डीजीपी मुकुल गोयल के प्रमोशन को हाईकोर्ट में दी गयी चुनौती, जनहित याचिका हुई दायर

सूबे के डीजीपी मुकुल गोयल एक बार फिर विवादों के घेरे में आ गए हैं। अब यह नया विवाद उनके डीजीपी को बनने को लेकर है।

Report :  Sandeep Mishra
Published By :  Ashiki
Update: 2021-08-06 11:36 GMT

डीजीपी मुकुल गोयल (File Photo)

 लखनऊ: हमेशा विवादों से घिरे रहने वाले सूबे के डीजीपी मुकुल गोयल एक बार फिर विवादों के घेरे में आ गए हैं। अब यह नया विवाद उनके डीजीपी को बनने को लेकर है। इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका डाली गयी है, जिसमें याची ने पूछा है कि पूर्व में पुलिस भर्ती के घोटाले के आरोपी सीनियर आईपीएस मुकुल गोयल को अखिर सरकार ने सूबे के डीजीपी पद पर कैसे तैनात कर दिया है? उनकी नियुक्ति की वैधानिकता को चुनौती याची अविनाश प्रकाश पाठक ने दी है।

याची अविनाश प्रकाश पाठक की ओर से दाखिल की गई जनहित याचिका में कहा गया है कि डीजीपी मुकुल गोयल पर वर्ष 2005 में सूबे की पुलिस भर्ती में व्यापक पैमाने पर भ्रष्टाचार के आरोप थे। उनके विरुद्ध लखनऊ के महानगर थाने में अभियोग भी पंजीकृत हुआ था। वर्ष 2007 में तत्कालीन मायावती सरकार ने जांच के आदेश भी दिए थे। तब तत्कालीन डीजीपी विक्रम सिंह ने इस प्रकरण की जांच भ्रष्टाचार निवारण संस्थान को सौंपी थी।‌

याची ने इस मामले की शिकायत वर्ष 2017 में प्रधानमंत्री कार्यालय को प्रेषित की थी, जिस पर 23 फरवरी 2018 को गृह मंत्रालय में आईपीएस सेक्शन सचिव मुकेश साहनी ने पत्र भी लिखा था। भ्रष्टाचार की जांच के लिए यूपी के तत्कालीन प्रमुख सचिव गृह को पत्र लिखा गया था कि जांच कर शिकायतकर्ता अविनाश पाठक को अवगत कराएं। साथ ही गृह मंत्रालय को भी उसकी सूचना दें, लेकिन लगातार पत्राचार के बावजूद यूपी के प्रमुख सचिव/गृह द्वारा अब तक कोई कार्यवाही नहीं की गई।

2005-06 में हुए घोटाला मामले में जांच के लिये डाली गई थी जनहित याचिका

इस पुलिस भर्ती घोटाले की जाँच के सन्दर्भ में तब भी एक जनहित याचिका कोर्ट में डाली गयी थी। तब तत्कालीन न्यायमूर्ति अंजनी कुमार एवं न्यायमूर्ति वी.के. वर्मा की खण्डपीठ ने अमित कुमार शुक्ला व तीन अन्य द्वारा दाखिल याचिका को स्वीकार करते हुए यह निर्णय दिया है कि प्रदेश में वर्ष 2005-06 में पुलिस एवं पीएसी व रडियो पुलिस में लगभग तेइस हजार सिपाहियों की भर्ती हुई थी। इस भर्ती में अनेक अनियमितता के आरोप लगे हैं, प्रदेश में सरकार बदलने के बाद मायावती सरकार ने इसकी जाँच आईपीएस अधिकारी शैलजा कान्त मिश्र को सौंपी थी। जाँच के बाद कई चयन बोर्डो के चयन को रद कर एवं चयनित हजारों सिपाहियों को सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था। सरकार ने सभी 42 चयन बोर्डो के चयन को भी रद कर दिया था।बर्खास्त सिपाहियों ने बर्खास्तगी आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। इस पर सुनवाई के बाद कोर्ट ने अपना निर्णय सुरक्षित कर लिया है।

इस बीच राय सरकार ने जाँच बोर्ड के अनेक वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के विरुद्ध भी प्राथमिकी दर्ज करके जाँच कार्य प्रारम्भ कर दिया था। उनका मामला भी हाईकोर्ट में लम्बित है। राय सरकार ने 4 फरवरी, 08 को इस घोटाले की जाँच सीबीआई से कराने की संस्तुति केन्द्र सरकार को भेजी थी, जिसे केन्द्र ने सीबीआई के पास कार्य अधिक होने के आधार पर 21 अप्रैल, 08 के आदेश द्वारा अस्वीकार कर दिया था। दूसरी ओर पुलिस भर्ती में भाग लेने के बाद चयन में असफल चार अयर्थियों ने केन्द्र सरकार द्वारा 21 अप्रैल, 08 को पारित आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। यद्यपि कोर्ट ने याचीगणों को कोई अनुतोष नहीं दिया, परन्तु इस मामले की जाँच सीबीआई को सौंप दी। अब तक इस प्रकरण में कोई निर्णय नही आया है।

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