मेरठ: आपदा में अवसर तलाशने वाले कारोबारी संकट में, इन चीजों के बढ़े भाव

कोरोना काल में आपदा में अवसर तलाशने वाले कारोबारी अब संकट में हैं। मेरठ में 70 से अधिक लघु इकाइयों पर ताले लटक गए हैं।

Update: 2021-04-06 13:03 GMT

फाइल फोटो 

मेरठ: उत्तर प्रदेश के मेरठ में कोरोना काल में आपदा में अवसर तलाशने वाले कारोबारी अब संकट में हैं। हालत यह है कि मेरठ में 70 से अधिक लघु इकाइयों पर ताले लटक गए हैं। इनमें अधिकांश संख्या लॉकडाउन से अनलॉक के बीच नए उद्योग के रुप में उभरी उन इकाइयों की हैं जो कि पीपीई किट, सैनिटाइजर,मास्क बनाती हैं।

बीच में कम हो गए थे मास्क और सैनिटाइजर के दाम

दरअसल, पिछले साल अप्रैल से दिसबंर तक शहर में 50 से अधिक लघु इकाइयां शुरु हुई जिनमें पीपीई किट, सैनिटाइजर, मास्क तैयार होते थे। कारोबारियों की मानें तो शुरु में उत्पादों की मांग अधिक होने के कारण सप्लाई खूब हुई। विदेशों तक माल भेजा गया, लेकिन बाद में जैसे-जैसे कोरोना को लेकर हालात सुधरते गए वैसे-वैसे पीपीई किट, सैनिटाइजर, मास्क की मांग बाजार में कम होने लगी। ऐसे में विदेशी कंपनियों तक ने दाम घटा दिए। नतीजन नामचीन मल्टीनेशनल कंपनियों के बने थ्री लेयर मास्क की कीमत 25 से 30 रुपये से घटकर 10 से 15 रुपये के बीच आ गई। इसी तरह सैनिटाइजर के दाम घटकर 50 से 60 रुपये प्रति एमएल पर पहुंच गये। इस तरह एक तरफ जंहा उत्पाद की कीमत निचले स्तर पर आ गई हैं। वहीं दूसरी तरफ कच्चे माल की कीमत बढ़ गई हैं।

संक्रमण के बढ़ते ही फिर बढ़ गए भाव

मेरठ के एक कारोबारी अपना दर्द बंया करते हुए कहते हैं, एलोविरा की 100 लीटर की जो कैन 2500 रुपये की थी, उसकी कीमत 7500 रुपये हो गई है। बोतल की कीमत तीन रुपये से बढ़ कर 10 रुपये पहंच गई है। स्प्रे मशीन या फव्वारे की कीमत सात से बढ़ कर 15 रुपये हो गई है। 130 एमएल सैनिटाइजर की बोतल तैयार करने में 60 रुपये खर्च आता है। ऐसे में 50 रुपये कीमत पर सैनिटाइजर कैसे दिया जा सकता है। ऊपर से सरकार से कोई ग्रांट नही मिल रही है।

एएएफ इंडस्ट्री के संचालक अरुण कुमार इस हालात के लिए मांग कम होने को तो जिम्मेदार बताते ही हैं सरकार को भी जिम्मेदार बताते हैं। वे कहते हैं,लॉकडाउन के दौरान सैनिटाइजर, मास्क और पीपीई किट की शहर और आसपास क इलाकों में काफी अधिक मांग थी। उस समय उद्यमियों और व्यापारियों ने अधिक पैसा बाजार में लगाया। लॉकडाउन खुलने और सरकार के स्तर पर मदद न मिलने से सप्लाई सिमटती चली गई। इसके चलते गोदामों में करोड़ों का स्टॉक डंप हो गया।

कारोबारियों का यह भी कहना है कि इकाइयों क संचालन में मशीन,पेटेंट, लाइसेंस,ट्रेड मार्क और कच्चा माल आदि में लखों रुपये का खर्च आया। इस साल की शुरुआत में मांग का स्तर 100 फीसदी से घटकर २० फीसदी रह गया। जबकि नामचीन कंपनियों की जबरदस्त मार्केटिंग के कारण उनके उत्पादों की बिक्री स्थानीय कंपनियों के उत्पादों के मुकाबले अधिक है।

जिला उद्योग केन्द्र के उपायुक्त वीरेन्द्र कौशल इस मामले में सरकार का बचाव करते हुए कहते हैं,लघु इकाइयों के बंद होने के लिए सरकार कतई जिम्मेदार नही है। वे कहते हैं,मानक के अनुरुप उत्पाद न होने के अलावा इस हालात के लिए कई का्रण रहे हैं। बकौल वीरेन्द्र कौशल,स्पोर्टस इंडस्ट्री से जुड़ी 70 से अधिक फर्म ने मास्क,पीपीई किट का कारोबार किया। मशीनों का प्रयोग अब अन्य स्पोर्टस वेयर बनाने में किया जा रहा है।

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