदेलखंड के महोबा जिले में ‘एक जिला-एक उत्पाद योजना’ (ODOP) में चयन होने के बाद भी, अपनी उंगलियों के जादू से बेजान ‘गौरा पत्थरों’ में जान डालने वाले कारीगर भुखमरी के कगार पर हैं। वर्षों पूर्व गुलजार रहा यह उद्योग धीरे-धीरे बदहाली में तब्दील हो चुका है। शासन-प्रशासन के शिथिल रवैया के चलते शिल्पकार इस काम से मुंह मोड़ रहे हैं। यही नहीं, बड़ी संख्या में गौरा उद्योग के लिए संचालित कारखाने भी ठप हो चुके हैं। मजबूरन शिल्पकार और युवा महानगरों की तरफ पलायन कर रहे हैं। ग्राम गौरहारी का पहाड़ खदान संचालित ना होने से युवाओं को ना तो रोजगार मिल पा रहा है और ना ही शिल्पकारों को गौरा पत्थर मिल रहा हैं, जिसके चलते गौरा पत्थर उद्योग में ग्रहण लग चुका है।


‘सूखी रोटी, प्याज और बेर’ खाकर गुजारा


ऐसे में गौरा पत्थर उद्योग से जुड़े शिल्पकारों ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से पहाड़ खदान को संचालित कराने की मांग की है, ताकि उन्हें फिर से कलाकृतियां बनाने के लिए रॉ मटेरियल पत्थर आसानी से मिल सकें और उनकी बदहाली दूर हो जाए। पहाड़ खदान के बंद होने से गांव के कई परिवार ऐसे हैं, जिनके घरों के चूल्हे बमुश्किल ही जल पाते है, कई दिनों की सूखी रोटी प्याज और बेर खाकर गुजारा करने को मजबूर हैं।


गौरा का मशहूर पत्थर उद्योग तोड़ रहा दम


महोबा जनपद के चरखारी तहसील का यह गौरहारी गांव है। जहां का गौरा पत्थर उद्योग नाम और पहचान का मोहताज नहीं है, लेकिन सरकारी उपेक्षाओं और शासन की गैर दिलचस्पी के चलते इस उद्योग ने दम तोड़ना शुरू कर दिया है। ऊपरी बनावट से जरूर यह गांव खूबसूरत नजर आ रहा है लेकिन अंदर से यह गांव मायूसी और बेरोजगारी का दंश झेल रहे युवाओं के लिए किसी अभिशाप से कम नहीं है। लगभग 12 हजार की आबादी वाला यह गांव गौरा पत्थर उद्योग के रोजगार पर निर्भर है, मगर अब यहां के युवा महानगरों के लिए पलायन कर चुके हैं। घरों में वृद्ध और महिलाएं, बच्चे ही नजर आते हैं। घरों में लटक रहे ताले इस गांव की बदहाल तस्वीर को खुद बयां कर रहे हैं।

पत्थर के उद्योग पर निर्भर थे आठ गांव, पसरा सन्नाटा

(Photo: Newstrack Media)


दरअसल, इस गांव में गौरा पत्थर के पहाड़ हैं। जिससे निकलने वाले पत्थर के उद्योग पर ही यहां के ग्रामीणों सहित आस-पास के तकरीबन आठ गांव के लोग निर्भर थे। गौरहारी गांव के अलावा बपरेथा, कल्हारा, भटेवरा, विजयपुर, अंडवारा, कैथी, पथरोड़ी और लुहेड़ी गांव के ग्रामीण उद्योग के भरोसे ही अपना और अपने परिवार का भरण पोषण कर रहे थे। पिछले छह दशक पूर्व शुरू हुआ गौरा पत्थर उद्योग दम तोड़ता जा रहा है। चमकदार पत्थर से खूबसूरत कलाकृतियां सहित मंदिर, मूर्तियां, खिलौने, बर्तन, हैंडी क्राफ्ट सामान बनाए जाते हैं। गौरा पत्थर की पिसाई कर अन्य प्रकार के पॉउडर, साबुन, कृषि टाइल्स, रंग, पैंट भी बनाया जाता है। गौरा पत्थर पहाड़ से आस-पास के हजारों मजदूरी और व्यापार करते थे। यहीं नही पहाड़ खदान के लिए रजिस्टर्ड समिति व व्यापार से सरकार के खजाने में भी लाखों रुपये का राजस्व जमा होता था। इस काम से पीढ़ी दर पीढ़ी यहां के लोग शिल्पकारी के इस हुनर से अपने परिवार को पाल रहे थे। पूर्व की बात करें तो तकरीबन 400 शिल्पकार इन पत्थरों से मनमोहक कलाकृतियां बनाने का काम करते थे।


कभी थे 100 कारखाने, आज बचे सिर्फ 15 शिल्पकार


गांव में तकरीबन 100 कारखाने इस उद्योग के हुआ करते थे, मगर पहाड़ खदान के बंद होने से इस पर ग्रहण लग गया और पूरे गांव में सिर्फ 15 शिल्पकार ही बचे हैं जो इस काम को बुजुर्गों की देन मानकर कर रहे हैं जबकि गांव में सिर्फ तीन कारखाने ही संचालित बताए जाते हैं। बताया जाता है कि उद्योग विभाग में 289 शिल्पकार रजिस्टर्ड हैं। मगर, पत्थर की उपलब्धता ना होने के कारण शिल्पकारों ने इस काम से नाता तोड़ लिया और मजबूरन कारखाने बंद होने से बड़ी संख्या में मजदूरों को काम नहीं मिल पा रहा। तो वहीं पत्थर खदान के बंद हो जाने से यह काम करने वाले बहुतयात में मजदूर पलायन कर चुके हैं। बंद पड़े कारखानों में पशुओं को रखा जा रहा है और लगी मशीनें जंग खा रही है।


2014 तक पहाड़ खदान संचालन की स्वीकृति रही


दरअसल, इस गांव के गरीबों के उपयोग हेतु पहाड़ खदान के संचालन के लिए शासन द्वारा 1974 में गौरा उद्योग औद्योगिक उत्पादन सहकारी समिति का गठन किया गया था। जो कई वर्षों से पहाड़ में खनन का कार्य करता था, जिसमें गांव के लोग ही मजदूरी करते थे। 1974 से 2014 तक समिति को पहाड़ खदान संचालन की स्वीकृति रही, मगर पहाड़ का रास्ता ध्वस्त होने के बाद समिति को दोबारा पहाड़ संचालन की स्वीकृति नहीं मिल पाई और इसी दौरान सपा सरकार में वर्ष 2015 में अन्य पहाड़ पर हादसे में 6 मजदूरों की मौत के बाद गौरा पहाड़ को शुरू ही नहीं किया गया। तबसे लेकर आज तक यहां के ग्रामीण बेरोजगारी का दंश के साथ-साथ आर्थिक तंगी और मुफलिसी झेल रहे हैं। पहाड़ के बंद होने से जहां मजदूरों को काम मिलना बंद हो गया तो वहीं शिल्पकारों को पत्थर रॉ मटेरियल भी नहीं मिल पा रहा। नतीजन लोग पलायन को मजबूर हो गए।

देश-विदेश तक भेजी जाती थीं गौरा की कलाकृतियां


यहां बनने वाले कलाकृतियां देश के विभिन्न हिस्सों बनारस, गोरखपुर, कलकत्ता, चेन्नई बिहार, कानपुर, दिल्ली आगरा, मुंबई के अलावा विदेशों चाइना, जापान के व्यापारी यहां से व्यापार करते थे। लेकिन पत्थर की उपलब्धता ना होने के कारण इस उद्योग को गति नहीं मिल पा रही।


ओडीओपी(ODOP) में है शामिल, गांव छोड़ रहे युवा


उत्तर प्रदेश सरकार के मुखिया योगी आदित्यनाथ ने भले ही इस उद्योग को बढ़ावा देने के लिए एक जनपद एक उत्पाद में गौरा पत्थर को शामिल किया है, मगर पहाड़ के संचालित ना होने के कारण सरकार की पहल भी बेमानी साबित नजर आती है। ऐसे में यहां के शिल्पकारों और ग्रामीणों ने यहां के दर्द को सीएम योगी तक पहुंचाया है और पहाड़ खदान को दोबारा शुरू किए जाने की मांग की है। इस गांव में रहने वाले 85 वर्ष की वृद्ध महिला बिस्सन बताती है कि ‘उसके 6 नौजवान बेटे हैं जो गांव को छोड़ कर पलायन कर चुके हैं।’ वह घर में अकेली रहकर जैसे तैसे गुजर कर रही हैं। उसकी माने तो पहाड़ के संचालन होने पर उसके पुत्र यहीं मजदूरी करते थे, मगर पहाड़ के बंद होने पर महानगरों में मजदूरी करने चले गए हैं। गांव में रोजगार के लिए कोई व्यवस्था नहीं है। इसलिए सभी युवा पलायन कर गए हैं, गांव में एक पहाड़ रोजगार के लिए था वह भी बंद है।


बेटी ने कहा- ‘घर में सब्जी कभी-कभार ही बनती है’


इस गांव के परिवार आर्थिक तंगी मुफलिसी और गरीबी चल रहे हैं गांव में रहने वाली कौशल्या के पति की मृत्यु हो चुकी है और वह अपनी चार पुत्रियों को बमुश्किल पाल रही है। जैसे-तैसे कोई मजदूरी मिलती है तो घर का चूल्हा जल पाता है। ऐसे में कौशल्या की सबसे छोटी पुत्री कविता बताती है कि ‘उसके घर में सब्जी कम बनती है और मां उसे खाने के लिए सूखी रोटी, प्याज और बेर देती हैं।’ कौशल्या के घर का बुझा चूल्हा इतना बताने के लिए काफी है कि पहाड़ के बंद होने के बाद से उसे नियमित मजदूरी नहीं मिल पा रही और आर्थिक तंगी में गुजर हो रहा है।

सपा सरकार से जुड़े लोगों के दखल के कारण खुलेआम होती थी गुंडागर्दी!


पहाड़ खदान संचालन समिति के पूर्व अध्यक्ष आसाराम बताते हैं कि पूर्व की सपा सरकार से जुड़े लोगों के दखल के कारण पहाड़ में काम करने वाले मजदूरों और समिति के सदस्यों को सही मजदूरी नहीं मिल पाती थी और खुलेआम होती गुंडागर्दी के कारण उन्हें भी धमकियां मिलती थी। पहाड़ के बंद होने के बाद से लगातार समिति के लोग पैरवी कर रहे हैं कि यहां की जनता बर्बाद हो रही है। यदि पहाड़ शुरू कर दिया जाए तो यहां के लोगों का भला हो सकता है। गौरा पत्थर उद्योग के लिए कारखाना संचालित करने वाला शिल्पकार मुंगालाल बताते हैं कि उसका कारखाना जंग खा रहा है, जिसमें अब वह पशुओं को बांधता है, जबकि इसी कारखाने में कभी चहल-पहल हुआ करती थी। कारखाने में 25 लोग पत्थर कटाई का काम करते थे और ऑर्डर के हिसाब से काम कर कलाकृतियों को बनाते थे। ऐसे ही अन्य कारखानों में भी 25 से 50 मजदूरों को रोजगार मिल जाया करता था। मगर पहाड़ बंद होने से पत्थर नहीं मिल पा रहा। जिसके चलते कारखानों को भी ताले लग गए।


मामले पर डीएम ने दी ये जानकारी

(Photo: Newstrack Media)


गांव के युवाओं के पलायन करने और शिल्पकारों की समस्याओं को जिला अधिकारी मनोज कुमार ने गंभीरता से लिया है। उन्होंने बताया कि पूर्व में पहाड़ पर हुए हादसे में छह मजदूरों की मौत के बाद गौरा पहाड़ खदान को बंद किया गया था। चूंकि खदान गांव की आबादी को प्रभावित करता है, फिर भी बेरोजगार हो रहे युवाओं और शिल्पकारों को पत्थर की कमी को लेकर एसडीएम व ज्येष्ठ खनिज अधिकारी की टीम को गांव जांच के लिए भेजा जा रहा है। ताकि पता चले कि कैसे ग्रामीणों के जीवन को बचाते हुए इस काम को शुरू किया जा सकता है या नहीं किया जा सकता। इसके अतिरिक्त पत्थर की कमी को दूर करने के लिए बाहर से पत्थर मंगवाने में प्रशासन तैयार है। दोनों ही समस्याओं को दूर करने की कोशिश की जाएगी।

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