Samajwadi Party: 2024 में स्वामी प्रसाद मौर्य ही होंगे अखिलेश यादव के 'सारथी', लीक हुआ सपा का मास्टर प्लान!

Samajwadi Party Mission Loksabha Elections 2024- लोकसभा चुनाव 2024 में समाजवादी पार्टी का फोकस सर्वजन के बजाय बहुजन की सियासत पर है

Written By :  Hariom Dwivedi
Update:2023-02-18 07:40 IST

फाइल फोटो- अखिलेश यादव और स्वामी प्रसाद मौर्या (साभार- सोशल मीडिया)

Samajwadi Party Mission Loksabha Elections 2024- समाजवादी पार्टी अब सर्वजन के बजाय बहुजन की सियासत पर फोकस कर रही है। रामचरितमानस विवाद पर रोली तिवारी और ऋचा सिंह जैसे सवर्ण नेताओं पर एक्शन और स्वामी प्रसाद मौर्या पर चुप्पी से अखिलेश यादव ने मिशन 2024 के लिए राजनीतिक एजेंडा सेट कर दिया है। इसी के साथ उन्होंने यह भी संकेत दे दिया है कि आगामी चुनावों में स्वामी प्रसाद मौर्या ही अखिलेश यादव के सारथी होंगे और सवर्ण लॉबी को पार्टी लाइन पर ही रहना होगा।

यूपी विधानसभा चुनाव 2022 के नतीजों के बाद से सपा प्रमुख समझ गये हैं कि सवर्ण मतदाता फिलहाल बीजेपी को छोड़कर सपा के साथ आने की स्थिति में नहीं हैं। इसीलिए लोकसभा चुनाव 2024 के लिए समाजवादी पार्टी सामाजिक न्याय और जातीय जनगणना के मुद्दे को हवा दे रही है। सपा का फोकस प्रदेश की सबसे बड़ी आबादी ओबीसी को अपने खेमे में लाने की है। इसीलिए वह पार्टी प्रवक्ताओं को साम्प्रदायिक मुद्दों पर न बोलने की नसीहत तो दे रहे हैं लेकिन स्वामी प्रसाद पर मौन हैं।

रामचरितमानस की चौपाई पर स्वामी को है आपत्ति

समाजवादी पार्टी के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य रामचरितमानस की कुछ चौपाइयों को हटाने की मांग कर रहे हैं। इसके लिए उन्होंने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र भी लिखा है। उनका कहना है कि रामचरितमानस की कुछ चौपाइयों के आपत्तिजनक अंश की वजह से सामाजिक, धार्मिक स्तर पर महिलाओं, आदिवासियों, दलितों व पिछड़ों को हमेशा अपमानित होना पड़ता है। इन चौपाइयों को या तो हटाया जाये या फिर संसोधित किया जाये।

अखिलेश यादव का रुख साफ

रामचरितमानस पर स्वामी प्रसाद मौर्या के बयान को लेकर समाजवादी पार्टी के अंदर ही दो गुट बन गये। रोली तिवारी और ऋचा सिंह लगातार स्वामी मौर्या के बयान की आलोचना कर रही थीं और सोशल मीडिया पर उनके खिलाफ मोर्चा खोल रखा था। अखिलेश यादव ने दोनों को पार्टी से निकालकर अपना रुख साफ कर दिया है कि वह किसी भी कीमत पर पिछड़ों की नाराजगी मोल नहीं लेना चाहते हैं।

ओबीसी पर फोकस क्यों?

यूपी में ओबीसी वोटरों की संख्या कुल आबादी की करीब 42-45 फीसदी है। इनमें यादव 10 फीसदी, लोधी 3-4 फीसदी, कुर्मी-मौर्य 4-5 फीसदी और अन्य का प्रतिशत 21 फीसदी है। दूसरी जातियों में दलित वोटर 21-22 फीसदी, सवर्ण वोटर 18-20 फीसदी और मुस्लिम वोटर 16-18 फीसदी हैं। ऐसे में ओबीसी यूपी में सबसे बड़ा जाति समूह है। यह अकेले किसी को जिताने-हराने में सक्षम हैं। इसलिये हर दल गुणा-भाग के जरिये इन्हें अपने खेमे में रखना चाहता है।

क्या कहते हैं आकंड़े?

सीएसडीएस के आंकड़ों के मुताबिक, पिछले चुनाव में 80 से 87 फीसदी तक ठाकुर, ब्राह्मण और वैश्य समुदाय ने बीजेपी को वोट दिये हैं। सपा गठबंधन को करीब 36 फीसदी वोट मिले थे, जिनमें यादव, मुस्लिम, अति पिछड़े और कुछ दलित शामिल हैं। इस चुनाव में बसपा और कांग्रेस का वोट बैंक बीजेपी और समाजवादी पार्टी में शिफ्ट हुआ था। 2022 के चुनाव में बीजेपी और सपा के बीच वोटों का अंतर आठ फीसदी रहा। इस चुनाव में बड़ी संख्या में उन पिछड़ों ने भी बीजेपी को वोट किया जो कभी सपा का कोर वोटर था। अब समाजवादी पार्टी इनकी 'घरवापसी' की तैयारी में जुटी है।

क्या कारगर होगी सपा की स्ट्रैटजी?

2022 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले स्वामी प्रसाद मौर्या बीजेपी छोड़कर समाजवादी पार्टी में शामिल हो गये थे। कुशीनगर जिले की फाजिलनगर सीट से वह विधानसभा चुनाव लड़े, लेकिन जीत नहीं सके। इस चुनाव में उन्हें बीजेपी प्रत्याशी सुरेंद्र कुशवाहा से करारी हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद समाजवादी पार्टी ने उन्हें एमएलसी बनाकर उच्च सदन भेजा। अब फिर उनके सहारे पार्टी बड़ा दांव खेलने की तैयारी कर रही है। देखना दिचलस्प होगा कि आगामी चुनाव में सपा की यह स्ट्रैटजी कितनी कारगर साबित होती है।

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