होम्योपैथी निदेशालय में दो माह से अटका है संविदाकर्मियों का नियमितीकरण
बेरोजगारों को नौकरी देने का दावा करने वाली योगी सरकार ने कोविड महामारी के बाद आर्थिक मंदी से निपटने की कवायद में स्वास्थ्य सेवाओं की मौजूदा नौकरियों को भी खत्म कर डाला है।
लखनऊ: बेरोजगारों को नौकरी देने का दावा करने वाली योगी सरकार ने कोविड महामारी के बाद आर्थिक मंदी से निपटने की कवायद में स्वास्थ्य सेवाओं की मौजूदा नौकरियों को भी खत्म कर डाला है। होम्योपैथी विभाग में 150 संविदाकर्मियों को हटा दिया गया है जबकि दो साल पहले योगी सरकार ने ही बाकायदा परीक्षा लेकर इन्हें तैनात किया था। नियमितीकरण का इंतजार कर रहे युवाओं का कहना है कि अगर सरकार अपने कार्यकाल में चयनितों को ही दो साल बाद बाहर कर देगी तो पांच साल की नीति बनाने से क्या फायदा होगा।
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पिछले दो महीने से संविदाकर्मियों का नियमितीकरण अटका हुआ है
प्रदेश सरकार की संविदा भर्ती नीति के ढुलमुल रवैये से विभागों में अराजकता की स्थिति बनती जा रही है। प्रदेश का होम्योपैथी निदेशालय इसका बड़ा उदाहरण है जहां पिछले दो महीने से संविदाकर्मियों का नियमितीकरण अटका हुआ है। कोरोना महामारी के दौर में भी स्वास्थ्य सेवाओं के मोर्चे पर इस बड़ी लापरवाही को लेकर सवाल खडे हो रहे हैं। इस नियमितीकरण को टाले जाने में हालांकि यह आरोप भी लगाए जा रहे हैं कि कुछ दलाल पूरे मामले में सक्रिय हैं और नियमितीकरण अपने तरीके से कराने की बात कर रहे हैं।
पीड़ितों ने बताया कि उनकी नियुक्ति निदेशालय होम्योपैथी विभाग से संविदा के आधार पर उत्तर प्रदेश के विभिन्न मेडिकल कॉलेज में रजिस्ट्रेशन क्लर्क, लैब तकनीशियन, स्टाफ नर्स आदि पदों पर वर्ष 2018 में बाकायदा विज्ञापन निकाल कर, लिखित परीक्षा के माध्यम से किया गया। 2019 में संविदा नवीनीकरण महज 15 दिवस के भीतर कर दी गई थी। किन्तु वर्ष 2020 को कोविड जैसी वैश्विक महामारी के दौर में पिछले दो महीने से संविदा नियमितीकरण अटका हुआ है।
पीड़ितों ने यह भी बताया
जबकि सभी संविदाकर्मियों ने कोविड काल में ड्यूटी भी की है। नियमितीकरण नहीं होने से संविदाकर्मियों के समक्ष परिवार एवं बच्चों के भरण पोषण का संकट उत्पन्न हो गया है। पीड़ितों ने यह भी बताया कि उन्होंने होम्योपैथी मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य, निदेशक, होम्योपैथी, उत्तर प्रदेश, अपर मुख्य सचिव, आयुष, आयुष मंत्री, उत्तर प्रदेश और मुख्यमंत्री, को भी पत्र लिखा है लेकिन आज तक उनकी समस्या का समाधान नहीं हो सका।
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दूसरी ओर चर्चा यह भी है कि सरकार इन सभी संविदा पदों को खत्म करने जा रही है लेकिन अधिकारियों के स्तर से इसकी पुष्टि नहीं की जा रही। विभाग के जानकार लोगों का कहना है कि संविदाकर्मियों को जिन पदों पर तैनाती मिली है वह सभी विभाग में पहले से ही सृजित पद हैं। ऐसे में अगर संविदा भर्ती खत्म भी की जाएगी तो नए पदों पर भर्ती करना जरूरी है। जब तक नई भर्ती नहीं होती है तब तक अगर संविदाकर्मियों का नियमितीकरण नहीं किया जा रहा है तो निश्चित तौर पर दाल में कुछ काला जरूर है।
अखिलेश तिवारी
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