मतदान के जज्बे ने दिव्यांगता को दिया पछाड़ 

लखनऊ के पुराने किले के सदर बाजार में मतदान के दौरान एक शख्स दिखायी देता है। पिछले कई चुनावों से यह बदस्तूर लोगों को नजर आ रहा है और लोगों को मतदान करने के लिए प्रेरित कर रहा है।

Update: 2019-05-04 11:18 GMT

उत्तर प्रदेश: लखनऊ के पुराने किले के सदर बाजार में मतदान के दौरान एक शख्स दिखायी देता है। पिछले कई चुनावों से यह बदस्तूर लोगों को नजर आ रहा है और लोगों को मतदान करने के लिए प्रेरित कर रहा है।

लेकिन एक खासियत है इसके साथ कि यह दिव्यांग है। दोनो पैर खराब हैं चल नहीं सकता लेकिन लोगों के बीच मतदान के प्रति जागरुक करने का इसका जज्बा काबिले गौर है। कौन है यह और क्यों लोगों के बीच मतदान के लिए घूम रहा है।

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इसका नाम पीयूष जायसवाल है। चुनावों मे घट रहे वोटिंग प्रतिशत के बीच पीयूष एक आशा की किरण के समान है।

अपने दोनो पैरों को खो चुके 31 वर्षीय पीयूष ने न केवल प्रत्येक चुनाव मे मतदान किया है बल्कि अन्य लोगों को भी अपने मताधिकार का प्रयोग करने के लिये प्रेरित करते रहते है।

“Newstrack से बातचीत करते हुए पीयूष ने कहा, कि उनकी शारीरिक अक्षमता कभी भी मतदान करने मे उनके बाधा नही बनी।“

इस बार तो चुनाव आयोग ने विकलांगो को मत देने के लिये विशेष प्रबन्ध किये है। परन्तु पीयूष का कहना है कि हमे अपने मताधिकार का प्रयोग करने के लिये चुनाव आयोग का मुंह नही देखता चाहिए।

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वे कहते है, क्या होली, दीवाली या अन्य किसी पर्व को मनाने के लिये हमे किसी विशेष सहायता का इंतजार करते है।

लोकतंत्र मे चुनाव भी एक पर्व है बल्कि सबसे महत्वपूर्ण पर्व है।

जो लोग चुनावी दिवस पर सरकारी अवकाश मनाने लगते है। सरकार अवकाश वोट डालने के लिये देती है और यहां लोग अवकाशी पर्व मनाते है।

पीयूष न केवल अपने जैसे विकलांगों को मत देने के लिये प्रेरित करते है बल्कि उनको भी प्रेरित करते है जो किसी शारीरिक अक्षमता से ग्रस्त नही हैं।

लखनऊ के पुराने किले के सदर बाजार मे पीयूष अपने परिवार के साथ रहते है। पीयूष के पिता जी प्रेम सागर जायसवाल एक होम्योपैथिक डॉक्टर है। और वहीं पुराने किले मे उनकी निजी क्लीनिक भी है।

बचपन मे पीयूष की स्पाइनल कॉर्ड मे एक फोड़ा था, जिसके कारण उनका एक पैर खराब हो गया था। फिर लखनऊ स्थित संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान (SGPGIMS) मे ऑपरेशन के दौरान उनका दूसरा पैर भी खराब हो गया।

चलने मे असमर्थ पीयूष अपने आप को किसी से कम नही समझते है और दिव्यांग होने के बावजूद भी वह सामान्य लोगों की तरह व्यवहार करते है।

पीयूष ने अपनी दिव्यांगता के कारण हार नही मानी और ये पीयूष जैसे लोगों का ही जज्बा है कि हमारे देश मे लोकतंत्र की जड़ें गहरी हो सकी हैं।

 

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