Moradabad News: आजादी के वो परवाने, झेला जुल्म और जेल, पर देते रहे अंग्रेजी हुकूमत को टक्कर
Moradabad News: रामेश्वर दयाल खंडेलवाल के सिर पर देश को आजाद कराने का जुनुन सवार था। उन्होंने शहर के कोर्ट चौराहे पर कई बार अंग्रेजों को जंग के लिए चुनौती भी थी।
Moradabad News: आजादी के संग्राम में महान स्वतंत्रता सेनानियों ने अपनी पूरी ताकत झोंककर अंग्रेजी हुकूमत से लोहा लिया था। तमाम जुल्म झेलने के बाद भी वो पीछे नहीं हटे थे। ऐसा ही एक नाम रामेश्वर दयाल खंडेलवाल का है। जिन्होंने मुरादाबाद के कोर्ट चौराहे पर कई बार अंग्रेजी हुकूमत के सैनिकों का सीधा सामना किया था।
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जेल यात्राएं भी नहीं डिगा सकी हौंसला
रामेश्वर दयाल खंडेलवाल के सिर पर देश को आजाद कराने का जुनुन सवार था। उन्होंने शहर के कोर्ट चौराहे पर कई बार अंग्रेजों को जंग के लिए चुनौती भी थी। देश में शुरू हुए अंग्रेजो भारत छोड़ो आंदोलन में भी अमरोहा (जिला मुरादाबाद की एक तहसील हुआ करती थी) से उनकी अहम भूमिका रही थी। इसके लिए वह कई बार जेल भी गए थे। स्वतंत्रता सेनानी रामेश्वर दास खंडेलवाल का देश की आजादी के लिए दो साल से ज्यादा समय जेल में गुजरा था। देशभक्ति के मौके पर आज भी शहर के लोग उनका गुणगान करते हैं।
महज 18 साल की उम्र में स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े
शहर के मोहल्ला कोट निवासी रामेश्वर दास खंडेलवाल का जन्म 16 अक्टूबर 1912 को वैश्य परिवार में हुआ था। जब वह बड़े हुए तब देश में अंग्रेजी हुकुमत के जुल्म का दौर था। देशवासियों पर अंग्रेजों का जुल्म देखकर रामेश्वर खंडेलवाल आजादी के आंदोलन में कूद पड़े। उस समय उनकी उम्र 18 साल थी। उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्सा लेते हुए अंग्रेजी सिपाहियों का जमकर मुकाबला किया। स्वतंत्रता सेनानी रामेश्वर खंडेलवाल शहर के कोर्ट चौराहे पर खड़े होकर अंग्रेजों को ललकारते थे। इसके लिए आठ सितंबर 1930 को उन्हें तीन माह के सश्रम कारावास और 10 रुपए के अर्थदंड की सजा सुनाई गई थी।
अंग्रेजों की यातनाओं का सामना किया, पर नहीं टूटा हौंसला
सजा पूरी करने के बाद देशप्रेम का जज्बा और ज्यादा बढ़ गया था। उनके देश प्रेम के जज्बे के कारण फिर 30 मई 1932 को छह माह के कारावास और 50 रुपए अर्थदंड की सजा सुनाई। 17 नवंबर 1932 को मेरठ की जेल से सजा पूरी करने के बाद छूटकर आए। इसके बाद सत्याग्रह में उन्हें पांच सितंबर 1941 को छह माह के कारावास और 30 रुपए जुर्माने की सजा हुई। 18 दिसंबर 1941 को वह जेल से छूटे और अंग्रेजो भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेने के कारण 18 अगस्त 1942 को मुरादाबाद जेल में नजरबंद कर दिए गए। दो बार जेल जाने के बाद भी इनका ट्रांसफर बरेली जेल कर दिया गया।
बताया जाता है कि उन्हें लगातार तीन बार में दो साल नौ महीने कैद की सजा हुई। इसके अतिरिक्त 10 कोड़े भी मारे गए। इसके बाद भी उनके सिर से आजादी का जुनून कम नहीं हुआ। एक दिन सभी स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की मेहनत रंग लाई और 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हो गया। 13 नवंबर 1984 को उनका निधन हो गया था। उन्हें जीवित रहते भारत सरकार ने ताम्र पत्र व 200 रूपए पेंशन देकर सम्मानित किया था। आज भी गणतंत्र दिवस व स्वतंत्रता दिवस समेत अन्य देशभक्ति के मौके पर शहर के लोग आजादी के इस मतवाले को नमन करते हैं।